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कौन जायेगा? कौन आएगा? न कहीं किसी को जाना है और न आना है

Kaun Jayega Kaun Aayega Na Kisi Ko Jana Hai Na Kisi Ko Aana Hai

कौन जायेगा?
कौन आएगा??
न कहीं किसी को जाना है और
न किसी को कही से आना है।
कृष्ण ने स्पष्ट कहा, "एको अहम् बहुश्यामी" अर्थात तथाकथित काल्पनिक हाथ पैर वाले भगवान्, परमेश्वर, खुदा या ईश्वर ने अपना समपूर्ण अस्तित्व को तिरोहित कर दिया इस अतुल ब्रह्माण्ड के रूप में। अब वह मिलेगा तो जर्रे जर्रे में न कि तीर्थ या मक्का मदीना या जेरुसलेम में।

अब वह रहा कहाँ कि कहीं आने-जाने का मुद्दा बचा है?

तो, यह समझ लें की चराचर, जड़-चेतन सभी विधना (क़ायनात) के उसुलों, कानून (नियम) का पालन करते हुए कार्यरत हैं। इस एक परमाणु के अन्दर क़ुदरत के इशारे से तय निश्चित धुरी पर अनेक आवेशित व उदासीन कणिकाएँ गतिमान् हैं, कुछ भी स्थिर नहीं और नहीं स्थिर हो सकता है, अनवरत गतिमान् है सब कुछ, वह दृष्ट हो अथवा अदृष्यमान्।


प्रकृति में स्वतन्त्र वा योग-स्वरूप सब कुछ अदृश्य वा दृश्य

और, प्रकृति में स्वतन्त्र वा योग-स्वरूप सब कुछ अदृश्य वा दृश्य हैं। हम जो कुछ भी देखते हैं, सब छलावा है, जादूगरी है परम सत्ता (COSMIC FATHER) की। परम सत्ता केंद्र (अदृश्य) तथा सृष्टि विश्व परिधि (अनंत) के दायरे में अनवरत क्रियाशील हैं। संचर प्रतिसंचर धारा को, ब्रह्म चक्र को, भवसागर के राज को समझना होगा। ठहरा हुआ कुछ भी नहीं, कुछ भी ख़त्म होने वाला नहीं, हाँ उसके इशारे पर उसका रंग, वजन, आकार आदि गुण बदल सकते हैं। यही है परम सत्य (UNIVERSAL TRUTH)‌।

केंद्र की और तथा परिधि की और दो अलग-अलग ताक़तें (आकर्षण-विकर्षण) बल सृष्टि-चक्र को संतुलित करने में लगे हैं। घनात्मक बल केंद्र की ओर और ॠणात्मक बल परिधि की ओर खींचता है कर्मणानुसार। केन्द्राभिमुखी गतिशीलता मुक्ति और मोक्ष (HAVEN, स्वर्ग या बिहिस्त) कहलाता है अध्यात्मवाद में एवं परिधि की और (SPACE FOR ACTION या जगत) संस्कार भोग के लिए वाध्य करता है। अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं, सब उसका कमाल है। नेक हैवान और हैवान फ़रिश्ता बन जाता है उसके इशारे से। इष्ट व परम सत्ता में पूर्ण समर्पण भाव जीवों को मुक्त करता है एवं अप्राकृतिक कार्यों में लिप्त जीव भोग के चक्कर में भटकता रहता है। आग़ में हाथ डालोगे तो जलेगा कि नहीं? ठण्ड में गर्म कपडें पहन हम महफूज़ होंगे कि नहीं? यही राह मज़हब, धर्म या पंथ का वसूल है। ग़लत तो बुरा असर करेगा हीं!


व्रज का दो अर्थ है--

1. जाना, चलना, प्रगति करना-नाविनीतर्व्रजद् धुर्यैः
2. पधारना, पहुँचना, दर्शन करना-मामेकं शरणं ब्रज-भगवद्गीता। आप को क्या बताऊँ? टिप्पड़ी, तर्क और फ़जीहत से कुछ भी हाथ नहीं आएगा नेह लगा कर आदमी ख़ुदा में मिल नहीं जाता ख़ुदा बन जाता है (पानी की एक बूंद जब समंदर में गिर जाती है तो क्या किसी तरीके से उसे फिर से अलग कर सकते हैं?) और नेह के लिए आदमी को मयपन, अपना वज़ूद, अपनी अहमियत या अपना गुरुर ताख पर रखना पड़ता है। सब कुछ भुला कर सिर्फ और सिर्फ उसकी महिमा, इल्तिज़ा, इबादत या पूजा में तल्लीन करना पड़ता है अपने आप को। यही हुआ ब्रज भाव या पूर्ण समर्पण भाव जिसे गह कर हीं किसी की रूह अल्लाह-ताला की मेहरवानी से बिहिस्त पाती है, पाक़-साफ़ हो, ख़ुदा की बनाई कायनात में महफूज़ रख पाता है अपने वज़ूद को जो सख़्स या फिर अपनी रूह को आख़िरी पड़ाव तक ले जा पाता है, वोही है अमर या वैकुण्ठवासी। कोई भी उस नुरानी तिलिश्म का एक हिस्सा है और इस हक़ीकत को वह महसूस कर पाता है, मुसल्लम ख़ुद ख़ुदा बन जाता है...

हमारी निगाहों में ख़ुदा

एक बात कहूँ? हमारी निगाहों में ख़ुदा और एक छोटा सा ज़र्रा या इन्शान दो अलग-अलग हस्तियाँ लगती हैं, पर यह भ्रम है, ग़लत फ़हमी है, ग़लत है ऐसा कहना। हक़ीकत यह है की ये सबकुछ उस जादूगर का खेल है, जिसमें लगता है की कोई आ रहा है या जा रहा है, हक़ीकत में ये इधर-उधर का चक्कर नियामत का एक अहम् हिस्सा है...गीता के श्लोक, कुअरान सरीफ़ की आयत या बाइबिल की कोई पैरेबल में कत्तई फ़र्क नहीं, फ़र्क कर दिया है इन मज़हब और धर्म के ठेकेदारों ने, समाज को खोखला करने के लिए, एक दुसरे को अलग कर बेवज़ह ज़ेहाद छेड़ने के लिए, कत्लयाम के लिए सीधे-साधे मजबूर इन्शान को हैवान बना कर ख़ुदा से दूर दोज़ख में ले जा पटकने के लिए और क़यामत का खौफ़ दिखा कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए, ऐश करने के लिये, हुकुमत करने के लिये, बस। कृष्ण, पैगम्बर ईशा, राम, बुद्ध या किसी भी फ़रिश्ते को समझना है तो पहले इन मज़हब की दीवारों को तोड़ो, बंद करो इस बेवज़ह के बकवास को और लग जाओ इनंसानियत के वज़ूद को बचने में। वारिश हैं हम उस बाप के तो क्यों भूखे मरें? सब कुछ बाँट कर खाओ, मुहैया करो सब के लिए सारी सुविधाएँ...देश के सरहदों को तोड़ दो, बदी नेकि बन खिल उठेगी और अगर कुछ नहीं कर सकते तो ख़ुद-ख़ुशी कर लो ताकि तुम्हारा बनाये अंधे क़ानून के तहत तुम्हारे ताबूत को मिट्टी नहीं, फ़ाँसी दी जाये, मरने के बाद। आमीन!

Mohd Josaf Raj Singh
"व्रज" का अर्थ होता है "जाना"
और सभी ने इसका अर्थ कर दिया "आना!"
आप लोग ही बताये कि ऐसा क्यूँ किया इन लोगो ने....

डॉ. कवि कुमार निर्मल
DrKavi Kumar Nirmal

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