Hindi Poem : Preyasi Kavita Sarees aur Geet Si Sakhiyan Hamari
प्रेयसी कविता सरिस और गीत सी सखियां हमारी : हिंदी कविता
प्रेयसी कविता सरिस और गीत सी सखियां हमारी।
इस उमर में दोस्तों इस हेतु है हम पे खुमारी।
हर दिशा खुशबू के मेले, भीड़ में भी हम अकेले,
जो मिले बस प्यार ही दे और हमसे प्यार ले ले।
इन दिनों ऐ दोस्त मेरे है यही दुविधा हमारी।
दूर तक चलना है, अब भी, दूर है, मंजिल हमारी।
जब थकेंगे तब रुकेंगे है अभी चलने की बारी,
लक्ष्य ले कर चल रहे हैं,चल रही है बस सवारी।
इस क्षितिज से उस क्षितिज तक,द्वेष के कितने भंवर है,
धूप, बरखा शीत से भर पूर यह मुश्किल डगर है।
किंतु बन है, बाग भी है, फूल भी है, तितलियां भी,
माह फागुन का भी है रंग से नहाई बदलियां भी।
द्वेष भी है रंज भी, सुख है यहां तो तंज भी है,
जिंदगी इनसे सजी है, और है यह बहुत प्यारी।
दूर तक चलना है अब भी दूर है मंजिल हमारी।
प्रेयसी कविता सरिस है गीत सी सखियां हमारी।
इस उमर दोस्तो इनसे ही है हमें खुमारी।
नंदलाल क्षितिज,
कवि एवं गीतकार,
९८१९८०१४२१.
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