रिश्ता और स्वार्थ : रिश्तों और स्वार्थ की दूरी कहां तक हो सकती है
Rishta aur Swarth Hindi Kavita हिंदी कविता : रिश्ता और स्वार्थ
रिश्ता : स्वार्थ
रिश्तों और स्वार्थ की दूरी कहां तक हो सकती है।
यह न हम जानते ना आप जानते।।
इनका दोष भी कहां तक कहा जाए।
यह हमसे और आप से मिलकर ही तो बनते हैं।।
यह बनते हैं तो इनमें यह अनायास आ जाते हैं।
कुछ समय बाद अपना रूप दिखाते हैं।।
हर कोई इस में ही चल रहा है।
हर कोई इस में ही रुक रहा है।।
ना दोष उसका है ना दोष किसका है।
जो भी दोष है वह समय का है।।
गरीब हो या अमीर हो हर कोई।
बस इसी से परेशान है।।
जो नहीं आना चाहिए अनचाही।
मुसीबतों से परेशान है।।
मानव समुदाय से मिलकर रिश्ता बनता है।
और मानव में स्वार्थ होना है।।
फिर रिश्ते और स्वार्थ की बात को।
हम और आप कहां तक नकार सकते हैं।।
सदियां बीती यह आधुनिक युग आया।
पहले भी रिश्तो में यह आते थे अब भी यह वैसे ही आते हैं।।
कहीं ना कहीं यह लगता है।
हम सभी को यह जंचता भी है।।
हर कोई इसी में चल रहा है।
अनचाही मुसीबतों में जी रहा है।।
जो नहीं चाहता वह भी हो जाता है।
जाने अनजाने में रिश्तो में स्वार्थ की गंध आ जाती है।।
हमें और आपको अपने हिसाब से।
बहुत दूर तक ले जाती है।।
यहां से फिर आना मुश्किल और नामुमकिन सा लगने लगता है।
जब रिश्तो में स्वार्थ की परछाईं पड़ने लगती है।।
डॉ राम शरण सेठ
छटहाॅं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश
स्वरचित मौलिक
अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित
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