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कुर्बानी पर एक नजर | Qurbani Par Ek Nazar

कुर्बानी पर एक नजर | Qurbani Par Ek Nazar

सोनू रजक असिस्टेंट प्रोफेसर मानु कालेज आफ टीचर एजुकेशन दरभंगा (बिहार)

ईद-उल-अजहा (बकरीद) का स्पष्ट अर्थ है कि मनुष्य साल में एक ऐसा दिन त्योहार के रूप में मनाये जिस दिन वह अपने अंदर त्याग, बलिदान और कुर्बानी को तत्व रूप में महसूस करे।

ईद-उल-अजहा (बकरीद) का स्पष्ट अर्थ

अजहा का अर्थ है त्याग की भावना का संकल्प लें और क्षमा, दया तप, त्याग और मनोबल को अपनी जीवन का हिस्सा बनाये।जिसमें प्रेम शांति सद्भाव एवं आत्मसंयम का भाव पैदा करे और अपने अंदर के काम, क्रोध, मद, मोह, अहम, अहंकार का त्याग करे कुर्बान करे। यही कुर्बानी का मूल इस्लामिक दर्शन है, फिर दान, क्षमा के भाव को प्रदर्शित करे और परहित को अपना नैतिक आदर्श बनाये, फिर कुर्बानी करे, भोगपान करे, खुशी मनाये। कुर्बानी का गलत मतलब ही समझ रखा है लोगों ने। खुदा या अल्लाह यदि बकरे से खुश होता, तो ब्रह्मांड के सबसे विशालकाय जानवर ही क्यों न कुर्बान कर दिया जाता।खुदा या अल्लाह के यहाँ किसी का खून नहीं बल्कि त्याग और समर्पण का भाव पहुँचता है। खैर ! आज के दिन हम सभी शिक्षक होने के नाते यह प्रण लें कि समाज तथा खाश कर शिक्षा विभाग के सभी स्तरों पर तमाम भ्रष्ट, निकम्मे, कामचोर, स्वार्थी और चापलूस और दलाल प्रवृत्ति के कर्मियों के कुकर्मों की ही कुर्बानी दे दी जाय तभी हम सबकी बकरीद सफल होगी। अंततः आप सबों को ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद की दिली शुभकामनाएं।

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