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बैसाखी त्योहार क्या है? बैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

बैसाखी का त्यौहार पर निबंध : बैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

बैसाखी
बैसाखी का पर्व प्रतिवर्ष 13- 14 अप्रैल को मनाया जाता है। वैसे तो यह पर्व पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है, परंतु यह त्योहार हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश का अति प्रमुख त्योहार है।

वैशाखी के अलग-अलग नाम

भारत में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे शीतल, पोहेला, बोशाख, बोहाग, बिहू, विशु, पुथन्डु आदि।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवसंवत का प्रथम त्योहार बैसाखी

यह त्यौहार मुख्य रूप से रवि की फसल कटने पर मनाते हैं। इसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवसंवत का प्रथम त्योहार कहते हैं। क्योंकि यह वैशाख महीने की पहली तिथि को मनाया जाता है बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करता है इसी कारण इसे मेष सक्रांति कहते हैं। इस पर्व को विषुवत संक्रांति भी कहते हैं हिंदू कैलेंडर के अनुसार 12 संक्रांतियां होती है जो 12 राशियों के नाम पर होती है। उत्तर भारत में हिंदुओं, सिखों और बौद्धों का यह प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार की विभिन्न विशेषताएं है। खेतीवाड़ी से जुड़े इस पर्व को असम में बिहु, केरल में विशु तथा तमिलनाडु में पुथण्डू कहते हैं। प्राचीन काल से भारत के विभिन्न त्योहार मनोरंजन के उत्तम साधन हुआ करते है। इस दिन बड़े- बड़े मेलों का आयोजन होता है। पंजाब प्रांत में घरों में भांत- भांत के पकवान बनाए जाते हैं। ढोल -ताशों के साथ खूब गिद्दा -भांगड़ा डालने के साथ खूब मस्ती की जाती है। रात के समय खुले स्थान में आग का गिट्ठा जला कर रवि की फसलों की आहुतियां दी जाती है ताकि घर में खुशहाली और समृद्धि बनी रहे, ऐसे में किसका मन नाचने -गाने और उत्सव मनाने को नहीं करता। और इसी दिन सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को आनंदपुर साहिब के श्री केशगढ़ साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालिस का अर्थ शुद्ध होता है, इस पंथ के माध्यम से गुरु जी ने जात-पात से ऊपर उठकर समानता, एकता, राष्ट्रीयता, बलिदान एवं त्याग का उपदेश दिया। बैसाखी के दिन सभी लोग जप- तप, दान, नदी स्नान, तीर्थ स्नान भी करते हैं। अपने -अपने धर्म के अनुसार मंदिर, गुरुद्वारों में मत्था टेकने जाते हैं और अपने जीवन की खुशहाली समृद्धि के लिए अरदास करते हैं।

बौद्ध धर्म के लोग हर्षोल्लास से मनाते हैं बैसाखी

बौद्ध धर्म के लोग भी इस त्यौहार को अपनी परंपरा के अनुसार खूब हर्षोल्लास से मनाते हैं उनका मानना है कि इसी दिन महात्मा बुद्ध को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए यह दिन उनके लिए भी विशेष महत्व रखता है।

हिमाचल प्रदेश में भी यह त्यौहार फसल के कटने व नव संवत का पहला त्योहार के कारण बहुत उल्लास से मनाया जाता है।

हिमाचल के 12 जिलों बैसाखी त्योहार का उत्सव

हिमाचल के 12 जिलों में अपने- अपने तरीके से इस त्यौहार को मनाया जाता है। महिलाएं अपने घरों की सफाई करके आंगन पर प्रत्येक द्वार की ड्योढ़ी पर रंगोली बनाकर फूल, दूव, अक्षत, कुमकुम से पूजा-अर्चना करती है। घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और सभी रिश्तेदारों को बुलाकर आदर सत्कार से खिलाया जाता है। बैसाखी के दिन घरों में भल्ले -भात, दही, उड़द की दाल बना कर खूब घर में बनाए घी डालकर खिलाया जाता है। कहीं-कहीं के चिलड़ु, पट्वांडे, एंकल़ियां बनाते हैं जिन्हें दूध-घी, शक्कर और उड़द की दाल से परोसा जाता है। कई स्थानों में बड़े बड़े मेले लगते हैं। हिमाचल प्रदेश देवभूमि है, इसलिए लोग अपने-अपने स्थान देवता, ग्राम देवता व कुल देवता के मंदिर जाकर यथाशक्ति दान करके माथा टेकते हैं और अपने -अपने देवी -देवता को मनाते हैं। इसी तरह वर्ष भर प्रत्येक सक्रांति को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।

ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

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