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अंतर्जातीय विवाह - विश्व बंधुत्व Antarjatiya Vivah - Vishwa Bandhutva

अंतर्जातीय विवाह - विश्व बंधुत्व Antarjatiya Vivah - Vishwa Bandhutva

डॉ. कवि कुमार निर्मल

"विश्व बंधुत्व"
आज झूम झूम कर, प्रगतिशीलता के गीत गाना है।
''जात पात को करो विदाई'', विश्व बंधुत्व लाना है।।

प्रथम महासंभूति, सदाशिव जब धरा पर आए थे।
मानव समाज में, मानव पशुवत् हरओर छाए थे।।

तंत्र साधना, अध्यात्मिकता का परचम लहराया।
मूढं मानव को, ज्ञान प्रदान कर सद् विप्र बनाया।।

दानवगण समस्त धरातल पर छा, अत्याचार करते थे।
अतिक्रमण कर नारी को, भोग की वस्तु समझते थे।।

शिव प्रथम अंतरजातीय विवाह कर, मानव परिवार बनाए।
सात्विक आहार, विचार, व्यवहार, यम-नियम वे बतलाए।।

ऐसा लगा कैलाश पर्वत शिखर पर, देवों की टोली उतर आई।
दानवों ने तप से वरदान लिया, धरा नरसंहार देख अश्रु बहाई।।

सभ्यता का विकाश अद्भुत, क्रांतिकारी शुभ युग-संधी थी।
देवों का तीर्थ धरा धाम बन, ब्रह्माण्ड में सजी- सँवरी थी।।

पाँच हजार वर्ष प्रगतिशीलता, आर्यावर्त भू खण्ड उभरा।
धीरे धीरे पशुवत् दानवों का, टिड्डिदल चहुंओर बिखरा।।

द्वितीय महासंभूति कृष्ण, अमावस्या रात्रि, चुपके से आये।
मथुरा-वृंदावन के चितचोर, निधिवन में लीला; फाग रचाये।।

कंस-कालिया वध कर, द्वारिकाधीश कृष्ण महाभारत रचाए।
कुरुक्षेत्र युद्ध, सुदर्शन चक्र, अधर्म कुचल धर्मध्वज फहराए।।

मुक्त आत्मायें तन धर, धर्म प्रचार कर वर्ण व्यवस्था हटाए।
तीर्थंकर- पैगंबर बन, सुनीति सुपथ जन जन को बतलाए।।

जातिवाद का कुचक्र चला, मुगल फिरंगी आर्यावर्त को लधु बनाए।
अनैश्वरवादी पुंजिपती, फुफकार धरा पर, जाति का विष फैलाये।।

तृतीय महासंभूति धर्मस्थापनार्थ, मानव बन सुनिश्चित हुआ आना।
वैशाखी पूर्णिमा, महामारी कोप, लाख साधु संतों का कुंभ जाना।।

प्रयागराज महानद स्नान- ध्यान, तब से भारत में नियम बना था।
धर्म के नाम पर शोषण प्रचण्ड, दमन चक्र तब त्वरित हुआ था।।

अंतर्जातीय विवाह को, "आर्य समाज'' ने मानवीयता कहा था।
भारतीय संविधान जातिमुक्त विवाह को, वैद्य करार किया था।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल

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