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मैं हूँ रसभरी रस से ही भरी : रसभरी मिठाई पर कविता

मैं हूँ रसभरी रस से ही भरी : रसभरी मिठाई पर कविता

rasbhari-mithai

Rasbhari Mithai Par Kavita Poem on Rasbhari Sweets in Hindi

चित्रलेखनः 122
दिनांकः 18 नवंबर, 2022
दिवाः वृहस्पतिवार
शीर्षकः रसभरी
मैं हूँ रसभरी रस से ही भरी,
मेरे नाम से चौंक मत जाना।

बच्चे युवा प्रौढ़ और वृद्धजन,
पहले मुझको खाकर बताना।।

मैं जन जन की प्रिय मिठाई,
मुझे खाने को लोग हैं तरसते।

देख बनते दुकान में रसभरी,
जल्दी पाने हेतु सभी बरसते।।

देशी घी में पहले मैं हूँ पकता,
चीनी के चासनी में मैं छनता।

फिर खरीदते हैं सभी ग्राहक,
ताजा गरम खाने में है बनता।।

मैं हूँ रसभरी रस से ही भरी,
जन जन हेतु राष्ट्रीय मिठाई।

मैं ही तो हूँ जलेबी कहलाता,
खरीदने में जन करते ढिठाई।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार।

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