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शहर हो या गांव ये मच्छर अब कही भी देते है काट : मच्छरोप्द्रव

शहर हो या गांव ये मच्छर अब कही भी देते है काट : मच्छरोप्द्रव

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Funny Poem on Mosquito in Hindi | मच्छर पर कविता हिंदी में


मच्छरोप्द्रव
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शहर हो या गांव ये मच्छर, अब कही भी देते है काट!
इसी कारण न चाहते हुए भी, खा जाते है एक दो चमाट!!

खा जाते है एक दो चमाट,कुछ तो बहा देते है खून!
कभी काटा करते थे सिर्फ रात को, अब काटने लगते शाम सुबह आफ्टरनून!!

हमला करता झुंड जब इनका कोई पंक्तिबद्ध नजर नही आता!
सैनिक तनिक कमजोर जो रहता वो कान के बगल में आ भनभनाता!!

खूँटातोड़,करोड़ो अरबो के राफेल वाले देश में भी जरा सा भी इन सबको डर नही!
गल्ली मुहल्ला हो या काॅलोनी वसाहत कहाँ ये बरपाते अपना कहर नही!!

कितना भी कर लीजिए खूब धुँआ धाकड़,पनाहगार बनवा देता मच्छरदानी को!
गर जो इसके भीतर होवे ना शरणागत, उसे याद करा देता है नाना नानी को!!

काश!स्वच्छता विभाग की मुहिम को जिस तरह पुरजोर चला रही है यह सरकार!
उससे भी दो कदम आगे बढकर इन मच्छरो से मुक्ति का अभियान भी चलाती जिसकी भी है दरकार!!

जिसकी भी है दरकार!!

रचयिता-कवि खूँटातोड़
व्यंग्यकार/गीतकार 
सं क्र-९८९२० ४४५९३.

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