बुद्ध पूर्णिमा : महात्मा बुद्ध पर कविता
बुद्ध पूर्णिमा
(कविता)
“बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर भगवान बुद्ध को कोटि कोटि प्रणाम और आप सभी मित्रों, साथियों एवं प्यारे बच्चों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाईयां।”
बैसाख महीना पूर्णिमा की, है खास बात
इसी दिन भगवान बुद्ध ने रचा इतिहास।
महाराज शुद्धोदन बने पिता सिद्धार्थ के,
महारानी माया की, पूरी हो गई थी आस।
राजकुमार सिद्धार्थ ही महात्मा बुद्ध बने,
भगवान बुद्ध के कारण दिन हुआ खास।
बैसाख महीना पूर्णिमा……….
राजपाट से मोह भंग, जब आई जवानी,
राजमहल से बाहर शुरू हुई नई कहानी।
पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़ा,
धन दौलत और राज सुख से मन मोड़ा।
बीमारों, बूढ़ों को देखते ही दिल पसीजता, हो गया उनको जीवन मृत्यु का एहसास।
बैसाख महीना पूर्णिमा…………
महात्मा के रूप में जग को दिया संदेश,
घर घर में गूंज रहे हैं उनके सारे उपदेश।
सभी को सत्य, अहिंसा की दिखलाई राह,
परोपकार हेतु अपनी बिल्कुल नहीं परवाह।
गया बिहार का, बौद्ध धर्म का केंद्र बना,
कहीं विरोध भी हुआ, पर हुए नहीं उदास।
बैसाख महीना पूर्णिमा………..
लंबी तपस्या बाद उनको प्राप्त हुआ ज्ञान,
बौद्ध धर्म के कारण मिली विशेष पहचान।
सम्राट अशोक ने भी, बौद्ध धर्म अपनाया,
अनुयायियों ने संदेश सारे जग में पहुंचाया।
लुंबिनी के जंगल से मंगल की शुरुआत है,
कम ही संत हैं भगवान बुद्ध के आसपास।
बैसाख महीना पूर्णिमा………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
Buddha Purnima Mahatma Buddha Kavita
विषय : महात्मा बुद्ध
दिनांक : 12 मई, 2025
दिवा : सोमवार
जिस नाम का सिद्ध अर्थ हुआ,
उसका नाम ही सिद्धार्थ हुआ।
जीवन शांति हेतु घर को त्यागा,
उसका जीवन ही परमार्थ हुआ।।
जन जन के हृदय झाॅंक देखा,
दर्द किसी का भी सहन न हुआ।
व्यथित हुई उनकी यह आत्मा,
सहन करना भी वहन न हुआ।।
भ्रमण किया जब दुनिया का ये,
बोधगया में आकर वे शांत हुए।
देने लगे वे उपदेश घूम घूमकर,
राष्ट्र आवश्यकता नितांत हुए।।
जब शोध हुआ तो बोध हुआ,
बोध हुआ तब जाकर बुद्ध हुए।
बुद्ध हुए तब आगे वे सिद्ध हुए,
औ जब सिद्ध हुए तो शुद्ध हुए।।
शुद्ध हुए तो हुए महान आत्मा,
फिर बन गए अब वे महात्मा।
चरितार्थ हुआ नाम महात्मा बुद्ध,
कलियुग हेतु हो गए देवतात्मा।।
शांति का था द्योतक जीवन यह,
शांति के थे बहुत बड़े अधिष्ठाता।
बुद्ध के उपदेश में युद्ध कहाॅं से,
जिन्हें शांति से था गहरा नाता।।
चल रहा था युद्ध मस्तिष्क में,
विश्व में शांति कैसे स्थापित हो।
कैसे दूर हो ईर्ष्या द्वेष भावना,
कैसे धरा से युद्ध विस्थापित हो।।
कैसे जगे समता की ये भावना,
कैसे मन में शुद्ध जागृति आए।
कैसे समझे ये मानव मानव को,
कैसे प्रदूषण से ये निजात पाए।।
दिया उपदेश शांति का उन्होंने,
विश्व पलट मार्ग चल चुका था।
कई देश हुए तब बहुत प्रभावी,
अशोक मन अहिंसा पल चुका था।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार।
भगवान गौतम बुद्ध पर कविता
समस्त माताओं बहनों एवं बंधुओं को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जब जब होती है धर्म की हानि,
तब तब कोई अवतार होता है।
होता है भाग्यशाली वह मानव,
महामानव जिसके द्वार होता है।।
कपिलवस्तु के पावन भूभि पर,
राजा शुद्धोदन हुए भाग्यशाली।
जन्मे सिद्धार्थ माँ की कोख से,
जैसे अमृत भरा मिला प्याली।।
लिए सिद्धार्थ राजकुल में जन्म,
राजकुल कत्तई उन्हें नहीं भाया।
द्रवित हुए दुनिया के दुःख देख,
हृदय उनका बहुत अकुलाया।।
किया शिकार देवदत्त ने हंस का,
सिद्धार्थ ने था जिसको बचाया।
न्याय किया था शुद्धोदन ने जब,
हंस चलकर सिद्धार्थ सम आया।।
सहन नहीं हुआ दुनिया का दुःख,
सैनिक संग निकले थे भ्रमण में।
तट पर जा राजसी वस्त्र उतारा,
सैनिक सौंप निकल गए वन में।।
लग गए देश विदेश अब घूमने,
देने लग गए सुंदर शांति उपदेश।
लाखों बने लोग इनके अनुयायी,
ज्ञान ध्यान हेतु आए अपने देश।।
बिहार से निकले सिद्धार्थ नाम से,
बिहार मे आए बन महात्मा बुद्ध।
बोधगया बना तब तपोवन भूमि,
बिहार हुआ इनके कारण शुद्ध।।
धन्य हुआ यह बिहार की धरती,
गौतम बुद्ध महात्मा बुद्ध नाम से।
बन गया धार्मिक पर्यटक स्थल,
बोधगया बौद्धधर्म रूपी काम से।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
गौतम बुद्ध पर कविता | बुद्ध पूर्णिमा पर कविता | Gautam Buddha Kavita
होइए अवतरित बुद्ध
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
है अशांत ये लोभ की दुनिया,
रोता है मुन्ना, रोती है मुनिया।
भटक रहा स्वछंद अंगुलीमाल,
कर रहा नष्ट अहं में जानमाल।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
बढ रहा है घमंड का ज्वाला,
धू-धू जल रहा सहस्त्रों आला।
मूक दर्शक बने खड़ा है मानव,
रही न हिम्मत, देख कृत्य दानव।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
प्रेम की निर्मल गंगा बहाने आइए,
दिलों को जोड़ने का मंत्र पढाइए,
हे साधक ! सुन लीजिए पुकार,
करता है सकल लोक गुहार।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
बुद्ध पूर्णिमा पर कविता - Poem on Buddha Purnima in Hindi
आया बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार
लाया शांति का असीम उपहार
आज प्रभु बुद्ध का जन्म दिन
और पावन निर्वाण का त्योहार
कहलाती है ये बुद्ध जयंती पर्व
भारतीय करते हैं बुद्ध पर गर्व
बुद्धू कहते करो ज्ञान की प्राप्ति
ज्ञान से मिलती है अनुपम शांति
शांति से मिलती सुख -समृद्धि।
दूर हो जाती जीवन की भ्रान्ति
अहिंसा परमो धर्मः ये था नारा
क्रोध मोह से दूर शांति का दुलारा
दूसरों को सुख दे सुखी न्यारा
बौद्ध धर्म का संदेश है प्यारा
आशा जाकड़
बुद्ध के साथ चलें : बुद्ध पूर्णिमा पर संदेश देती हुई विशेष कविता
बुद्ध पूर्णिमा
"बुद्ध के साथ चलें"
"आओ हम बुद्ध के साथ चलें,
बुधम् शरणम्म गच्छामि कहें।"
चलिए बुद्ध के साथ चलें,
सत्य अहिंसा के ठौर चलें।
छोड़े हम नफरत का घर,
प्यार के हम नए द्वार चलें।
यह जीवन तो क्षणभंगुर है,
इससे इतनी ममता क्यों है।
इस जीवन को सार्थक करें,
प्रेम एकता के हम द्वार चलें
माया मोह का बंधन त्यागो,
उठो अब तो नींद से जागो।
धरा पर आए जिसके लिए,
उसे करने सब तैयार चलें।
लूट हत्या चोरी डकैती क्यों,
रोग ग्रस्त काया से मोह क्यों।
मानवता के रक्षा हेतु हम सब,
बुद्ध के बताएं राहों पर चलें।
अपना नहीं कुछ इस जीवन में,
कुछ नहीं रखा है इस बंधन में।
"दीनेश" तोड़ दो इस जंजीर को,
करने नया हम कोई तदबीर चलें।
दिनेश जी दीनेश
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