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भारतीय हिंदू नव वर्ष और विश्व मूर्ख दिवस

भारतीय हिंदू नव वर्ष और विश्व मूर्ख दिवस

“हिंदू नव वर्ष की आप सभी मित्रों एवं साथियों तथा प्यारे बच्चों को ढेर सारी अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं एवं अशेष बधाईयां।“
निस्संदेह कोई हिंदुस्तानी हिंदू जन अंग्रेजी नव वर्ष मनाए,
लेकिन वह किसी कीमत पर हिंदू नव वर्ष को न बिसराए।

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का कहना उचित है,
पूरे जोश और हर्ष के साथ हर हिंदू नव वर्ष को सजाए।
इसी में हमारी सभ्यता और संस्कृति का मान सम्मान है,
हिंदू नव वर्ष मंगलमय है, सारे जग को दिखलाए।
निस्संदेह कोई हिंदुस्तानी……

01 अप्रैल को विश्व मूर्ख दिवस मनाना अंग्रेजों की चाल है?

01 अप्रैल को विश्व मूर्ख दिवस मनाना अंग्रेजों की चाल है?
दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि काली पूरे पतीले की दाल है।
भारत विश्व गुरु रहा है, अच्छे से जानता है यह सारा संसार,
फिर क्यों न करें हम भारतीय भी अपनी संस्कृति से प्यार?
एकता और अखंडता की परिभाषा यहीं से निकलती साथियों,
हर हिन्दुस्तानी इस पर आज अपनी एक नई राय बनाए।
निसंदेह कोई हिंदुस्तानी……

भारतीय नव वर्ष भारतीय संस्कृति की पहचान है

1.भारतीय नव वर्ष जो भारतीय संस्कृति की पहचान है, इसके प्रति भारतीयों के मन में उदासीनता देखकर बड़ा कष्ट होता है। नव वर्ष के साथ ही नवरात्रि महोत्सव की शुरुआत होती है, जिसमें हम भारतवासी मां आदिशक्ति दुर्गा भवानी की अर्चना और उपासना करते हैं। भारतीय नव वर्ष के प्रति उदासीनता दिखाना, जगत जननी मां शेरावाली का अपमान नहीं तो क्या है?

साथ ही हम लोग मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ अपने सभी देवी देवताओं की अराधना और उपासना करते हैं। हिंदू नव वर्ष का सम्मान करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

सनातन संस्कृति का हम सबको सम्मान करना चाहिए

2.इतने बड़े शुभ अवसर पर अपनी सनातन संस्कृति का हम सबको सम्मान करना चाहिए और इस पर अभिमान होना चाहिए। हमारे लिए बड़े गर्व की बात है कि हमारी संस्कृति इतनी सुन्दर और प्राचीन है। यहीं से ज्ञान और विज्ञान की उत्पति हुई है। इस बात को सारी दुनिया स्वीकार करती है। इसमें कोई दुविधा नहीं है कि यह कोरोना काल बहुत विकराल है। लेकिन जिस तरह अन्य अवसरों पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का ऑन लाइन आयोजन होता है, उसी प्रकार इस ऐतिहासिक अवसर पर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। साल 2020 से पूर्व कोरोना महामारी जैसी कोई समस्या नहीं रही है। तब भी भारत वंशियों में आकर्षण और रुचि में कमी देखी गई है। इतिहास इस बात का साक्षी है।

31 दिसंबर की रात में तो अस्सी प्रतिशत लोगों की आंखों से नींद गायब रहती है

3.जब 01 जनवरी को प्रत्येक पर्व पाश्चात्य (अंग्रजी) नव वर्ष मनाया जाता है तो, हम भारतवासी पंद्रह दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। 31 दिसंबर की रात में तो अस्सी प्रतिशत लोगों की आंखों से नींद गायब रहती है। रात भर पटाखे फोड़े जाते हैं। फूलझारियां जलती और चलती हैं। एक दूजे को शुभकामनाएं एवं बधाईयां देने का सिलसिला करीब करीब 10 जनवरी तक चलता रहता है। मनोरंजन से भरपूर कार्यक्रमों का आयोजन चलता रहता है। लेकिन हिंदुस्तानी नव वर्ष पर ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। भारतीय नव वर्ष आने पर जो खुशी मनाती हुई देखी जाती है, उससे ज्यादा खुशी तो क्रिकेट मैच जीतने पर लोग मनाते हैं। भारतीय नव वर्ष इस आधुनिक युग में सामान्य सम्मान का भी मोहताज क्यों है? इसका उत्तर तो हर हाल में हम भारतीयों को ही खोजना होगा और देना भी होगा।

सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,

आनेवाले नव वर्ष के लिए अपनी सोच बदलें

4.अधिकांश साहित्यकारों की कलम भी इस अवसर पर कमजोर पड़ जाती है। लोगों की सुसुप्त मानसिकता को जगाने के लिए कलमकार बंधुओं को बडी अहम भूमिका निभाने की आवश्यकता है। किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के ऊपर बहुत हद तक राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता का मजबूत आधार निर्भर करता है। अपनी सुंदर संस्कृति से दूरी बनाना अपनी मातृभूमि को कमजोर करना है। मेरी समझ से इस बात को कोई भी भारतवासी पसंद नहीं कर सकता है। आइए आनेवाले नव वर्ष के लिए अपनी सोच बदलें और इसमें सार्थकता लाएं।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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