हिंदी कविता : कविता का सागर Kavita Ka Sagar Hindi kavita
कविताओं का मैं सागर हूँ,
नहीं हममें अथाह पानी है।
न बचपन न वृद्धा देखा मैंने,
सदा मेरी एक ही कहानी है।।
लंबे चौड़े का अंत नहीं मेरा,
सर्वत्र घुटने के नीचे पानी है।
डूबने योग्य पानी नहीं इसमें,
डूबकी लगाए वही जवानी है।।
ज्वार भाटे भी आते बहुतेरे,
विनम्रता की यह निशानी है।
जो भी तना है वही तो बहा है,
मुझे समझे गुणी मुनि ज्ञानी हैं।।
सदा रहता मैं एक ही भाव में,
एक ही भाव में मैं बहता हूँ।
मानव हो एक भाव में आओ,
सबसे यही तो मैं कहता हूँ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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