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तैयारी है यह जंग की : जंग पर कविता Jang Par Kavita

तैयारी है यह जंग की : जंग पर कविता Jang Par Kavita

जंग
बढ़े चलो तुम वेग में,
चढ़े चलो तुम तेज में।

तैयारी है यह जंग की,
जाना नहीं है सेज में।।

कर में तेज तेग हो,
तन में भरा उद्वेग हो।

कदम तेरा रूके नहीं,
तेजी में बढ़ते डेग हो।।

बैठ तुम सजो नहीं,
खेल तेल तजो यहीं।

दुश्मन खड़ा रण में,
शीघ्र जा बजो वहीं।।

तन में भरा जोश हो,
मन में भरा रोष हो।

भूल जाओ निज को,
किन्तु न मदहोश हो।।

वतन का पुकार सुनो,
पतन का शिकार चुनो।

सुनो नहीं व गुनों नही,
मन का ये सितार बुनो।।

अहंकार का आहार बन,
विजय का ही हार बन।

शेर देख तुम डरो नहीं,
सेर पे तू सवा सेर तन।।

होना नहीं तूझे तंग है 
संग तेरे ही माँ गंग है।

सावधान ही रहो सदा,
जीतना शुभ यह जंग है।।

भारतीय शूर वीर हो,
दुश्मन देखकर दंग हैं।

लेते कभी वे चैन नहीं,
निद्रा भी उनकी भंग है।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश

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