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चैत माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी अष्टमी को शीतला की पूजा क्यों करते है?

चैत माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी अष्टमी को शीतला की पूजा क्यों करते है?

शीतला माता
शीतला माता को इसे बसौड़ या बसौरा भी कहते हैं। भोजन बनाकर रखा जाता है और दूसरे दिन उसी भोजन को ही खाया जाता है। इस दौरान विशेष प्रकार का भोजन बनाया जाता है। कहते हैं कि इस देवी की पूजा से चेचक प्रभित्त भाइरल संक्रमणों से मुक्ति मिलती है। यह महज धार्मिक उत्सव नहीं, वेज्ञानिक कारण भी हैं जो शोधकर्ताओं का विषय है।

Shitala Mata Ki Puja Kyon Karte Hain

Chait Mahine Mein Shitala Mata Ki Puja Kyon Karte Hain

देवि के हाथों में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी पर अभय मुद्रा में देवि विराजमान हैं। इनके साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।


अराध्या देवि माँ शीतला शक्ति अवतार हैं

अराध्या देवि माँ शीतला शक्ति अवतार हैं और भगवान शिव की जीवनसंगिनी है। इनकी उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थी। तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे। उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई। उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी के मारे मरने लगे। तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध और कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई। तभी से हर साल शीलता अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडा भोजन माता को चढ़ाने लगे।

स्कन्द पुराण में मां शीतला की अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। इस पूजन में शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। इस विशिष्ट उपासना में शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग बसौड़ा उपयोग में लाया जाता है।

शीतला माता की पूजा का महत्व

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है की गर्मी में संक्रमण बढ़ता है। रेफ्रिजरेटर और वाताकुलित घर आदि बनाये गये। पहले ये सब नहीं थे अतयेव बचाव के लिये इस परंपरा को धार्मिक आवरण, सांकेतिक व्रत का रूप दे कर मान लिया गया।
शीतला माता की जय। 

शीतला माता की पूजा कहां कहां होती है?

भारत के उत्तर राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसी जगहों पर शीतला अष्टमी का पर्व व्रतियों में आज भी प्रचलित है। बेतिया मेडिकल कॉलेज के भु. पु. प्राचार्य विनोद प्रसाद मेरे अंतरंग मित्रवत् थे, परिसर से सटे शीतला माँ के मंदीर के लिये वे सहयोगी सिद्ध हुए मेरी जानकारी में।

शीतला माता

शीतला माता दुर्गा जी का एक रूप है। पूजा वस्तुतः अंतरमुखी अनवरत युद्धस्वरूप है जिसमें विजय प्राप्त कर हीं मानव सद्गुरु की अहेतुकि कृपा से भवसागर पार कर पाता है, मुक्ति और मोक्ष का अधिकारी होता है। राजसिक व तामसिक जीवन अधोगामिता का कारण बनता है।_

दुर्गा देवी का असली नाम क्या है?

परम्परानुसार जब नवरात्रि का पर्वकाल आता है। तब हम कहते हैं- 'या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थितां अर्थात हे देवी! तुम प्रकृति रूप में, अनंत रूपों में हमारा कल्याण करो। प्रकृति का शाब्दिक अर्थ है- प्रकार+करोति अर्थात जो प्रकार - प्रकार से या अनन्त प्रकार से कार्य करती है। मनुष्य ने नाना प्रकार के भय से त्राण पाने के लिए नाना प्रकार की जड़ देवियों की कल्पना करके उनकी सन्तुष्टि के उपाय किये। जैसे चेचक जैसी महामारी से त्राण पाने के लिए 'शीतला देवी की पूजा विद्या प्राप्ति या अविद्या से त्राण पाने के लिए सरस्वती की पूजा आदि-आदि। नौ देवी की कथा का परंपरागत् महात्मय अध्यात्मिक हीं नहीं वरन् वैज्ञानिक भी है और शोध का विषय है, अँधविश्वास कदापि नहीं।

उष्णता वृद्धि के साथ संक्रमण स्टैटिकल उछाल पुरातन तथ्य है, सांकेतिक धार्मिक व्यवस्था के अंतरगत् देवि शीलता व्रती सात्विक रह ठंड़ा आहार लेते हैं। कहा भी गया कि आवश्यक आविष्कार की जननी है, और अब तो फ्रीज, वातानुकूलित रहन सहन हमें सुरक्षा प्रदान कर रहें हैं। ऐसे में अपनी पुरातन परम्पराओं को ताख पर रख सो जाएं तो इसे मनमानी कह भुगतना पड़ेगा।

डॉ. कवि कुमार निर्मल

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