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शमशान घाट पर कविता Shamshan Ghat Par Kavita

श्मशान घाट पर कविता | श्मशान घाट पर शायरी

शमशान घाट
वो वक्त भी
कितना अजीब होता है
जब किसी सोते हुए को
नहलाया जाता है
फिर उसे सजाया जाता
जो नही थे कभी अपने
वो आ जाते उसे जगाने
जो दुश्मन थे किसी जमाने
आँसुओं को झर झर बहाते
अपनेपन का एहसास दिलाते
जिससे दूर दूर का न था नाता
कभी मिलने न था आता जाता
आज जमा हुए हैं सब के सब
चीखते चिल्लाते याद करते रब
बच्चों जैसे नए कपड़े पहनाते
सफेद चादरों से फिर लिपटाते
राम नाम का याद करते करते
बच्चों की तरह कँधे उठाते
उसको उसकी मँजिल ले जाते
बस यही पर हो जाता वो ढेर
लोग पूछते हैं और कितनी देर
 सुधीर सिंह आसनसोल
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