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पौराणिक मिमांसा गद्यात्मक व्याख्या : गोपाल, गोप, राधा, गोकुल, वृंदावन, तुलसी आदि का अध्यात्मिक विष्लेषण

पौराणिक मिमांसा गद्यात्मक व्याख्या : गोपाल, गोप, राधा, गोकुल, वृंदावन, तुलसी आदि का अध्यात्मिक विष्लेषण

पौराणिक मिमांसा (गद्यात्मक व्याख्या)
"गोपाल, गोप, राधा, गोकुल, वृंदावन, तुलसी आदि का अध्यात्मिक विष्लेषण"

श्रीकृष्ण लीलाओं का विस्तृत वर्णन

श्रीकृष्ण लीलाओं का जो विस्तृत वर्णन भागवत ग्रंथ मे किया गया है, उसका उद्देश्य क्या केवल कृष्ण भक्तों की श्रद्धा बढ़ाना है या मनुष्य मात्र के लिए इसका कुछ संदेश है?

तार्किक मन को विचित्र-सी लगने वाली घटनाएं

तार्किक मन को विचित्र-सी लगने वाली इन घटनाओं के वर्णन का उद्देश्य क्या ऐसे मन को अतिमानवीय पराशक्ति की रहस्यमयता से विमूढ़वत बना देना है अथवा उसे उसके तार्किक स्तर पर ही कुछ गहरा संदेश देना है, इस पर हमें विचार करना चाहिए।

श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष

श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष, तारक ब्रह्म हैं, इसका स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक उल्लेख में मिलता कि देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी "आंगिरस" ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण 'तृप्त' अर्थात पूर्ण पुरुष हो गए थे। श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था और गीता में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है।


किंतु इनके जन्म और बाल-जीवन का जो वर्णन हमें प्राप्त है वह मूलतः श्रीमद् भागवत का है और वह ऐतिहासिक कम, आध्यात्मिक अधिक है और यह बात ग्रंथ के आध्यात्मिक स्वरूप के अनुसार ही है। ग्रंथ में चमत्कारी भौतिक वर्णनों के पर्दे के पीछे गहन आध्यात्मिक संकेत संजोए गए हैं।

भागवत में सृष्टि की संपूर्ण विकास प्रक्रिया

वस्तुतः भागवत में सृष्टि की संपूर्ण विकास प्रक्रिया का और उस प्रक्रिया को गति देने वाली परमात्म शक्ति का दर्शन कराया गया है।

स्कंध में सृष्टि के क्रमिक विकास

स्कंध में सृष्टि के क्रमिक विकास (जड़-जीव-मानव निर्माण) का और श्रीकृष्ण की लीलाओं के द्वारा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का वर्णन प्रतीक शैली में किया गया है। भागवत में वर्णित श्रीकृष्ण लीला के कुछ मुख्य प्रसंगों का आध्यात्मिक संदेश पहचानने का यहाँ प्रयास किया गया है।


कृष्ण के जन्मकाल की कुछ घटनाएं

कृष्ण के जन्मकाल की कुछ घटनाओं का निरूपण "त्रिगुणात्मक प्रकृति" से प्रकट होती चेतना सत्ता!
श्रीकृष्ण आत्म तत्व के मूर्तिमान् रूप हैं। मनुष्य में इस चेतन तत्व का पूर्ण विकास ही आत्म तत्व की जागृति है। जीवन प्रकृति से उद्भुत और विकसित होता है अतः त्रिगुणात्मक प्रकृति के रूप में श्रीकृष्ण की भी तीन माताएँ हैं:--

१. रजोगुणी प्रकृतिरूप देवकी जन्मदात्री माँ हैं, जो सांसारिक माया गृह में कैद हैं।
२. सतगुणी प्रकृति रूपा माँ यशोदा हैं, जिनके वात्सल्य प्रेम रस को पीकर श्रीकृष्ण बड़े होते हैं।
३. इनके विपरीत एक घोर तमस रूपा प्रकृति भी शिशुभक्षक सर्पिणी के समान पूतना माँ है, जिसे आत्म तत्व का प्रस्फुटित अंकुरण नहीं सुहाता और वह वात्सल्य का अमृत पिलाने के स्थान पर विषपान कराती है।
यहाँ यह संदेश प्रेषित किया गया है कि प्रकृति का तमस-तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने में असमर्थ है।

"गोकुल-वृंदावन की लीला में औषधीय गुणवत्तापूर्ण तुलसी के पोधे का वर्णन आया है।"


प्रेम बांटने वाली क्रीड़ाओं का विस्तृत वर्णन

शिशु और बाल वय में ही श्रीकृष्ण द्वारा अनेक राक्षसों के वध की लीलाओं तथा सहज-सरल-हृदय मित्रों और ग्रामवासियों में आनंद और प्रेम बांटने वाली क्रीड़ाओं का विस्तृत वर्णन भागवत में हुआ है। शिशु चरित्र "गोकुल" में और बाल चरित्र वृंदावन में संपन्न होने का जो उल्लेख है, वह आध्यात्मिक अर्थ की ओर संकेत करता है।

गो शब्द का अर्थ "इंद्रियाँ" भी हैं

"गो"शब्द का अर्थ "इंद्रियाँ" भी हैं, अतः "गोकुल" से आशय है हमारी "पञ्चेद्रियों का संसार" और "वृंदावन" का अर्थ है "तुलसीवन" अर्थात "मन का उच्च क्षेत्र" (तुरीयावस्था वाले 'तुर' से 'तुरस' और 'तुलसी' शब्द की व्युत्पत्ति व्याकरणसम्मत है)। गोकुल में पूतना वध, शकट भंजन और तृणावर्त वध का तथा वृंदावन में बकासुर, अधासुर और धेनुकासुर आदि अनेक राक्षसों के हनन का वर्णन है। शिवकालीन कथा है कि शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला से जलांधर दानव उत्तपन्न हुआ। विष्णु छल कर अपनी भक्त वृंदा का सतित्व हनन किये तब वह आत्मदाह कर ली। राख से तुलसी पौधा पैदा हुई तो शालिग्राम रूप में कृष्णावतार में विष्णु ने तुलसी से कार्तीक एकादशी के दिन शादी किये और वह दिन परंपरा से तुलसी विवाह रूप में मनाया जाता है।


श्रीकृष्ण का उद्भव महाभारत के सूत्रधार

व्यक्ति और समाज को अपने अंदर व्याप्त आसुरी वृत्तियों के रूप में इनकी पहचान करना होगा तभी आध्यात्मिक-नैतिक शक्ति से इनका हनन संभव होगा और तब ही इस बालरूप श्रीकृष्ण का उद्भव महाभारत के सूत्रधार, धर्मस्थापक, श्रीकृष्ण के रूप में होना संभव होगा।

वृंदावन की कथाओं में कालिया नाग, गोवर्धन, रासलीला

वृंदावन की कथाओं में कालिया नाग, गोवर्धन, रासलीला और महारास वाली कथाएँ अधिक प्रसिद्ध हैं। श्रीकृष्ण ने यमुना को कालिया नाग से मुक्त-शुद्ध किया था। यमुना, गंगा, सरस्वती नदियों को क्रमशः कर्म, भक्ति और ज्ञान की प्रतीक माना गया है। ज्ञान अथवा भक्ति के अभाव मेंकर्म का परिणाम होता है, कर्ता में कर्तापन के अहंकार-विष का संचय। यह "अहंकार" ही कर्म-नद यमुना का "कालिया नाग" है। सर्वात्म रूप श्रीकृष्ण भाव का उदय इस अहंकार-विष से कर्म और कर्ता की रक्षा करता है।


गोवर्धन धारण कथा

गोवर्धन धारण कथा की आर्थिक, नीति-पुरक और राजनीतिक व्याख्याएं की गई हैं। इस कथा का आध्यात्मिक संकेत यह दिखता है कि "गो" अर्थात इंद्रियों का वर्धन (पालन-पोषण) कर्ता (गोपाल--ग्वाला नहीं) अर्थात इंद्रियों में क्रियाशील प्राण-शक्ति के स्रोत परमेश्वर पर हमारी दृष्टि होना चाहिए। इसी प्रकार गोपियों के साथ रासलीला के वर्णन में मन की "वृत्तियां" ही "गोपिकाओं" के रूप में मूर्तिमान हुई हैं और प्रत्येक "वृत्ति के आत्म-रस से सराबोर होने को" "रासलीला" या रसनृत्य के रूप में चित्रित किया गया है। इससे भी उच्च अवस्था का- प्रेम और विरह के बाह्य द्वैत का एक आंतरिक आनंद में समाहृत हो जाने की अवस्था का वर्णन 'महारास' में हुआ है।

तुलसी के पौधे नारी रूप

तुलसी के पौधे नारी रूप

कहते हैं आज भी ये तुलसी के पौधे नारी रूप धारण कर कृष्ण को साक्षी बना कर रास में झूमते थे (लगभग दो ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले "निधिवन" के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत होते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। इनमें तुलसी वृक्षों का बाहुल्य है।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया (बिहार)
@DrKavi Kumar Nirmal

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