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ख़ुदा ने हर किसी को खाने का अन्दाज़ बख़्शा है : जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल

Khuda Ne Har Kisi Ko Khane Ka Andaaz Baksha Hai Jadeed Ghazal

Tajmahal Mumtaj

ख़ुदा ने हर किसी को खाने का अन्दाज़ बख़्शा है : जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल

" जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल "
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ख़ुदा ने हर किसी को खाने का अन्दाज़ बख़्शा है !!
मगर खाना खिलाने का हमे ही राज़ बख़्शा है !!

किसी शाह-ए-जहाँ को रब ही ने मुम्ताज़ बख़्शा है !!
उसी ने शाह को इश्क-व-वफ़ा का ताज बख़्शा है !!

ख़ुदा-ए-पाक/ इश्क ने रामा को इक दम्साज़ बख़्शा है !!
इसे बिस्मिल प्रेमी नाथ सा हमराज़ बख़्शा है !!

मेरे यारो !, मुसल्मानो !, ख़ुदा-ए-लम-यज़ल ही ने,
तुम्हें इफ़्तारी खाने का नया अंदाज बख़्शा है !!

अभी तो इश्क-व-उलफ़त, इब्तदाई मरहले में है !!
हमें अन्जाम की चिंता है, गो, आग़ाज़ बख़्शा है !!

मैं इतराऊँ न क्यों अपने मुकद्दर पर, कि, मौला/ रामा ने !!
गुलिस्तान-ए-मुहब्बत में मुझे गुल्नाज़ बख़्शा है !!

ज़ुबान-ए-रेख़्ता अब हो रही है सुर्ख़रू, यारो !!
सुनो !, शेर-व-अदब की बज़्म को शहनाज़ बख़्शा है !!

फ़लक वाले तहय्युर में नज़र आयें न क्यों, रामा !?!
उक़ाबी रूह़ तो बेदार है, शहबाज़ बख़्शा है !!

पहुँचता जा रहा है सातवें आकाश पर, रामा !!
इसे मेराज बख़शी है, कि यूँ, मेराज बख़्शा है !?
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रामदास इन्सान प्रेमनगरी, डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ारोड, राँची-834001, झारखण्ड, इन्डिया !
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