Ticker

6/recent/ticker-posts

हिजाब नहीं अब अधिकार ख़तरे में Hijab Nahi Adhikar Khatre Mein

हिजाब नहीं अब अधिकार ख़तरे में Hijab Nahi Adhikar Khatre Mein

हिजाब नहीं अब अधिकार ख़तरे में
हिजाब नहीं अधिकार पर हमला है, अधिकार मत छीनो, मत तोड़ो
"हिजाब हो या कोई लिबास ये एक महिला, लड़कियों का अपना अधिकार है"
हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि "हिजाब इस्लाम की धार्मिक रीति का हिस्सा नहीं है, इसलिए ये अनिवार्य नहीं है। "ये बिल्कुल सही बात नहीं है "इस्लाम में परदे का हुक्म आया है लेकिन कट्टरता नहीं है परदे की शक्ल दुसरी है, जैसे डिलेडाले लिबास की शक्ल में हो या दुपट्टा या घूंघट की शक्ल में " ज़रूरी नहीं है की ये ज़बरदस्ती किसी पर थोपा जाये, जो पहनना चाहे वो पहने या ना पहने ये अधिकार एक महिला का है वो कैसे भी अपना पहनावा पहन सकती है घूंघट हो या हिजाब है।

इस्लाम में महिलाओं को आज़ादी दी है, जैसे-पढ़ने का अधिकार, वर चुन्नने का अधिकार, सम्पति का अधिकार, मर्द, औरत का बराबरी का अधिकार।

हाँ ये बात अलग है की स्कूल, काॅलेज के अलग यूनिफार्म होते हैं जिसका पालन करना पड़ता है, लेकिन किसी से उसके अधिकार का उलंघन नहीं करना चाहिए।

हिजाब के खिलाफ जो बहस चली थी

हिजाब के खिलाफ जो बहस चली थी, उसमें सरकार और हिंदूवादी संगठन यह भी कह रहे थे कि, "मुस्लिम धर्म में कट्टरता है, उसमें औरतों को आज़ादी नहीं है।जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है इस्लाम धर्म कट्टर नहीं है इसमें महिलाओं को बिना पर्दा रहने की भी छूट है यह फैसला साफ साफ यह बोल रहा है कि " लड़कियों तुम्हारे चुनने का अधिकार नहीं, धार्मिक रीतियों का पालन ही राज्य के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। किसी भी धर्म की महिला हो उसे धार्मिक रिवाज़ों के हिसाब से ही व्यवहार करना चाहिए।"अगर न्याय व्यवस्था को दिखता कि हिजाब इस्लाम धर्म का हिस्सा है तो वह उन लड़कियों पर भी इसे थोप देता, जो लड़कियां हिजाब नहीं पहनना चाहती हैं।

कोर्ट में जब हिजाब को लेकर बहस चली

कोर्ट में जब इसे लेकर बहस चल रही कि 'हिजाब इस्लाम धर्म का हिस्सा है या नहीं', तभी समझ में गया था, जो भी फैसला आएगा वो महिलाओं के विरोध में ही होगा।

लड़कियों की आजादी को धार्मिक आज़ादी से जोडा़ गया

लड़कियों की आजादी को धार्मिक आज़ादी से जोडा़ गया है, हिंदू, मुसलमान, सिख़ और सभी धर्मों के अलग अलग इलाकों की अलग अलग रिवाज होते हैं जहाँ लड़कियों के सिर पर पल्लू होना ज़रूरी माना जाता है, तो कहीं नही रिवाजों के कारण ऐसे देश में कोर्ट कैसे ये तय करेगा कि ये धार्मिक रीति का हिस्सा है या नहीं? इसका फैसला केवल इसी आधार पर किया जा सकता है, कि वह महिला की आजादी में दखल देना है या नहीं।

हां, यह पूरा मामला लड़कियों की आजादी का था, जिसे कोर्ट ने धार्मिक चौहद्दी में बांधने का काम किया है। यह फैसला दरअसल यह बोलता है कि लड़कियों की आजादी का दायरा वहीं तक है, जहां तक उनका धर्म उन्हें इजाज़त देता है। और इस तरह यह फैसला सभी धर्मों की औरतों की आजादी पर हमला है।
डाॅ. नूर फ़ात्मा
मुगलसराय-चन्दौली
9452998353

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ