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आज के मुशायरे की तज़मीनी-व-तरह़ी ग़ज़ल पसन्दीदा

आज के मुशायरे की तज़मीनी-व-तरह़ी ग़ज़ल( पसन्दीदा)

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तेरा होना था!, रिहाई तो नहीं माँगी थी!
तेरी मह़्फ़िल से जुदाई तो नहीं माँगी थी!!

" रूह़ " को " जिस्म " से क्यों तूने जुदा कर डाला!?
" गुल " ने " ख़ुश्बू " की जुदाई तो नहीं माँगी थी!?!

" क़ैदि-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरहगीर " बनाना था मुझे!!
" क़ैद माँगी थी, रिहाई तो नहीं माँगी थी!!"

सिर्फ़ तुझ ही को बनाना था" मुह़ब्बत का असीर/ ग़ुलाम!!
तेरी दुन्या/ दुनिया की ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी!!

दिल के बदले, तेरा दिल माँगा था तुझ से, ज़ालिम!!
" चीज़ अपनी थी, पराई तो नहीं माँगी थी!!

सारे संसार के भगवान्!, पता/ ख़बर है तुझ को!!
मैं ने " दाता/ आक़ा/ रामा/ मालिक/ ख़ालिक़ की ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी!!

बन्दगी चाही थी, अल्लाह त्आला की, बस!!
" ना-ख़ुदाओं की ख़ुदाई " तो नहीं माँगी थी!!

झूठी तारीफ़ ही से" क़ूवत-ए-गोयाई " गयी!!
दाद चाही थी, ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी!!

" नींबू/ लेमन " माँगी थी, मगर तूने " मिठाई " भेजी!?
" बीवी/ पत्नी " ने तुझ से मिठाई तो नहीं माँगी थी!?

आप के " शेर-व-सुख़न ", ह़ज़रत-ए-अशरफ़/ मोहन!, हैं अहम!!
आप से " नग़मा-सराई " तो नहीं माँगी थी!?
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इस त़वील त़रह़ी-ग़ज़ल के दीगर अश्आर फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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रामदास मोहन प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी, जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी मन्ज़िल, सिन्गर जौन कुमार फ़रीद क़ैसर चाँद अकबराबादी बिल्डिंग्स, आशियाना, संतोषपूर्, ज़ीनत कोलोनी, बिसरा, सुन्दरगढ, ओडीशा, इन्डिया! 

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