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अयोध्या के महल में चोरी करते पकड़ा गया था मेघनाथ? मेघनाथ बंदी प्रसंग

अयोध्या के महल में चोरी करते पकड़ा गया था मेघनाथ? मेघनाथ बंदी प्रसंग

संतजन अपनी कथाओं में एक प्रसंग सुनाते हैं मेघनाथ के अयोध्या आने की और श्रीलक्ष्मणजी द्वारा उसे बंदी बना लेने की। तुलसीबाबा एक चौपाई लिखते हैं उसके आधार पर ही संभवतः यह प्रसंग बनता है। आज आपके सामने वही प्रसंग रखने का प्रयास करते हैं।

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लंका युद्ध में मेघनाद ने लक्ष्मणजी को शक्ति मार दी

जब लंका युद्ध में मेघनाद ने लक्ष्मणजी को शक्ति मार दी और लक्ष्मणजी अचेत पड़ गए तो भगवान श्रीराम भाई का कष्ट देखकर विलाप करने लगे। विलाप करते हुए वह अपने बचपन की एक घटना स्मरण करते हैं जब लक्ष्मणजी ने मेघनाथ को बंदी बना लिया था।

भगवान श्रीराम भावुक होकर विलाप करते हुए कहते हैं कि अगर उस दिन पिता के वचन न माना होता तो आज यह दशा न आती। प्रभु की वेदना का वर्णन करते हुए तुलसीदासजी ने एक चौपाई लिखी है-

जो जनतेउ वन बंधु बिछोहू।
पिता बचन मनतेउ नहिं ओहू॥

पिता के वचन की लाज रखने के लिए वनवास में चले आए भगवान श्रीराम पिताजी के किस वचन के मानने पर दुख प्रकट कर रहे हैं। इसकी एक कथा है, उसका आप आनंद लीजिए।

एक बार रावण को समुद्र किनारे शिव-आराधना के समय एक कमलपुष्प की पंखुडी कहीं से बहकर आती दिखाई दी। पंखुडी अद्वितीय सुन्दर थी। रावण ने ऐसा सुंदर कमलदल नहीं देखा था।

उसे देखकर विचार करने लगा कि पंखुडी जिस कमल पुष्प का हिस्सा है वह पुष्प कितना सुन्दर होगा? काश पूरा कमलपुष्प पा जाऊँ तो अपने आराध्य भगवान भोलनाथ को अर्पित करके उन्हें प्रसन्न करता।

रावण बस यही विचार करते हुए वहीं बैठा रहा। रावण पूजा के बाद समय से वापस नहीं आया तो मंदोदरी को चिंता हुई। पुत्र मेघनाद को पिता की खोज-खबर हेतु भेजा।

मेघनाद ने देखा कि पिताजी एकटक जल में लहराती एक पंखुडी निहार रहे हैं। उनका मन अविचल स्थिति में शांत तो है किंतु कुछ चिंतित भी है। उसने पिता से इस स्थिति का कारण पूछा तो सारी स्थिति व रावण की अभिलाषा का पता चला।

मेघनाद ने पिता को प्रसन्न करने के लिए कहा

पिताजी आप चिंता न करें। तीनों लोकों में जहां भी इस पंखुडी के पुष्प लगे होंगे, मैं वहां से अभी इसे खोजकर लिए आता हूं। आप भोलेनाथ को इसे अवश्य अर्पित करेंगे।

रावण को प्रणाम कर मेघनाद मायावी छद्मभेष धारण कर तुरंत ही आकाश, पाताल समेत सभी लोकों का चक्कर लगाकर पृथ्वी पर पुष्प तलाशने लगा। तभी उसे सरयू की धारा में उसी प्रकार की पंखुडियां बहती दिखीं।

मेघनाद अयोध्या के उपवन के उस तालाब में पहुंच गया

उनको खोजता मेघनाद अयोध्या के उपवन के उस तालाब में पहुंच गया जो उन अद्भुत, अद्वितीय कमल-पुष्पों का पूरा श्रोत था। तालाब को उन कमल पुष्पों से भरा देखकर मेघनाद की प्रसन्नता की सीमा न रही।

मेघनाथ ने पुष्प तोडना शुरू किया

बिना विलंब किए उसने पुष्प तोडना शुरू किया। अचानक किसी अजनबी को महाराज दशरथ के बगीचे में पुष्प तोड़ते देखकर रखवालों ने पास ही खेल रहे श्रीराम-लखन आदि को खबर कर दी। वे तुरंत आए और मेघनाद को पकड लिया।

मेघनाद को बांधकर महाराज दशरथ के पास ले गए

लक्ष्मणजी तो तो वाटिका में घुसकर चोरी कर रहे मेघनाद को वहीं मार देना चाहते थे पर श्रीरामजी ने कहा- दंड निर्धारण का अधिकार राजा का होता है। इसे पिताजी महाराज के पास लिए चलते हैं। वह जो दंड निर्धारित करेंगे वह दंड दिया जाएगा।

मेघनाद को बांधकर वे महाराज दशरथ के पास ले गए। दशरथजी ने उसका परिचय आदि के बाद पूरा वृतांत व पुष्प चोरी करने का कारण जाना।

फिर वह बोले- निःसंदेह इसने बिना अनुमति वाटिका में प्रवेशकर अपराध किया है परंतु यह पितृ-भक्ति के भाव में था इसलिए इससे यह घृष्टता हो गई। अपने पिता की सेवा में निकले इसके प्राण मत लो। इसे पुष्प देकर छोड दो।

जब मेघनाद ने लंकायुद्ध में लक्ष्मणजी पर शक्ति का प्रहारकर विकट स्थिति पैदा कर दी, तब रामजी भाई के शोक में विलाप करते हुए स्मरण करने लगे।

दुखी हृदय से पिताजी की आज्ञा का स्मरण करते हुए श्रीराम ने कहा कि यदि मैं जानता कि यह मेघनाद मेरे भाई लखन के प्राणों के संकट का कारण बनेगा तो मैं उस समय पिताजी के बचन न मानता और लक्ष्मण को इसके प्राण लेने देता।
जय जय श्री राधे

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