जरूरत और मजबूरी आदमी से क्या नहीं करवाती : कविता शायरी
जरूरत आदमी से
जरूरत आदमी से, क्या नहीं करवाती,
कहने को लंबे उपदेश दिये जाते,
भारतीय संस्कृति गीता के पाठ दुहराये जाते
पर उठा के देखें ऑंख तो,
क्या हरिश्चन्द्र ने जरूरत पर,
अपने पुत्र, स्त्री को नहीं बेचा
खुद बिक गये थे डोम हाथों।
राजा रघु थे सत्यवादी, महादानी,
करुणा की मूर्ति, वीर, धीर, महान,
जरूरत पर चाह कुबेर से लड़ाई।
न पास के जब भूमि युधिष्ठिर
धर्म युद्ध छिड़ा महाभारत रचा,
यही जरूरतें आज खड़ी हम सबके मध्य,
हम युद्ध नहीं करते, हम बोलते नहीं,
पर शीत युद्ध से हम पनहां नहीं लेते,
सिर झुकाते, आत्मा को मारते,
कुचले जाते, स्वाभिमान धक्के खाता
पर इन्हीं जरूरतों के लिए
आज युद्ध कर रहें हैं, सिर्फ अपने से
इंसान इंसान ही है, वह देवता नहीं हो सकता,
उर्वशी ने पुरुरवा को दिया था
इच्छा का यही संदेश
फिर इसमें नवीनता क्या?
हम चाह बैठें हैं अगर कुछ
पालने की प्रबल भावना,
क्या दिला सकेगी हमें वह
सीमा पार करने की कहानियां
या टूटने से पहले ही
हमें करना पड़ेगा
नव सृष्टि का निर्माण।
(स्वरचित)
______डॉ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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