वृद्धाश्रम में दादी : वृद्ध और बुजुर्गों पर कविता
वृद्धाश्रम में दादी
(कविता)
ले जाए गए बच्चों को, वृद्धाश्रम दिखाने,
उनको वहां की वास्तविकता को समझाने।
स्कूल के शिक्षक थे छात्र छात्राओं के साथ,
बड़ी सावधानी से समझा रहे थे वे हालात।
करुणा उमड़ आई थी उनके सूखे चेहरे पर,
जल्दी नयन जल लगा अपनी बात सुनाने।
ले जाए गए बच्चों को……….
बुजुर्गों की आंखों में झलक रही थी आशा,
अपनों के लिए मन तरस रहा था प्यासा।
एक छात्रा की नजर पड़ी अपनी दादी पर,
विश्वास नहीं हो रहा था, उस बर्बादी पर।
लिपट गई बच्ची अपनी दादी के सीने से,
दोनों लगी अपने अपने स्नेह आंसू बहाने।
ले जाए गए बच्चों……….
बच्ची से मां बाप ने, छुपाई थी जानकारी,
दादी को बुढ़ापे में याद आई थी रिश्तेदारी।
उनको बड़ा अच्छा लगा रिश्तेदारों का घर,
समय समय पर आती उनकी खोज खबर।
बहुत जल्दी अपने घर वापस आएगी दादी,
पापा बोले थे हम जानेवाले हैं इनको लाने।
ले जाए गए बच्चों………..
पोती को जरा भी नहीं हो रहा था विश्वास,
मां बाप के झूठ का, हो गया था पर्दाफाश।
सोचने लगी कि ऐसा क्यों करता है इंसान,
रिश्तों को लोग, क्यों कर देते ऐसे कुर्बान?
दादी को देकर, अपने घर लाने का भरोसा,
पोती लौट आई दादी में देख सपने सुहाने।
ले जाए गए बच्चों…………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
Vridh Ashram Aur Lachar Maa Baap : Hindi Kavita
वृद्धाश्रम और माँ बाप लाचार बिचारे : निर्मल कविताएं
माँ बाप लाचार बिचारे
श्राद्धकर्म पिण्ड दान, कर्ज ले कर 'पुण्य' कमाते।
जिंदे को दूध दूर, लाल रोटी दो जुन भी नहीं देते।
खाट टूटी अगर, चटाई बिछा, स्वास्थ्यकर कहते।
वसियत और एफ. डी. मरने के पहले सही करते।
वृद्धाश्रम क्योंकर, कपूत को बेदखल नहीं करवाते।
टूटे हाड लिये कब तक सी ओ व डी एम तक जाते।
चलते फिरते सब सोच समझ कर फंकी में न आते।
मरते मरते लालची बहु बेटे से सेवा करवा मेवा देते।
डाॅ. कवि कुमार निर्मल
Vridh Ashram Aur Lachar Maa Baap : Hindi kavita
वृद्धाश्रम
मात पिता को भेजते, वृद्धाश्रम संतान।
उनके बच्चे भी सजा, देंगे तूँ पहचान।।
सुखे सुलाया था तुझे, गीले सोई जान।
वहीं वृद्ध हो पुत्र भी, खोता अपनी शान।।
भारी हो माता पिता, रहता सदा कलेश।
रोती रहती माँ सदा, वृद्धाश्रम है शेष।।
घर में बूढ़ा कोई तभी, सहता क्यों संताप।
अपनी भूले आयु को, रहे चढ़ाते ताप।।
पुष्पा निर्मल
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