बज़्म-ए-ग़ालिब " और " बज़्म-ए-कैफ़ी आज़मी
के मुशतरका त़रह़ी मुशायरे की बेहतरीन त़रह़ी ग़ज़ल मुलाह़ज़ा फ़रमायें!
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ख़ुशी न पाई अगर, ग़म से दोस्ती कर ली!!
बसर किसी भी तरह मैं ने/ अपनी ज़िन्दगी कर ली!!
न अपने, अपने हुए/ हुवे!, बल्कि/ बल्के ग़ैर काम आए!!
मिले न आप तो ग़ैरों से दोस्ती कर ली!!
रफ़ीक़ो!, वो/ वे तो थे अजदादो-पेद्रे-इब्राहीम!!
सुना है मैं/ हम ने, उन्हों ने भी आज़री कर ली!!
बहुतों के इश्क़ में सरशार हो गये हम भी!!
ख़ुदा को भूल गए, और काफ़िरी कर ली!!
जब अपने लोग न अपने हुए/ हुवे, तो ऐ मौला/ ऐ जावेद/ ऐ अशरफ़!!
जनाब-ए-राम/ जनाब-ए-क़ैस ने ग़ैरों से दोस्ती कर ली!!
जहाँ में मेह़नतो-मज़दूरी ख़ूब की मैं/ हम ने!!
बसर किसी भी तरह से ये ज़िन्दगी कर ली!!
इसे भी ज़ौक़/ शौक़/ इल्म-ए-सुख़नसाज़ी हो गयी ह़ासिल!!
के/ कि " रामदास/ क़ैस फ़ैज़ ने भी अच्छी शायरी/ शाइरी कर ली!!
पुराने और नये नये नक़्क़ाद/ उस्ताद कह रहे हैं ये!!
के/ कि " रामदास/ क़ैस फ़ैज़ " ने तो ख़ूब शायरी/ शाइरी कर ली!!
ख़ुदा की इतनी बङी बस्ती में सुख़नवर/ मुनव्वर/ मुह़म्मद ने!!
ये लङकी/ ख़दीजा ढूँढ/ खोज ली और इस/ उस से शादी भी कर ली!!
किसी के प्यार में सरशार हो गये वे/ ये भी!!
" हरि " को भूल गए, और काफ़िरी कर ली!!
तलाशता रहा तूभी उसे, मगर, मैं ने,
ख़ुदा तलाश लिया, और बन्दगी कर ली!!
तुम, उस को खोजते ही रह गये, मगर, हम ने,
ख़ुदा को खोज लिया, और बन्दगी कर ली!!
नज़र-नज़र में" सलामो-प्याम" होते रहे!!
ख़्मोश भी रहे, और उन से बात भी कर ली!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुख़न आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
मोबाईल फोन नम्बर :-
6201728863
बेहतरीन क्लासिकी ग़ज़ल
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यूँ रूठिए न, मेरा " कहा " मान जाइए!
मैं, आप का हूँ, मुझ से न दामन चुराइए!!
क्यों? दूर-दूर आप हैं!, नज़दीक आइए!!
इस, अपने जाँ-निसार से नज़रें मिलाइए!!
आँखों/नज़रों में आ के, दिल में उतर आप जाइए!!
कहता है दिल ये, और भी नज़दीक आइए!!
क्यों?" चौधवीँ के चाँद " पे साया हो " अब्र " का!!
अपने " रुख़-ए-ह़सीन/ रुख़-ए-जमील/ रुख़-ए-शकील " से ज़ुल्फ़ें/ गेसू/ काकुल हटाइए!!
ज़ाया(ضائع) करें फ़ज़ूल की बातों में वक़्त क्यों!?
शिकवे-गिले न कीजिए, सब भूल जाइए!!
"रज़्या/ रज़िया" अगर हैं आप तो, " बह्र-ए-वफ़ा " चलें!!
" याक़ूत " के " मज़ार "/ उश्शाक़/ दिलदार की समाधि पे " चादर/ चन्दन चढाइए!!
हैं आप सिर्फ़ इस के, किसी और के नहीं!!
ये, " राम/ दास/ क़ैस/फ़ैज़/रिन्द/ जावेद/इन्सान/ नादान/उश्शाक़/दिलदार/ राजेश को " यक़ीन ", ख़ुदारा!, दिलाइए!!
" पूनम का चाँद " छुप न सके " अब्र "/ मेघ से कभी!!
बस/ अब आप अपने चेहरे/ मुखङे से ज़ुल्फ़ें/गेसू/काकुल हटाइए!!
बादल का साया पङने न पाए अभी/कभी, ह़ुज़ूर!!
यूँ, आप अपने मुखङे/चेहरे से ज़ुल्फ़ों/गेसू/काकुल हटाइए!!
साया न हो घटा का ये, पूनम के चाँद पर!!
अपने रुख़-ए-ह़सीन/ रुख़-ए-जमील/रुख़-ए-शकील
से ज़ुल्फ़ें/गेसू/काकुल हटाइए!!
हैं आप सिर्फ़ " मेरे"/"मेरी", किसी और के/की, नहीं!!
"ऐसा", मुझे, "यक़ीन", "ख़ुदारा!, दिलाइए!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास/इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी/ राज चंडीगढ़ी!
मोबाईल फोन+ व्हाट्स-ऐप नम्बर :-
6201728863
बज़्म-ए-ग़ालिब और बज़्म-ए-साह़िर के मुशतरका त़रह़ी मुशायरे की बेहतरीन त़रह़ी ग़ज़ल मुलाह़ज़ा फ़रमायें!
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गगन की मस्त घटायें, बुला रही हैं तुम्हें!
अभी गुलाबी फ़ज़ायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
ये महकी-महकी हवायें, बुला रही हैं तुम्हें!
" ये वादियाँ, ये फ़ज़ायें, बुला रही हैं तुम्हें "!!
गगन की मस्त घटायें, बुला रही हैं तुम्हें!
शराब, शाम, फ़ज़ायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
जमालो-ह़ुस्न, अदायें, तुम्हारे वास्ते हैं!!
गुलों की शोख़ अदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
खुले हैं क़ुदरती-मैख़ाने, देखो, दीवानो!!
निगाहें, आँखें, अदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
उदास आँखों में है इल्तजा/ इल्तिजा, मुह़ब्बत की!
ख़मोश-लब की सदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
तड़प रही हैं, तुम्हारे फ़िराक़ में, हर पल!!
ये बे-क़रार हवायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
है इन्तज़ार/ इन्तिज़ार में, ख़ामोश झील का पानी!!
ये ऊदी-ऊदी घटायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
तुम्हें पुकार रहा है, ये शोर, झरने का!!
नदी की शोख़-अदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
तुम्हारी राह में, आँखें बिछाई हैं, गुलों ने!!
चमन की मस्त फ़ज़ायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
हटाओ, छोङो, ये त़र्ज़-ए-तग़ाफ़ुल, आ-जाओ!!
सुनो, के/ कि मेरी वफ़ायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
दिल-ए-ग़रीब पे खाओ तरस, चले आओ!!
हैं उट्ठे हाथ, दुआयें बुला रही हैं तुम्हें!!
इशारे समझो, हसीनाओं के, ख़ुदारा, तुम!!
निगाहें, आँखें, अदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
सजन/सनम!, है मौसम-ए-बरसात, अब चले आओ!!
गगन की मस्त घटायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
तड़प रही हैं, तुम्हारी जुदाई में, हर पल!!
ये बे-क़रार सदायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
सुनो, जदीद सुख़नवर, नयी सदा-ए-अदब/सदा-ए-सुख़न!!
ग़ज़ल की ताज़ा हवायें, बुला रही हैं तुम्हें!!
पता है, राम/ दास/ क़ैस/फ़ैज़!, सुख़नवर-अज़ीम हो, तुम भी!!
सुख़न-परस्त/ ग़ज़ल-परस्त दुआयें, बुला रही हैं तुम्हें!!
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रामदास/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी/ इन्सान प्रेमनगरी!
मोबाईल फोन/ व्हाट्स-ऐप नम्बर :-
6201728863.
बज़्म-ए-ग़ालिब-व-साह़िर, मुम्बई, और " बज़्म-ए-फ़ैज़-व-फ़िराक़ " पूने के मुशतरका त़रह़ी मुशायरे की बेहतरीन त़रह़ी ग़ज़ल मुलाह़ज़ा फ़रमायें!
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शह्र/ दह्र की सारी रवायात ने दिल तोड़ दिया!
बस " ज़ना " और " ख़ुराफ़ात " ने दिल तोड़ दिया!!
" बे-अमल ", "वक़्त के सादात " न हों तो बेहतर!
" बे-अमल " सारे ही " सादात " ने दिल तोड़ दिया!!
आरिफ़ाना/ शौक़याना ये तजाहिल, ये तग़ाफ़ुल, मैकशी!?
ख़स्लतें और ये आदात ने दिल तोड़ दिया!!
यारो!, "अन्जाम-ए-मुह़ब्बत " तो " जुदाई " है यहाँ!?
" हिज्रो-फ़ुर्क़त " की " इनायात "/ ह़िकायात ने दिल तोड़ दिया!!
मेरी " ह़स्सास-त़बीअत " मुझे जीने न देगी!?
मेरे " एह़सास " ने, " जज़्बात " ने दिल तोड़ दिया!!
" मौसम-ए-इश्क़ " नहीं, " मौसम-ए-बरसात " अभी/ कभी!?
" मौसम-ए-बाराँ " ने, " बरसात " ने दिल तोड़ दिया!!
" जान-ए-मन "!, " आधी-अधूरी सी मुलाक़ात " न कर!!
बस!, " अधूरी सी मुलाक़ात " ने दिल तोड़ दिया!!
" झूठी हमदर्दी " भली होती नहीँ!, ऐ मेरे दिल!/ राम पिया!
हर मुनाफ़िक़ की इनायात ने दिल तोड़ दिया!!
ख़्वाहिशें पूरी नहीं होतीं कभी भी किसी की!?
ख़्वाहिशात और भी ह़ाजात ने दिल तोड़ दिया!!
यारो!, ये " पिन्दो-नसीह़त ", ये " हिदायत " है " अबस "!!
" शैख़/ शेख़-ए-काबा/ शेख़-ए-दुन्या " की " हिदायात " ने दिल तोड़ दिया!!
यारो!, " अन्जाम-ए-मुह़ब्बत " भी " जुदाई " क्यों है!?
" इश्क़ो-एह़सास " ने, " जज़्बात " ने दिल तोड़ दिया!!
" रन्जो-आलाम " ने, " सदमात " ने दिल तोड़ दिया!!
" सानह़ात " और भी/ ये " ख़दशात " ने दिल तोड़ दिया!!
" चन्द अह़बाब " की किर्पा से जिगर टूट गया!!
" कुछ ह़सीनोँ " की " इनायात " ने दिल तोड़ दिया!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
MOB.PH.NO.+ WHATSAPP NO :- 6201728863.
बेहतरीन क्लासिकी ग़ज़ल
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आशिक़ी की रौ में ऐसे बह गये!
देके दिल हम उनको तन्हा रह गये!
पासदारे-ज़िन्दगी हम भी थे, यार!!
जितने इस दुन्या में ग़म थे, सह गये!
धाम उम्मीदों के, अरमाँ के भवन,
रास की यलग़ार से सब ढह गये!!
ज़िन्दगी में ह़ादसे होते रहे۔۔۔۔۔۔!?
क्यों सभी साथी बिछड़ कर रह गये?
हम थे बद-क़िस्मत, मुसाफ़त थी त़वील!!
अपनी मन्ज़िल से बिछड़ कर रह गये!?
रहगुज़ार-ए-इश्क़ में बस क़ैस फ़ैज़!,
दर्द-ए-दिल सहने को तन्हा रह गये!?
आइने के सामने, ऐ राम जी!/जावेद जी!
सब घमंडी हो के हैराँ रह गये!!
राम जी!, कुछ लोग क्यों हर दौर में,
आप की दुन्या में तन्हा रह गये ?!?
लम्सरेज़े, संगरेज़ों की तरह۔۔۔۔۔۔۔۔۔!
ख़्वाहिशों के जिस्मो-जाँ में रह गये!
आया त़ूफ़ाँ, तेज़ आँधी भी चली!!
घोंसले सारे उजङ कर रह गये!?
बोली चिङ्या, उजङा मेरा घोंसला!!
जिस के सब तिनके बिखर कर रह गये!?
ऐ ख़ुदा/ या नबी!, हर दौर में कुछ लोग क्यों!?
आप की दुन्या में तन्हा रह गये!!?
" ह़ज़रत-ए-यूसुफ़ ह़सीँ को देख कर,
सब घमंडी बन के पत्थर रह गये!??
ज़िन्दगी, एह़सास बन कर रह गई!!
हम सरापा-इश्क़ बन कर रह गये!!
फ़स्ले-गुल में आशियाँ उजड़ा है जब,
तिनके सारे ही, बिखर कर रह गये!!
" काख़"-ए-ईराँ, अरबी-ऐवाँ, मह्ले-शाम,
वक़्त की यलग़ार से सब ढह गये!!?
" राजा-जानी!", आप इस संसार में,
दर्द-ए-दिल सहने को तन्हा रह गये!?
बादशाहों के मह़ल्लात-ए- जहाँ!!
वक़्त की यलग़ार से सब ढह गये!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुख़न, आइंदा, फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
MOB.PH.NO.+ WHATSAPP NO :-6201728863.
बज़्म-ए-ग़ालिब-व-इक़बाल और बज़्म-ए-ह़सन कमाल के मुशतरका त़रह़ी मुशायरे की बेहतरीन त़रह़ी ग़ज़ल मुलाह़ज़ा फ़रमायें
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दोस्ती की रौ में जब हम बह गये!
दे दिया दिल उन को, तन्हा रह गये!!
ज़िन्दगी बस यास बन कर रह गयी!
हम " सरापा- दर्द " बन कर रह गये!!
पूछते वो हाल, रखते दिल पे हाथ!!
हाय!, ये " अरमान ", दिल में रह गये!
जानी!, हम थे, ज़िन्दगी में " सख़्त-जाँ
जितने, इस दुन्या के ग़म थे, सह गये!!
यूँ ही रह दीवाने!, " बद-ह़ाल-ए-वफ़ा "
हम से, ये सह़रा के ज़र्रे कह गये!!
मह़्ल उम्मीदों के, अरमानों के सब,
उन के " ज़ुल्म-ए-ना-रवा "से ढह गये
फ़स्ल-ए-गुल में आशियाँ उजड़ा मेरा,
सारे तिनके क्यों बिखर कर रह गये!?
इश्क़ो-उल्फ़त के सफ़र में " क़ैस"हम!
दर्द-ए-दिल सहने को, तन्हा रह गये!?
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर राज चंडीगढ़ी/ इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी!
एशियन डाईग्नोस्टिक्स सेन्टर, ख़दीजा नरसिंग, राँची-हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया, एशिया!
MOB.PH.NO.+ WHATSAPP NO :-6201728863.
बज़्म-ए-ग़ालिब-व-इक़बाल और बज़्म-ए-ह़सन कमाल के मुशतरका त़रह़ी मुशायरे की बेहतरीन त़रह़ी ग़ज़ल मुलाह़ज़ा फ़रमायें
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ग़म-आशना मिले कोई दिल-आशना/ आश्ना मिले!!
अपनी ये जुस्तजू है, कोई हम-नवा मिले!!
इस राह-ए-ज़िन्दगी में नज़र-आशना/ आश्ना मिले!!
ख़्वाहिश/ चाहत/ ह़सरत थी/ है, कोई " साहब-ए-इश्क-व-वफ़ा " मिले!!
" दिल की ये आरज़ू थी, कोई दिलरुबा मिले "!!
संसार में " रफ़ीक़-ए-सफ़र " " आप-सा " मिले!!
क़िस्मत से, मेरे बख़्त से, तक़दीर से मुझे!!
जिस की " वफ़ा " मिसाली हो, वो बा-वफ़ा मिले!!
" अहल-ए-वफ़ा " का क़ह़्त़ नज़र आया शह्र/ शहर/ दह्र/ दहर में!?
जब भी हुवी/ हुई तलाश, तो, " अहल-ए-जफ़ा " मिले!?
" ज़ख़्म-ए-जिगर " पे उस के, रखो, " मर्हम-ए-वफ़ा "!!
" राह-ए-वफ़ा " में जब भी, कोई " दिल-जला " मिले!!
" दुन्या/ दुनिया" का बार/ बोझ, सर/ सिर से हटे, तो, हो " बन्दगी "!!
और/ मैं, " बन्दगी " करूँ, तो, मुझे भी " ख़ुदा " मिले!!
वो/ वह लोग, जो, " अना/ ख़ुदी " के पुजारी थे, दह्र/ दहर में!!
उस/ रब के क़रीब रह के भी उस/ रब से " जुदा" मिले!?
अरबाब-ए-ज़ुल्म-व-जौर/ ज़ोर/ जब्र का/ के " मुँह/ रुख़ " मैं भी फेर दूँ!!
किरदार को मेरे/ मिरे भी कुछ-ऐसी " अदा " मिले!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कपूर इन्सान प्रेमनगरी/ अब्दुल्लाह जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी, डाक्टर ख़दीजा नरसिंग होम, एशियन डाईग्नोस्टिक्स सेन्टर, राँची-हिल्-साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया, एशिया!
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