दिलजोई, शीर्षक: हमसफ़र विधा: कविता – डॉ. कवि कुमार निर्मल
विषय: दिलजोई
शीर्षक: हमसफ़र
विधा: कविता
कर दिलजोई मर्दों की, सही राह पर चलते।
कर फ़ज़ीहत माँ-बहन की, तीर मार हंसते।।
दिलजोई मुलाकात- आज की, फूल झड़ रहे।
गुलिस्तां में टहल, सौंधी मिट्टी महक झूम रहे।।
नासाद हो, ग़म का फसाना लिख रहे हमदम।
बग़ैर मोहब्बत, बेकार यह इंसानी का जनम।।
हार कर बार बार, जी रहे दिलजोई के सहारे।
वख़्त आएगा अच्छा, चमकेंगे कभी सितारे।।
हौसला अफजाई दिलजोई, कलमकार को जरुरी।
अमीरों की जी हजुरी करना, गरिबों की मजबूरी।।
दिलजोई देख, हार कर भी जीतने की चाह जगती।
हवाखोरी की सफर, साया बन साथ वह चलती।।
दिलजोई कर हमसफ़र, ताबूत तक हीं जाता।
प्यार कर नफ़रत करना, गलत कहा जाता।।
शिरकत की- दिल खोल, आपको देख कर यारब।
तालियों की आवाज़ सुन, उठ चल पड़े साहब।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
टूटी उम्मीद शायरी : उम्मीद टूटने पर शायरी
उम्मीद आँसू देती
टूटती उम्मिदों से हौसलामंद शाद नहीं होते।
उम्मीदों के सहारे जाँबाज़ कत्तई नहीं चलते।।
हौसला बुलंद हो तो नाउम्मीद बंदा नहीं होता।
पहाड़ी चट्टानों को तोड़ उस पार वह है होता।।
उम्मीद मत रखना बंदे दिल में- नेक सोच ही धरम है।
पसीना ही दौलत- उम्मीद कर न बैठ सही तो करम है।।
तदबीर तुझसे है, तकदीर भी ऐ मालिक तुझसे है।
ये साँसे भी तुझसे है, हर धड़कन में तेरा फ़न है।।
क़ायनात का मालिक साथ, जहाँ की रवानी तुझी से है।
ख़ौफ मौत का नहीं कर, खुशनसीबी मिलना उनसे है।।
इंसान हम, गिरतों को हाथ थाम उठाना जिंदगानी है।
दर्द सह सारा, औरों का दर्द पीना- सच्ची फ़कीरी है।।
बच्चे का सहारा खुद-ब-खुद दौड़ कर चला आता है।
बुढ़ा उम्मीद नहीं खोता, नेह में उम्र गुज़ार मर जाता है।।
चाहतों के बोझ तले दब जाना चस्का, यह नज़ायज है।
शौहरत से आशिक़ी, लड़खड़ा गिरे, यह मुमकिन है।।
सब लुटा- कुछ पाने की चाहत हम नहीं रखते।
परवरदीगार हैं साथ, हर नामुमकिन कर गुजरते।।
टूटती उम्मीद अगरचे इत्तफाक, मेहनत नहीं थमती है।
नामुमकिन कर मुमकिन, ख़्वाब ही बन जाता मंजर है।।
माना दिया बहुत तुमने अपने परायों खातिर, बुनियादी डगर है।
तेरा था कहाँ कुछ जो दे दिया, सब मालिक का रहमो-करम है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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