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नवीनतम, सुन्दरम, सत्यम, कलामम जदीद-व-मुन्फरिद शेर-व-शायरी

नवीनतम, सुन्दरम, सत्यम, कलामम

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जदीद-व-मुन्फरिद शेर-व-शायरी
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" रफ़ीक़ो!", " कूचा-ए-सनम " की ख़ाक छानते रहेंगे हम- सभी!?!
क़सम से, " आरज़ी - इरम " की ख़ाक छानते रहेंगे हम - सभी!?!

यहाँ " सुकून-व-अम्न " है, कहाँ!?, 
कहीं भी शान्ति नहीं है " याँ "!?!

" अरब " की, और " अजम " की
ख़ाक छानते रहेंगे हम- सभी!?!

" ख़ुदा-ए-काबा " देखे है!!, " गदा-ए-काबा " शशदर-व-परेशाँ है!
" मदीना-ए-शह-ए- उमम " की ख़ाक
छानते रहेंगे हम- सभी!?!

" अबुल-फ़क़ीर, ज़ैन-ए-आबिबीन-ए-ह़क़्क़ो-मारफ़त " की बात है!!
" कलाम " के " रमेश्वरम " की ख़ाक छानते रहेंगे हम- सभी!?!

तमाम बन्दगान-ए-रब्बे-कायनात, शशदरो-परेशाँ हैं!?!
" अज़ल " से " ख़ित्ता-ए-अदम " की ख़ाक छानते रहेंगे हम-सभी!?!

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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कपूर इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
MOB.PH.NO :-
6201728863.

जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल

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हमारी सच्ची बातें हुवीं/ हुईं, मुस्तरद, ऐ दोस्त!?
तुम्हारा " झूठ " भी होता है, मुस्तनद, ऐ दोस्त!?

जनाब-ए-राम को मिल गयी है, सनद, ऐ दोस्त!!
प्रेम-नाथ बिस्मिल भी है, मुस्तनद, ऐ दोस्त!!

" इरम " की बात क्यों कीजिये, ऐ जनाब-ए-शैख़/ शेख़!?!
इसी जहाँ में मौजूद हैं " नेक-व-बद ", ऐ दोस्त!!

" अज़ल -अबद " के " चक्कर " में फंसे हुवे/ हुए हैं, लोग!?
" अजीब चीज़ें हैं, ये भी, " अज़ल-अबद ", ऐ दोस्त ?!

" जहान-ए-फ़न-व-
तख़्लीक़-ए-सुख़न " में है, ये " त़ाक़ "!!
के/ कि " रामदास " को मिल गयी है, " सनद ", ऐ दोस्त!!

यूँ, एख़्तरा-व-तख़्लीक़-ए-सुख़न में है माहिर ये!!
कि/के, " रामदास/ क़ैस फ़ैज़ " को मिल गयी है, " सनद ", ऐ दोस्त!!

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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कपूर इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
MOB.PH.NO :-
6201728863.

जदीद-व-मुन्फरिद ताज़ा ग़ज़ल


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कैसे?, सहराओँ में, ऐ " मीम "!, चले " बाद-ए-नसीम "!
" गुल्शन-ए-इश्क़ " में फैले है, गुल-ए-तर की शमीम!!

और, तुम, किस को बताते हो, जहाँ वालों का " रब "!?!
सब का मुख़्तार है, मालिक है, " ख़ुदावन्द-ए-करीम "!!

" रब " ने क़ुर-आन में " वाज़ेह़ " न किया, राज़/ रम्ज़ रखा!!
किस को मालूम है, " मफ़्हूम-ए-अलिफ़-लाम-व-
मीम " ?!

" अहल-ए-योरोप-व-अरब " राज़/ रम्ज़ को रखते रहे राज़/ रम्ज़!?!
" फ़ारसी वालों ने " वाज़ेह़ " किया, " जावेद " का " जीम "!!

गुल्शन-ए-इश्क़ में चलती है, हवा-ए-ताज़ा "!!
कैसे? " सह़राओँ में होले से चले " बाद-ए-सबा/ बाद-ए-नसीम "!!

" वक़्त के फ़ैज़ " सुनो!, " वक़्त के इक़बाल " सुनो!
" मीर - व- ग़ालिब हैं " बङे ", " दाग़-व-जिगर " हैं " अज़ीम "!!

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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
MOB.PH.NO :- 6201728863.
कैसे?, " सहराओँ " में होले से चले, " बाद-ए-सबा/ बाद-ए-नसीम!!

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