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पिता की भावनाओं के सम्मान में कविता : त्याग के मूरत पिता

पिता की भावनाओं के सम्मान में कविता : त्याग के मूरत पिता

त्याग के मूरत पिता!
माँ पर तो सारा जग लिखा
पिता को सबने अनदेखा किया
क्या कमतर आंकना..?
पिता की भावना को
ये सुझाव किसने दिया।

माता के सिर की ताज सिंदूर,
हाथों में शोभित चूड़ी भी
गले सुशोभित मंगलसूत्र
पांवों में झनकती पायल भी
सब इनसे ही तो जुड़ा हुआ
इनके बिना क्या अस्तित्व है इसका..?
शून्यता! के अलावा कुछ नहीं

त्याग और बलिदान के शाश्वत उदाहरण पिता है!
सूर्य के समान बच्चों के पथ प्रदर्शक पिता है!
अपने बच्चों के खातिर सपनों की कुर्बानी देने वाले!
अपने परिवार के लिए दिन-रात मेहनत करने वाले!
अपने प्रज्वलित आशा को मन में ही दबाने वाले!
अपने शौक को जीवन की बलि-बेदी पर चढ़ाने वाले।

कौन-कौन उपमाएँ दोगे इन्हें,
सब सम्मान एवं उपाधियाँ फीकी है।
इनके फौलादी इरादों के आगे
है कठोर दिखते ये...
किंतु गिरी की भांति कोमल होते हैं।
हम देखते सिर्फ उनकी कठोरता को
तुरंत ही झिझकर रूठ जाते हैं हम।।

पर, पिता की उत्कंठा को कौन जाने..?
उनके फौलादी सीने के अंदर
एक आह..! दबी होती है।
पर‌, सब महसूस नहीं करते।
कैसी विडंबना है जग की..!
पिता के त्याग की पराकाष्ठा का,
यहाँ कोई मोल नहीं..!!
ऋतुराज कुमार सिंह
कटरा, मुजफ्फरपुर (बिहार)

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