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कवि जन की पीड़ा गाता है : हिंदी कविता Kavi Jan Ki Peera Gata Hai Poem

कवि जन की पीड़ा गाता है : हिंदी कविता

जीवन में जो कुछ घटता, कवि जन की पीड़ा गाता है। 
जादूगर है वो शब्दों का, वो अपनी कलम चलाता है। 
भावों की वो माला रखता, हर पल उनको जपता है। 
सुख दुःख सारे साझा करता, सबको वो सुनाता है। 

प्रकृति का का वो है पुजारी, चित्रांकन वो करता है। 
नदी पहाड़ गगन सभी तो, मन में उसके बसता है। 
पशु पक्षी जीव जगत को, नित ही तो वो लिखता है। 
पेड़-पौंधे फूल फलों को, वो शब्दों से भी चखता है। 

वीरों पर वो गीत लिखता, ममता पर अश्रु बहाता है। 
दीन- हीन की व्यथा जानता, मरहम वो लगाता है। 
निर्धनता पर विचलित होता, शब्द बाण चलाता है। 
देश भक्ति का बीज बोता, ध्वज को वो फहराता है। 

सौंदर्य पर छंद रचता, नख-शिख वर्णन करता है। 
शक्ति का उपासक है वो, भजनो में वो रमता है। 
क्रांति कारी बन कर वो, शंखनाद भी करता है। 
पवन पानी जैसा जीवन, सदा सदा ये बहता है। 

अत्याचार हो जब नारी पर, वो हथियार उठता है। 
कुप्रथा पर प्रहार करता, सत्य मार्ग बतलाता है। 
काम-क्रोध में जो हैं डूबे, सन्मार्ग वो दिखलाता है। 
पीड़ित को न्याय दिलाता, रक्षक वो बन जाता है। 

श्याम मठपाल, उदयपुर 

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