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ताज़ा ग़ज़ल : नेक राहों का वो क्यों आज सफ़र भूल गए

 ताज़ा ग़ज़ल : नेक राहों का वो क्यों आज सफ़र भूल गए

“ ताज़ा ग़ज़ल ”

जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी

मोटिवेशनल हिंदी शायरी | Motivational Ghazal

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नेक राहों का, वो, क्यों, आज, सफ़र भूल गए !?!
देखो!, भटके हुए हैं, सीधी डगर भूल गए !? !

“ ग़ैर ” के दर के भिखारी बने, तुझ को छोड़ा !?
मेरे भगवान/ अल्लाह !, ये बन्दे, तेरा दर भूल गए !?

हाँ !, मेरा इश्क-व-वफ़ा, तुम भी अगर भूल गए !!
ख़ून-ए-दिल, ख़ून-ए-जिगर, हम भी मगर भूल गए !!

“ शेख़ साहब की ज़बाँ पर नहीं क्यों ज़िक्र तेरा !?!
क्या तेरा कैफ़-ए-नज़र, फ़ैज़-ए-नज़र भूल गए ?!!

“ हूर ” से दूर रहा करते हैं क्यों, शेख़, अभी !?!
क्या तेरी मस्त नज़र, पतली कमर, भूल गए ?!

रक्खी बस तेरी इनायत पे नज़र, हम ने भी !!
ख़ून-ए-दिल, ख़ून-ए-जिगर अपना मगर भूल गए !!

बे-ख़ुदी में न मिला अपना पता, अपनी ख़बर !!
किस जगह अपना था, इस शह्र में घर, भूल गए ?!!

देखते ही तुझे, दीवाने तेरे, हो गये ख़ुश !!!
दर्द-ए-दिल भूल गए, दर्द-ए-जिगर भूल गए !!!

याद आती ही रही मस्त नज़र, पतली कमर !!
कब तेरी मस्त नज़र, पतली कमर भूल गए ?!

रक्खी तुम ने भी, हमारी ही मुहब्बत पे नज़र !!
दर्द-ए-दिल, दर्द -ए - जिगर अपना मगर भूल गए !!

शेख़-व-पंडित की ज़बाँ पर नहीं अब ज़िक्र तेरा !?
क्या तेरा “ फ़ैज़-ए-नज़र, हुस्न -ए - नज़र भूल गए ?!

दूर हैं मंजिलों से अपनी, सभी राही अब/ कि आज !?
ऐसे भटके हैं मुसाफ़िर, कि, सफ़र भूल गए !?

हो गये ख़ुश्क, ग़म-व-दर्द-व-अलम से क्या अश्क !?!
यारो !, वो अश्क टपकने का हुनर भूल गए !?

सब्र और ज़ब्त़ के अब दायरे में रहते हैं !!!
मेरे आँसू भी टपकने का हुनर भूल गए !!!

आँखों के “ जाम ” पिया करते थे दिन-रात, सभी !!
लोग अब नज़रों से पीने का हुनर भूल गए !?

शेख़ साहब ने, सुना है कि, क़सम तोङ दी है !?
इतनी जलदी, वो, मुहब्बत का असर भूल गए !?

दर्द-व-ग़म और क़लक़, सदमे से क्या ख़ुश्क हुए !?!
अश्क इन के भी, टपकने का हुनर भूल गए !?!
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जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी, डॉक्टर ख़दीजा नरसिंग होम, राँची-हिल्-साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया !

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