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इन्सानियत, वक्त, काल और समय | Insaniyat Waqt Kaal aur Samay

इन्सानियत, वक्त, काल और समय | Insaniyat Waqt Kaal aur Samay

इन्सानियत
★★★☆◇◇☆★★★
शीर्षक वक्त काल समय

इन्सान अपनी औकात भूल जाता है।
इन्सानियत मर गई तो कुछ भी नहीं बचेगा इन्सान के साथ साथ सभी कुछ गर्त में
चला जाता है।
आज हमारे पास समय नहीं है।
रहते हम सदा अपने मद में।।

ध्यान नहीं दिया हमनें, वक्त नहीं अपने बस में।
काम किया नहीं कभी अच्छा तब दम नही बात में।।

समय की कुछ कद्र करो यारों यहीं काम अपने बस में।
कुछ दान करो कुछ पूण्य करो करों कमाई खरी जीवन में।।

रहता बस एक नाम यहाँ, लेते रहना नाम हरी।
जो समझे इस धर्म को काल से समझौता करी।।

दीन-हीन की सेवा करता बताया अपनी जात खरी।
सेवा से मिलता मेवा यही समझ लें इन्सानियत बड़ी।।

समझौता करलें तो सोचो नैया करता पार हरी।
दुसरो के दुख देख पुष्पा दुखित बात मेरी यह खरी।।

पुष्पा निर्मल बेतिया बिहार

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