मानव तेरी गजब कहानी गंगाजल को कहे बहता पानी : व्यंग्य कविता
मानव तेरी गजब कहानी
गंगाजल को कहे बहता पानी।
मानव तेरी गजब है कहानी।।
आए धरा पर जिस दिन तुम,
छठे रोज नहवावन हुआ था।
पवित्र गंगाजल से नहवाकर,
बदन तेरा यह पावन हुआ था।।
छठे रोज ही छठिहार हुआ था,
माता पिता हुए थे पानी पानी।
गंगाजल को कहे बहता पानी,
मानव तेरी यह गजब कहानी।।
मात पिता ही आचार सिखाए,
देकर तुम्हें आदर स्नेह दुलार।
मात पिता ने ही सभ्य बनाया,
थोड़ा भी नहीं उनका आभार।।
छोटी बात पर उन्हें झिड़कते,
अबतक तो माने गए नादानी।
गंगाजल को कहे बहता पानी,
मानव तेरी यह गजब कहानी।।
पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया,
चले गए अब तुम भी कमाने।
बनने लगे तुम गँजेड़ी नशेड़ी,
नशापान मात पिता से छुपाने।।
शादी पूर्व गंगाजल से नहवाया,
जब चढ़ी थी तेरी ही जवानी।
गंगाजल को कहे बहता पानी,
मानव तेरी यह गजब कहानी।।
परिवार ले बाहर तुम निकले,
मात पिता यहाँ पे तड़प रहे थे।
करते जब तुमसे कुछ विनती,
फोन पर उन्हें ही झड़प रहे थे।।
मृत्यु बाद भी गंगास्नान कराए,
जिसको कहते थे बहता पानी।
गंगाजल को कहे बहता पानी,
मानव तेरी यह गजब कहानी।।
बालापन तो खेल में ही बीता,
कुछ नहीं समझा जवानी को।
अनादर पाते मात पिता गुजरे,
तेरे बेटे कैसे समझें बुढ़ानी को।।
तुम तो चल दिए सुरलोक में,
रह गयी यहाँ तेरी ही जुबानी।
गंगाजल को कहे बहता पानी,
मानव तेरी यह गजब कहानी।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560
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