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मानस कवि क्या बोल उठे | Manas Kavi Kya Bol Uthe Hindi Kavita

मानस कवि क्या बोल उठे | Manas Kavi Kya Bol Uthe Hindi Kavita


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जब कविता ही विष घोल रही
तब मानस कवि क्या बोल उठे,

अमृत की धार बही नहीं,
हिंसा भड़की लहू लुहान,
सागर ही देखो खौल गया
अम्बर पर ही छा गया।
धरती सूखी, धरती बह गई,
तब मानस कवि क्या बोल उठे।

शांति का संदेश लेकर
चहुॅं ओर फैली थी गुहार,
अशांति फैली बहा खून
ज्वलंत समस्या उठ गई खड़ी
मानव सूखा,मानव ही टूटा,
तब मानस कवि क्या बोल उठे।

है विलाप का वक्त नहीं,
समय दे रहा अभी चुनौती,
जग में भूकंप आ गया,
महलों में अब शोर नहीं,
खंडहर बोले जब खंडहर टूटे,
तब मानस कवि क्या बोल उठे।

जागो-जागो हे सोये मन
है करुण विलाप का विहान नहीं
लेकर कर में ज्ञान मशाल,
प्रज्ज्वलित कर दो चहुॅं दिशाऍं,
ज्योति फैले महके उपवन,
तब मानस कवि क्या बोल उठे।
(स्वरचित)
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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