प्रेरणादायक कविता : दीये से दीये को तुम जलाते चलो
तुम नया सरगम
(छंदमुक्त काव्य रचना)
दीये से दीये को तुम जलाते चलो,
ऐसे ही अंधेरा संसार का मिटाते चलो।
फिर रोशनी से जगमगा उठेगा ये सारा संसार,
इसी मानवता की रीत को तुम निभाते चलो।
एक-दुसरे की जरूरत है यहां सभी को,
अकेले कभी कोई सजती नहीं है महफिलें।
मिलके गीत गाओ तुम इस जीवन में,
जेसे सप्तसूरों से ही सुरीला सरगम बन जाता है।
फूलों से फूल जोड़कर बनती है फुलों की माला,
दीपों से दीप जलाकर हो जाता है उजाला।
ज्ञान की ज्योति से जलाकर मन का वो अंधेरा,
हाथों में हाथ लिए आगे हमें यहां बढ़ना है।
उम्र बहोत ही छोटी-सी है इस जिंदगी की,
ये जिंदगी हमारी मोहताज है उन्हीं सांसों की।
"जियो और जीने दो"सभी को यहां संसार में,
क्योंकि शांति और सौहार्द्र का नाम ही इन्सानियत है।
अब इस नए युग में भी दहक रहा है यहां रास्तां रास्तां,
सोचो जरा ये उन्नति और प्रगति हमें कहां ले आई है।
गर ऐसे ही हम यहां बढ़ते रहे कल की ओर,
तो यह मानव जाति के लिए मानो बर्बादी का मंजर है।
नफ़रत की आंधी उजाड़ देगी सारे संसार को,
अब उसी नफ़रत को तुम यहां जलाते चलो।
प्रेम,माया,स्वातंत्र्य,समता,बंधूता,एकता और मानवता,
इसी सप्त तत्त्वों का तुम यहां नया सरगम बनाते चलो।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद महाविद्यालय लातूर
9730661640
महाराष्ट्र
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