घर परिवार समाज के कुछ किरदार ऐसे भी
नफरत सी हो रही है उन किरदारों से जो अपनी जिम्मेदारी भूल कर पता नही किस दुनिया मे जीना चाहते हैं पता नही क्या पाना चाहते है जबकि सत्य यह है घूम फिर के फिर वही लौट कर आना है लेकिन तब तक मिट्टी में मिल गई इज्जत मिट्टी में मिल गई होती है और शाश्वस्त सत्य यही है मिट्टी की चीज मिट्टी में ही मिलनी है अंततः शायद मुझसे पहले ऐसे किरदारों ने जान लिया। पर मुझे नही जानना। ऐसे किरदार ज्ञानी बने रहें, पर मुझे परानी ही बने रहने में सुख महशुश होता है। मैं लड़ूंगा अंत तक ऐसे ज्ञानियों से जो मात्र दैहिक,भौतिक, झूठे दम्भ सुख के लिए सब कुछ बर्बाद कर देने को आतुर है मैं लड़ूंगा ऐसे किरदारों से जो कुसंस्कार के बीज अपने बच्चों में अपने निजी स्वार्थ के चलते बोने को ततपर है उन्हें कुछ लेना देना नही के कल वो भी किसी परिवार का हिस्सा बनेंगे और उन्हीं की तरह निजी स्वार्थों के चलते किसी का सुंदर परिवार तहस नहस कर के रख देंगे।अपवाद भले हो पर यह जहर तो निकलना चाहिए समाज के विषधरों से या विषधारिनियो से जो शीतल भोर सुगंधित शाम को सुकून चैन की रात को विषाक्त बना रहे है कहीं ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे दो तो अच्छा वर्ना कलम है आज नही तो कल कलम कर देगी ऐसी दुर्बुद्धि विचारधारा को ,,,
आनंद पाण्डेय "केवल"
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