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इंसा को लालच दे गुलाम बनाता : कविता Insan Ko Lalach De Gulam Banata : Poem in Hindi

इंसा को लालच दे गुलाम बनाता : कविता Insan Ko Lalach De Gulam Banata : Poem in Hindi

Insan Ko Lalach De Gulam Banata : Poem in Hindi

इंसा को लालच दे गुलाम बनाता
आज के दौर में इंसा कम मेहनत
या कहें बिन मेहनत पैसा चाहता
इसलिए तो वो इंसा विभिन्न तरह के
एप, पोर्टेबल, वेबसाईट कि शरण में जाता
कम लागत में बस दिन रात दिमाग लगाता
कम मेहनत मोटी कमाई के लिये इन एपों
का दरवाजा खूब खटखटाता।।
अनाप-शनाप विडियो, गीत, खाना बनाना,
चित्रकारी न जाने क्या क्या सिखाता
उसके बाद अपलोड कर सब साईट पर
सबको लिंक भेज फरीयाद लगाता।।
सोचता कैसे व्यूवर बढ़ाऊं लाईक पाऊं
यही तो शार्ट कट अपनाता‌।।
बिना मेहनत पैसा चाहने वालों को
ये एप साईड ही तो लालच खूब दिलाता
दरअसल सही कहूं तो कैद कर एप, साईट्स
अपना ही उल्लू सीधा करता जाता।।
पांच सौ में से एक को पैसा देकर चैनल
एप, वेबसाइट सबको खूब ललचाता
इंसा इसी तरह बन कठपुतली लालच में
खूब नाच दिखलाता।।
सच इंटरनेट माध्यम गुलाम बनाता
अ-आ-इ-ई न आने वालों को भी
अपनी ओर खींच दुनिया का
मनोरंजन करता जाता।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र

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