Ticker

6/recent/ticker-posts

लघुकथा : संकीर्ण सोच - हिंदी कहानी Sankirn Soch Short Story In Hindi

लघुकथा : संकीर्ण सोच - हिंदी कहानी Sankirn Soch Short Story In Hindi

संकीर्ण सोच
एकबार की बात है आज से बीस साल पहले जेठ की दोपहरी में एक कवि महोदय नालंदा जिला के जिला पदाधिकारी से मिलने पैदल जा रहे थे कि रास्ते में चल रहे एक राहगीर ने सकुचाते हुए कवि महोदय से उनका शुभ नाम, गाँव एवं उनका जाति-धर्म पूछा जिसे कवि महोदय ने सहर्ष बता दिया। अंत में उस राहगीर ने अपना नाम अल्ताफ बताते हुए एक अलग राह पकड़ ली।

कवि महोदय उस राहगीर को अवाक देखते रह गये। संग-संग चल रहे दुसरे राहगीर ने कवि जी से पूछा "लगता है आप कुछ उदास दिख रहे हैं कवि जी, आखिर क्या कारण है। " कवि जी ने कहा कि "वह गजब का आदमी है, सिर्फ मेरे बारे में बिस्तार से पूछा अपने बारे में बिस्तार से कुछ नहीं बताया। "

दुसरे राहगीर ने कवि जी से कहा "कवि जी इसमें टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। इस दुनियाँ में कई तरह के लोग होते हैं कुछ अजब के, कुछ गजब के, कुछ धर्म के, कुछ कुकर्म के। वह अल्ताफ भी कुछ गजब टाईप का व्यक्ति था। आप नहीं तो उसके धर्म के व्यक्ति हैं और नहीं कुछ कर्म के, आप तो इन्सानियत, चिन्तन व मर्म के व्यक्ति हैं। वह संकीर्ण सोच एवं मानसिकता का व्यक्ति था। "

कवि महोदय दुसरे राहगीर की सारी बातों को समझ चुके थे। अब कवि जी जिला पदाधिकारी के निवास स्थान पर पहुँच चुके थे। कवि जी दुसरे राहगीर जिसने अपना नाम रामलाल बताया था को मुस्कुराते हुये धन्यवाद भाई कहकर जिला पदाधिकारी निवास की ओर चल दिये। 
-------0------
अरविन्द अकेला, पूर्वी रामकृष्ण नगर, पटना-27

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ