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पति का सम्मान करो : लधुकथा | प्रेरणादायक हिंदी कहानी

पति का सम्मान करो : लधुकथा | प्रेरणादायक हिंदी कहानी


पति का सम्मान करो
अपनी चार भाई- बहनों में सबसे छोटी अराधना बचपन से हीं जिद्दी, मुडी एवं पिनकाही स्वभाव की लड़की थी। वह एक धार्मिक लड़की भी थी।अराधना बचपन से हीं दो-दो धंटे तक पूजा-पाठ किया करती थी। बचपन में यदि कोई भी व्यक्त्ति अराधना की गलती करने पर उसे रोक-टोक या कुछ बोल देता तो वह रो पड़ती थी और उसे दो-चार बात सुना देती थी। लेकिन अराधना के माता-पिता एवं भाई-बहन उसे नहीं तो कभी रोकते, टोकते थे और नहीं कभी डाँटते थे। उसे एक थप्पड मारना भी बहुत दूर की बात थी जिस कारण उसका मन बढ़ा हुआ रहता था।

पच्चीस वर्ष की उम्र में उसकी शादी कौशल नगर के राम प्रवेश प्रसाद के बत्तीस वर्षीय एकलौते बेटे श्याम सुन्दर से हो गयी थी।श्याम सुंदर के पिता बचपन में हीं गुजर गये थे ।श्याम सुंदर किसी कंपनी में प्राइवेट नौकरी करता था। श्याम सुंदर अपनी माता का प्यारा-दुलारा एवं काफी संवेदनशील लड़का था।

शादी के पहले जो सपने श्याम सुंदर ने देखे थे शादी के बाद उसके एक-एक सपने ध्वस्त होते जा रहे थे। समय पर चाय, नास्ता एवं खाना मिलना अब बीते दिनों की बात हो गयी थी। शादी के पहले श्याम सुंदर की माँ अपने थके हारे बेटे को हाथ- पैर दबा देती एवं तेल लगा देती थी जो अब सपना हो चला था।उसकी पत्नी में अपने पति के प्रति सेवा भाव एवं पति-परमेश्वर है कि भावना नहीं थी। वह कहती थी कि " क्या मेरा पति मेरा भी पैर दबाता है एवं मेरे धर के कामों में हाथ बटाता है। मैं उसका पैर क्यों दबाऊँ एवं मैं उसकी सेवा क्यों करूँ? पैर दबाना एवं उसकी सेवा करना मेरे बस की बात नहीं, वह अपनी सेवा खूद कर लिया करे। वह अपना हाथ-पैर खूद चलाया करे ।"

अराधना का एक पन्द्रह वर्षीय बेटा भी था, जिसका पढाई-लिखाई में तनिक भी मन नहीं लगता था। उसका बोली-बचन भी बिगड़ा जा रहा था।इसी बात को लेकर जब श्याम सुंदर अपने बेटे को डॉटता या एक भी थप्पड मारता था तो अराधना अपने बेटे की हर बात में बचाव करती थी तथा अपने पति पर हीं चिल्लाने लगती थी और बात-बात पर रोने लगती थी।

श्याम सुंदर भी अन्य लोगों की तरह चाहता था कि मैं अपनी पत्नी को सदैव खुश रखूं, उसे कहीं धुमाने ले जाऊँ पर उसकी टेढ एवं अड़ियल स्वभाव के कारण वह कहीं ले जाने से डरता था। उन दोनों के पर्व त्योहार की शुरुआत हीं आँसुओं, आपसी लड़ाई एवं कलह से शुरू होती थी।

श्याम सुंदर अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार व दुर्विचार से तंग आकर अपनी आत्महत्या करने जा रहा था तभी उसकी आंखों के सामने उसे अपनी बिधवा माँ का चेहरा याद आ जाता था।वह सोचता था कि मेरे मरने के बाद मेरी माँ की क्रियाकर्म एवं श्राद्ध कौन करेगा। इसी सोच के कारण वह आत्महत्या करने का विचार मन से त्याग देता था।

एक दिन श्याम सुंदर की बिधवा माँ शान्ति देवी अपने बेटे को उदास देखकर अपनी बहू से बोली एक बात कहूँ बहू, "हर बात पर अपने पति से मूंह लगाना, उसे दो-चार बात सुनाना और बात-बात पर अपनी आँखों में आँसू लाना अच्छी बात नहीं हैं। भगवान सिर्फ पूजा-पाठ से नहीं खुश होते हैं। वे हमारे कर्म से एवं हमारे सद्कर्म से खुश रहते हैं। अपने पति के विचारों, भावनाओं एवं उनकी इच्छाओं को भी समझा करो।बहू पहले अपने पति की सेवा-सम्मान करो, फिर पूजा-पाठ, भगवान-भगवान करो।पहले अपने पति एवं उनके परिवार को खुश नहीं रखोगी और चाहोगी कि भगवान खुश हो जायें, ऐसा कभी नहीं हो सकता है। गृहस्थ जीवन में परमेश्वर से मिलने का रास्ता पति एवं परिवार की सेवा सुश्रुषा से होकर हीं गुजरता है।पति को खुश रखो,
भगवान अपने आप खुश हो जायेंगे ।"

अपनी सास की तार्किक एवं सत्य बातें सुनकर अराधना का चेहरा शर्म से झूक गया, मानो उसे अपनी गलती का अहसास हो गया हो।
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अरविन्द अकेला, पूर्वी रामकृष्ण नगर, पटना-27

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