नहा लो गंगा बहा दो गंगा : कविता | Naha Lo Ganga Baha Do Ganga : Hindi kavita
नहा लो गंगा
बहा दो गंगा
मन से दंगा निकालकर।
हो जाओ चंगा
बोलकर गंगा
बाँह में बाँह डालकर।।
न हो नृत्य ही नंगा,
न हो तू अर्द्धनंगा,
मन में पंगा पालकर।
न उठा तू अंगा,
न डाल तू अड़ंगा,
पैरों में जंगा डालकर।।
न चल बेढंगा,
चल पग तू ढंगा,
न तंगा तू बदहाल कर।
बँध समाज के फंगा,
मत बन बंगा,
चल उमंगा ढालकर।।
मत बन तू रंगा,
मन बहा दे तरंगा,
कर तिरंगा थामकर।
हो देशभक्ति संगा,
बन जाओ विहंगा,
भारत माता को प्रणाम कर।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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