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नया दौर शायरी Naya Daur Shayari आज के दौर पर शायरी | नया दौर पर कविता

नए दौर पर शायरी Naya Daur Poetry आजकल पर शायरी और कविता

ये कैसा नया दौर है
(मुक्तछंद काव्य रचना)
इस बदले युग ने छीन ली हंसी सबकी,
अब मुस्कुराते हुए चेहरे बहोत कम नज़र आते है।
वक्त नहीं है अब किसी के पास मिलने का,
रिश्ते भी अब बेगानों जैसे नज़र आते है।

ये कैसा नया दौर है अनजाना सा,
यहां देखकर भी लोग अनदेखा कर जाते है।
दफन हुई इन्सानियत,बढ़ गई है हैवानियत,
अब उजाले में भी डर सा माहौल नज़र आता है।

कल थी मिट्टी की प्यार भरी वो दीवारें,
और आंगन भी सजी महफिलों जैसा लगता था।
वक्त के साथ-साथ सबकुछ होता गया खत्म,
और आज ये इन्सान भी बिखरे हुए नजर आते है।

धन के सिवा आज यहां होती नहीं कोई और बातें,
उसी धन के पीछे सारा ज़माना भागता नज़र आता है।
ये कैसा बदलाव है जिसमें कोई मानवता नहीं,
अब सभी गलियां भी विरान सी नजर आती है।

इस बदले युग ने छीन ली हंसी सबकी,
अब मुस्कुराते हुए चेहरे बहोत कम नज़र आते है।
कल का वो हरा-भरा खिलता हुआ वतन हमारा,
देखो आज कैसे उजड़े हुए चमन जैसा नज़र आता है।

प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद महाविद्यालय लातूर
9730661640
महाराष्ट्र


Daur Shayari - दौर शायरी : यही नया दौर है

यही नया दौर है
(मनहरण घनाक्षरी काव्य)

देखो हमारी उन्नति,
देखो विज्ञान की क्रांति,
धुंआ धुंआ चारों ओर,
सभी जल रहा है।

बदल गयी नीयत,
जली है इन्सानियत,
सत्ता का लालच बड़ा,
तबाही बनता है।

कहां है गांव,शहर,
सब हुआ देखो ढेर,
फट गई वो धरती,
छाया अंधकार है।

यही हमारी प्रगति,
ज्ञान की चिता जलती,
बनी है हैवानियत,
यही नया दौर है।

प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद महाविद्यालय लातूर
9730661640
महाराष्ट्र

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