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लघुकथा : गुरु कृपा - प्रेरणादायक कहानी Gurukripa Moral Story in Hindi

लघुकथा : गुरु कृपा - प्रेरणादायक कहानी Gurukripa Moral Story in Hindi

(लघुकथा)
गुरु कृपा
कोरोना काल में स्कूल बंद रहा। वेतन भी आधा तिहाई मिलता था। गुरु की कृपा से पति पत्नी मिलकर किसी तरह खाने की व्यवस्था कर लेते थे।

जब सरकार की ओर से स्कूल खुलने की घोषणा हुई तब सुकून मिला। आज जब मैं स्कूल जाने लगी तब बेटी ने धीरे से कहा,..."मॉं आज तो आप को वेतन मिलेगा मेरी किताबें काॅपी दिला देना, बहुत डॉंट पड़ती है। मैंने सहर्ष हामी भरी।

समय पर वेतन मिला। छुट्टी होते ही घर जाने की जल्दी थी, स्कूल से निकलते एक रिक्शा मिला उस पर बैठ गई। रोज मैं पैदल आती जाती थी। एक सूनसान स्थान में रिक्शेवाले ने रिक्शा रोका और कहा दो दिन से भूखा हूं रिक्शा नहीं चला पाऊंगा। मैं ने दया करके पर्स खोला उसे बीस रुपए दिए और कहा जाओ पहले कुछ खा लो मैं पैदल चली जाऊंगी। लेकिन शायद रिक्शेवाले की नज़र मेरे वेतन पर पड़ गई। उसने हाथ मारकर मेरा पर्स छीन लिया और भाग गया।


मैं अवाक रह गई और अपने ठाकुर को पुकार बैठी। दस पन्द्रह मिनट मैं उसी तरह खड़ी रही। एकाएक देखती हूं रिक्शा वाला पर्स लेकर वापस आ गया। बोला, "मैडम मुझे क्षमा करेंगी रुपए देखते मुझे अपने भूखे बच्चे पत्नी याद आ गई। लेकिन आगे जाकर रुपये गिने मात्र पाॅंच हजार रुपए शायद आप के वेतन के होंगें, आपके भी बच्चों को आप इंतजार होगा, कोरोना के कारण मेरी नौकरी चली गई थी, रिक्शा चलाने लगा। मैडम जल्दी चलिए मैं आपको घर तक छोड़ दूं। "मैं ने घर आकर उसे 100 रुपए दिये। पानी और नाश्ता कराया। वह भी गुरु कृपा कहता हुआ हाथ जोड़कर चला गया। गुरु कृपा का चमत्कार देख अचंभित थी। 
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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