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नमन है दीदी सरोज जी को : श्रद्धेया रानी सरोज गौरीहाड़ जी आज हमारे बीच नहीं रहीं

नमन है दीदी सरोज जी को : श्रद्धेया रानी सरोज गौरीहाड़ जी आज हमारे बीच नहीं रहीं

अरुण दिव्यांश
नमन है दीदी सरोज जी को,
अमर कीर्ति आज कर गईं ।
जन जन को संस्कार देकर,
आज ईश्वर को ही वर गईं ।।
नहीं हो सकता उनकी भरपाई,
स्नेह अपार हृदय में भर गईं ।
जन जन को उपहार ही देकर,
आज ईश्वर को ही वर गईं ।।
हमें शिकायत यही जमाने से,
सुसंस्कृति क्यों नहीं छा रही ।
सुसंस्कृति की प्रेरणा देते देते,
धरा से कवयित्री ही जा रही ।।
देख रोक ले उन्हें तू ऐ जमाने,
क्या चला संस्कृति आजमाने ?
छिन रहा आज तू है संस्कृति,
जमाने ही देंगे आजीवन ताने ।।
अब भी छाओ मन में जमाने,
जन जन सुसंस्कृति के गाने ।
मन मस्तिष्क में रच बस जाए,
सुंदर सभ्य सुसंस्कृत तराने ।।
अग्रजा का यही आशीष रहे,
दुनिया को मिले बख्शीश रहे ।
सुदर सभ्य संस्कृति के आगे,
सदा झुकता हमारा शीश रहे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार

नोट - यह रचना स्वतंत्रता सेनानी, साहित्य भूषण, कला एवं संस्कृति संरक्षिका, पं रघुनाथ तलेगाँवकर फाउंडेशन ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रद्धेया रानी सरोज गौरीहाड़ जी जो आज हमारे बीच नहीं रहीं, उनके चरणों में सादर समर्पित है ।

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