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सनातन का परिमार्जन : बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशेष लेख

सनातन का परिमार्जन : बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशेष लेख


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सनातन का परिमार्जन


बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाओं के साथ, एक आलेख साझा करना चाह रहा हूँ.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देगें !

महात्मा बुद्ध, एक सनातनी राजवंश में‌ राजकुमार

महात्मा बुद्ध, एक सनातनी राजवंश में‌ राजकुमार की हैसियत से जन्म लेते हैं..! कहने की बात नहीं कि वे हिन्दु थे, उनके वर्ण का धर्म "क्षत्रिय धर्म" था ! लेकिन उनके द्वारा "बौद्ध धर्म" की स्थापना किया जाना यह सिद्ध करता है‌ कि उन्हें सनातन धर्म में सुधार की आवश्यकता महसूस हुई ! सनातन धर्म दर्शन को परिमार्जित कर पुन: प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता महसूस हुई !

उन्हें अपनी सामाजिक व्यवस्था में, अपनी धार्मिक व्यवस्था में, अपनी आर्थिक व्यवस्था में, अपनी राजनीतिक व्यवस्था में विसंगत तत्वों का समावेश दिखता है..!


काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, आसक्ति के संदर्भ में "संयम" की आवश्यकता पर सनातन सदैव जोर देता रहा है ! आहार-विहार में संयम सनातन की पहली शिक्षा है..! किसी व्रत-पूजन में आज भी परम्परा है, पूजन के दो दिन पूर्व ही आप अपने आहार-विहार में "नेम"' पर रहें. ! शारीरिक स्वच्छता के साथ साथ मानसिक स्वच्छता जरूरी है ! जिसके लिए कुखाद्य ( तामसी आहार, अवैध कमाई से तैयार आहार) का सेवन न करें ! फिर "संयत" में रहें यानि संयमित रहें..! आपकी गतिविधियां संयमित हो, आपकी वाणी संयमित है ! संयमित से मतलब ही हुआ कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि से परहेज़..!

फिर उपवास करें ताकि यदि गलती से भी कुअन्न का कोई एक भी कण आपके उदरस्थ हो गया हो तो वह भी जठराग्नि में भस्म हो जाए, फिर पूजन करें..!


स्पष्ट है कि, सूदखोरी, जमाखोरी, अहं जनित अनैतिक व्यवहार, क्रोध जनित नृशंस व्यवहार, हिंसा, लोभ जनित अवैध कमाई आदि सनातन धर्म में वर्जित रहा है ! तथापि सनातन धर्मावलंबियों के मध्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, निर्दयता, हिंसा, आदि अमानवीय दुर्गुणों ने अपने झंडे गाड़ रखे हैं.! सनातन धर्म का बाह्य स्वरूप में रंग-रोगन-तिलक-चंदन तो दिखता है लेकिन सनातन की आत्मा ही मृतप्राय हो गई है !

यही वजह है उन्होंने मानव समाज को धर्मनिष्ठ करने के लिए सम्यक अर्जन, सम्यक दर्शन, सम्यक भोजन, सम्यक ज्ञान आदि आठ प्रकार के नियम प्रतिपादित किये जिसे बौद्ध धर्म दर्शन में "अष्टाँग मार्ग" के नाम से जाना जाता है ..!

अष्टाँग मार्ग

इसी अष्टाँग मार्ग का प्रचार करते हुए जब वे "सम्यक अर्जन" को विश्लेषित करते थे, तो सूदखोर महाजनों, जमाखोर व्यवसायियों के घोर विरोध का उन्हें सामना करना पड़ता था ! उनकी गालियाँ सुननी पडतीं थी !


कहते हैं कि महात्मा बुद्ध अपनी कुटिया में थे और एक व्यवसायी आकर उन्हें गालियाँ सुनाने लगा, महात्मा शाँत होकर चुपचाप सब सुनते रहे ! जब उसके शब्दकोष से गालियाँ समाप्त होने लगीं, बकते बकते वह थकने भी लगा, तो बुद्ध ने कहा, "सुनो ! जब तुम्हारे घर कोई मेहमान आते हैं तो उन्हें खाने को क्या देते हो, रूखा-सूखा या पुआ-पकवान..?"

व्यवसायी ने कहा, "मैं तेरे जैसा दरिद्र थोड़ी न हूँ, मेरे पास दौलत है, मैं उन्हें अच्छे अच्छे पकवान, मिष्ठान्न खिलाता हूँ..!"


बुद्ध, "अगर तुम्हारा मेहमान तुम्हारे पकवान, मिष्ठान्न स्वीकार ही न करे तो क्या करोगे..?"

व्यवसायी, "अरे दुष्ट ! मैंने तेरी तरह पत्नी और बच्चों को छोड़ तो नहीं दिया है न..! मेरी पत्नी हैं, मेरे बच्चे हैं, मेहमान अगर पकवान-मिष्ठान्न स्वीकार नहीं करेंगे तो हमलोग स्वयं सब खा लेगें..!"

बुद्ध, "ठीक है ! फिर तुमने जो इतनी गालियाँ मुझे दीं, मैंने एक भी स्वीकार नहीं किया...!"
राघव 

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