वर्तमान समय की कविता : मृग मारीचि सा वेश बदलकर
मृग मारीचि सा वेश बदलकर
मृग मारीचि सा वेश बदल करते छल प्रपंच मिलेंगे।
राजनीति के दाव पेंच में नहीं मित्र गुणवंत मिलेंगे।।
छलने को बैठा शकुनि चीरहरण करने द्रौपदी की।
दुर्योधन की भरी सभा में भूले नहीं सुमंत मिलेंगे।।
बनी नम्रता पाश गले की सुप्त चेतना बढा अनय है।
मत सोचो कि मदिरालय में कोई साधू संत मिलेंगे।।
नहीं मिलेंगे सभ्य सभा में छल बल शोर शराबे होंगे।
हंसों जैसी भोली सुरत पर जहरीले बिषदंत मिलेंगे।।
निज चरित्र झांके न कोई अंतर्मन का फूटा दर्पण है।
निश्छल को भ्रमित करने को मुर्दे भी जीवंत मिलेंगे।।
शिक्षा से शिक्षक का नाता सुशासन में नहीं रहेगा।
मधुशाला में शिक्षाविद अब करते दारु बंद मिलेंगे।।
मिटा भाई का भ्रातृप्रेम एक दुजे का त्याग समर्पण।
संस्कार यह कहां से लायें ईर्ष्या द्वेश घमंड मिलेंगे।।
वल्कल धारण कर सुंदरी इतरायेगी जब सड़कों पर।
शूर्पणखाओं की भीड़ में निष्क्रिय सब धर्म मिलेंगे।।
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उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा
9934775009
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