Grishma Avkash Garmiyon Ki Chutti Par Kavita
ग्रीष्मावकाश : गर्मियों की छुट्टी पर कविता Poem On Summer Vacation
ग्रीष्मावकाश
जब छा जाती है प्रचण्ड गर्मी,
जब बेचैनी में मन को डूबोता है।
जब गर्मी से हम तर बतर हैं होते,
बच्चों हेतु ग्रीष्मावकाश होता है।।
पंखा भी फेंकता है हवा गर्म ही,
बाहर लू का प्रकोप बढ़ जाता है।
गर्मी से कम नहीं बच्चों की गर्मी,
खेल जुनून उल्टे चड़ जाता है।।
जबरन सुलाते माँ बाप बच्चों को,
बच्चे मिथ्या नींद ही सो जाते हैं।
बच्चे भाँपते गहरी नींद में उनको,
तब धीमे निकल बाहर आते हैं।।
लाखों पहरे होते रहते हैं उनपर,
किंतु सारे पहरे पस्त हो जाते हैं।
जीतता आखिर है बचपनावस्था,
शेष सारे पहरेदार ही सो जाते हैं।।
सारे बच्चों में ही कान्ह समाहित,
पकड़नेवाले ही हैं पहरेदार कहाँ।
पकड़े जाने पर होती जब पिटाई,
माँ खड़ी होती बन पहरेदार वहाँ।।
बच्चों के खेल शरारतपूर्ण हैं होते,
चुपके निकलता बाहर उद्यान में।
कभी खेलते हैं वे तो दोला पाती,
कभी आम तोड़ने के अरमान में।।
मालिक को देख लेकर आते डंडे,
शीघ्र वहाँ से वे चंपत हो जाते हैं।
निशाना लगाते फिर अगले बगीचे,
कच्चे आम ही बहुत वे खाते हैं।।
दोपहरी बीतता उद्यानों में केवल,
सुबह और शाम क्रिकेट मैदान में।
जब देखते पापा को ले आते डंडे,
घर पहुँचते शीघ्र एक उड़ान में।।
ग्रीष्मावकाश है लू से बचने हेतु,
नहीं घूमने हेतु बीच मध्याह्न में।
बीमार पड़ेंगे फिर ये कोमल बच्चे,
माता पिता पड़ेंगे ही हल्कान में।।
हो जाती है जब गर्मी की ही छुट्टी,
घर में बैठकर पाठ कर लो याद।
गणित बनाओ औ लिखना लिखो,
गृहकार्य शीघ्र निज करो आबाद।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
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