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जलधर को घिरते देखा : हिंदी कविता | Jaldhar Ko Ghirte Dekha Hindi Kavita

जलधर को घिरते देखा : हिंदी कविता | Jaldhar Ko Ghirte Dekha Hindi Kavita


अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक
मित्रमण्डल जबलपुर- 1
प्रतियोगिता हेतु

विषयः जलधर को घिरते देखा

दिनांकः 18 सितम्बर, 2022
वारः रविवार

मैंने जलधर को घिरते देखा,
जलधर को ही घेरते देखा।

जलधर नभ से परिणत हो,
धरा जलधर मिलते देखा।।

जलधर बना जल की बूँदें,
बरसा नग वृक्ष लताओं पर।

जलधर जब धरा पे उतरा,
मिला जलधर खताओं पर।।

जलधर वाष्प दे जलधर को,
जलधर जलधर को दे जल।

एक जलधर नभ में होता,
दूजा जलधर होता है थल।।

नभ में जलधर हवा में उड़े,
दिखने में लगे बहुत थोड़।

थल पे जलधर विस्तृत होता,
दिखता कहीं ओर न छोर।।

जलधर जलधर एक होता,
जलधर हाल जलधर जाने।

जलधर है प्रकृति संसाधन,
विफल होते विज्ञान पैमाने।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश

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