Utho Bhaktjan He Bajrangbali Hanuman Jayanti Vishesh Kavita
उठो भक्तजन, हे बबजरंगी हनुमान जयंती विशेष कविता
प्रकृति वायु में ज़हर भरा है।
प्राणवायु अब सिलेंडरी हैं।
रिश्ते नातों की औकातें।
मूर्त रूप हो डरी डरी हैं।
जन्मदिवस, परिणय, अभिवादन
डिस्टेंसिंग की भेंट चढ़ी हैं।
'पाजीटिव' से डर लगता है।
'नेंगेटिव' की चाह बढ़ी है।
यह कैसा विधान है विधना?
कंधा नही वाहनी-यात्रा।
पुलिस दाह करती दिखती है।
दूर खड़ा रोता सुपात्रा।
न्यूज निगेटिव से डर लगता,
विषस्राव मष्तिश्की झरता।
और 'निगेटिव-जीवन-धन' का,
पाजीटिव विषाणु सुख हरता।
विगत वर्ष, दंभ भरते थे,
हम धन्वंतरि, भामा हैं हम।
ऐसा लगता है इस पल तो,
फिर अवतरित सुदामा हैं हम।
मन की बातें करते करते,
भूल गये जीवन की बातें।
बिखर गये सब ताने बाने,
घात कोविडी के मन माने।
उठो'भक्तजन, हे बजरंगी',
फिर से वैद्य सुषेण बुलाओ।
रामादल कोहराम मचा है,
लखन जिये संजीवनि लाओ।
पाकर के संजीवनि बूटी,
लखन सहित प्रति वानर, परसो।
वानर-रिक्ष भेद मत करना,
'विद्यार्थी' सुधांबु बन बरसो।
इतने को बस अंत समझकर,
फिर से नहीं बैठ जाना है।
दशकंधर, रिपुराज बेधकर,
फिर से रामराज्य लाना है।
संतोष श्रीवास्तव"विद्यार्थी"
मकरोनियां, सागर, मध्यप्रदेश
9425474534
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