Ticker

6/recent/ticker-posts

सरकारी व ग़ैर सरकारी संस्थाओं की स्कीमें Schemes of Government and Non-Government Organizations

सरकारी व ग़ैर सरकारी संस्थाओं (NGOs) की स्कीमें Schemes of Government and Non-Government Organizations

और उनके इम्प्लीमेन्ट के बारे में कुछ अहम और मुफीद बातें
लेखक शफीक़ -उल- ईमान हाशिमी

लेखक
शफीक़ुल ईमान हाशिमी
(कल्याण)
सुझाव
अबरार अहमद फारूक़ी
संपादक : उर्दू दैनिक ख़बर -ए- हिन्द
(लखनऊ)

आदेशानुसार
अली अकबर साहेब
(डायरेक्टर नजफी हाउस, मुंबई )

(1)

मायनारिटीज़ को मिलने वाली तालीम, रोज़गार और मेडिकल की सुविधाएं।


सरकारी स्कीमें दो प्रकार की होती हैं :

(१) केन्द्रीय योजना या नेशनल स्कीम (जो केन्द्र सरकार की स्कीम होती है)

(२) राजकीय योजना या रियासती स्कीम (जो राज्य सरकार की स्कीम होती है)

यह सारी स्कीमें मतगणना यानी मरदुम शुमारी पर आधारित होती हैं। मतगणना के बाद शेड्युल कास्ट (S. C.), शेड्युल ट्राइब्स (S. T.), ओ. बी. सी और ग़रीबी की रेखा से नीचे ज़िनदगी गुज़ारने वाले नागरिकों का जो डेटा मिलता है उस के मुताबिक़ स्कीमों मे फेर बदल भी होता है। यानी फंड घटता बढ़ता भी है और ज़रूरत पड़ने पर नई नई पालीसियां भी बनाई जाती हैं।

‌यहां प्रचलित सरकारी पालीसियों की तफ्सील (Detail) दी जा रही है।

पालीसी की क़िस्में :

(1) स्वास्थ्य (Health)
(2) शिक्षा (Education)
(3) रोज़गार (Job)
(4) खेल (Sports)
(5) कारोबार (Buisness)
(6) अपंग (Handicappd Policy)

सब से पले हम स्वास्थ्य (Health) को लेते हैं। इस के लिए गवर्नमेंट की दो बड़ी योजनाएं है। एक नेशनल लेबल की योजना है जिस का नाम प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (P. M. J.) है। और दूसरी राज्य स्तर यानी स्टेट लेबल की योजना है जिस का नाम पहले राजीव गांधी फाउंडेशन था। अब उसी का नाम बदल कर महात्मा ज्योतिराव फुले जन आरोग्य योजना (M. P. J.) रख दिया गया है।


प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना

यह योजना तमाम बड़े सरकारी स्पतालों और कुछ विशेष प्राइवेट स्पतालों में होती है। विशेष इस मअ्ने में कि यह स्कीम प्राइवेट स्पतालों को अपनी मर्ज़ी से लेनी पड़ती है, कम्पलसरी नहीं है। मुंबई के बहुत से प्राइवेट स्पतालों ने यह स्कीम ले रखी है। जैसे हिन्दुजा हास्पिटल, लीलावती हास्पिटल, प्रिंस अली ख़ान हास्पिटल, जसलोक हास्पिटल, सेवेन स्टार हास्पिटल, नोबल हास्पिटल और सैफी हास्पिटल वगै़रह।

स्कीम की जानकारी कैसे और किस से लें ?

हास्पिटल के अंदर इस का काउंटर लगा होता है। इंक्वायरी करनी पड़ती है। और जो व्यक्ति इस काम का इंचार्ज होता है उस को आरोग्य मित्र कहा जाता है। इस काम के लिए आरोग्य मित्र से मिलना होता है। वह पेशेन्ट (Petient) की फाइल देख कर लोगों को गाइड करता है और आगे का सारा प्रोसीज़र बताता है। याद रखने की एक बात यह भी है कि इस योजना (P. M.) के तहत पूरी सर्जरी कवर होती है।
टोल फ्री नम्बर से मदद लेना :
इसका टोल फ्री नम्बर है :
180023322


कौन सा हास्पिटल आप के नज़दीक?

आप इस फोन नम्नर द्बारा सम्पर्क करके घर बैठे इस स्कीम की पूरी मालूमात ले सकते हैं कि यह योजना हमारे शहर या हमारे स्टेट के कौन कौन से प्राइवेट हस्पतालों में है। अप इस टोल फ्री नम्बर द्वारा यह जानकारी भी हासिल कर सकते हैं कि कौन सा हास्पिटल आप के नज़दीक में है जिस में यह सुविधा (प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) उप्लब्ध है।

यह बात भी ध्यान में रहे कि यह कोई ज़रुरी नहीं है कि किसी एक हास्पिटल में तमाम प्रकार का इलाज या उपचार मिल जाए या वहाँ पर हर तरह का आप्रेशन होता हो। किसी हास्पिटल में हार्ट की योजना मिलेगी, कहीं पर किडनी का केस लिया जाता होगा और कहीं पर एक्सीडेन्टल केस। 

प्रधानमंत्री आरोग्य योजना के फायदे

बड़े, महंगे और एक्सीडेनंटल केसेज में इस स्कीम का फायदा उठाया जाता है। जैसे हार्ट के केस में, किडनी के केस में, कैंसर के मामिले में और एक्सीडेन्ट वग़ैरह के मामिलात में। 

ज़रूरी डाक्युमेन्ट

हास्पिटल में लगे काउंटर पर बैठे हुए आरोग्य मित्र (इंचार्ज) को इस काम के लिए जो डाक्युमेन्ट्स दिखाने पड़ते हैं वह निम्नलिखित हैं। 
(1) राशन कार्ड
(2) आधार कार्ड
गवर्नमेंट ने तमाम बड़े केसेज़ के लिए डेढ़ लाख रूपये से दो लाख रूपये तक मुख़्तस किये हैं। नया बजट पास होने के बाद मुमकिन है इस में कुछ इज़ाफा हुआ हो। इस विषय में कोई यकीनी बात कहने के लिये नया जी. आर. (G. R.) देखना पड़ेगा।

एक और बड़ा फायदा

जैसा की मैं ने ऊपर बताया कि यह एक नेशनल स्कीम है। यानी इस का संबन्ध सीधे सेंट्रल गवर्नमेंट से है। इस का फायदा किसी दुर्घटना के अवसर पर और ज़्यादा खुल कर सामने आता है। कैसे ? इस तरह।

मान लीजिए किसी आदमी का अचानक कहीं पर एक्सीडेन्ट हो गया और आप वहाँ पर मौजूद हैं तो आप को ज़्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है। आप के क़रीब में जो भी हास्पिटल हो और आप आसानी से जहाँ भी ले जा सकते हों, ले जाएँ। ले जाकर एडमिट कर दें और बस !


प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना क्या है?

आप का काम उस पेशेनट को सिर्फ़ हास्पिटलाइज़ करना है। बाक़ी काम हास्पिटल के लोग देख लेंगे। यानी हास्पिटल के लोग उसका इलाज भी करेंगे और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (P. M J.) के तहत उस का पेमेन्ट भी सेन्ट्रल गवर्नमेंट की तरफ से आ जायेगा। पेशेन्ट के घर वालों को बुलाया जाएगा। वह आकर हास्पिटल के लोगों को अपने डाक्युमेन्ट्स दिखायेंगे। डाक्युमेन्ट्स ही के आधार पर पेमेन्ट का सारा काम मुकम्मल होगा। हास्पिटल पहुंचाने वाले व्यक्ति को किसी भी क़िस्म की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

महात्मा ज्योतिराव फुले जन आरोग्य योजना

इस योजना के अन्तर्गत भी स्वास्थ्य और शिक्षा की बहुत सारी सुविधाएं उप्लब्ध कराई जाती हैं। लेकिन दोनों में एक फर्क़ है। वह यह कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में किसी भी स्टेट का राशन कार्ड चल जाता है लेकिन महात्मा ज्योति राव फुले जन आरोग्य योजना में केवल महाराष्ट्र ही का राशन कार्ड चलता है।

कुछ अन्य संस्थाएं :
(1) चेरिटी कमीशन
(2) सी. एम. फंड
(3) एम. एल. ए. फंड
सब का प्रोसीज़र सामान्य है। इन तीनों में से किसी से भी लाभान्वित होने के लिए राशन कार्ड अपने स्टेट का होना कम्पलसरी है। जैसे हम महाराष्ट्र के हैं तो महाराष्ट्र का राशन कार्ड।


चेरिटी कमीशन क्या होता है ?

अब से पहले हस्पतालों को 2 प्रतिशत टेक्स देना पड़ता था। लेकिन उस में कुछ कमी होने के कारण बाम्बे हाय कोर्ट ने उसे समाप्त कर दिया और उस की जगह पर यह क़ानून लागू किया गया कि हर एक हास्पिटल को अपने यहाँ 20 प्रतिशत आप्रेटिव बेड रिजर्व रखना होगा। तमाम स्कीमों द्वारा ग़रीब लोगों का जो महंगा महंगा आप्रेशन होता है वह इसी माध्यम से होता है। उसका श्रोत (Resource) कोर्ट का यही नया आदेश है।

मदद की सीमा

कोर्ट के आदेशानुसार हर स्पताल में 20 प्रतिशत बेड रिजर्व रहते हैं। उस में 10 फ़ीसद बेड ऐसे होते हैं जो टोटल फ्री हैं और 10 फीसद बेड ऐसे होते हैं जो केवल 50 फीसद डिस्काउंट देते हैं। 


टोटल फ्री वाले पेशेंट

टोटल फ्री आप्रेशन उन मरीजों का किया जाता है जिनके पास पीला या ओरेंज राशन कार्ड होता है और इसी के साथ उनका इंकम सर्टिफिकेट 50 हज़ार के नीचे होता है। 
50 फीसद फ्री वाले आप्रेशन :_

50 फीसद फ्री आप्रेशन उन मरीजों का होता है जिनके पास ओरेंज राशन कार्ड होता है और उनका इंकम सर्टिफिकेट 80 हज़ार से कम होता है। 

टेस्ट और डायलेसिस के मामिलात

याद रहे कि अभी डिस्काउंट और टोटल फ्री वाले पेशेन्ट्स की बात चल रही है। जिन मरीज़ों को किसी स्कीम के तहत डिस्काउंट मिलने वाला है उनको भी टेस्ट यानी चेक अप का चार्ज देना पड़ता है। अल्बात्ता अगर टेस्ट के बाद आप्रेशन अनिवार्य हुआ तो आप्रेशन और टेस्ट दोनों का चार्ज मुआफ या हाफ हो जाता है।


किडनी पेशेन्ट के डायलेसिस का मामला

रहा किडनी पेशेन्ट के डायलेसिस का मामला तो हमें यह जान लेना चाहिए कि डायलेसिस भी स्टेट लेबल पर होता है। मतब यह कि डायलिसिस वालों के लिए महीने में जो चार या छ: मुफ़्त डायलिसिस की स्कीम है वह केवल उन किडनी पेशेन्ट के लिए है जो मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र के रहिवासी हैं तो उनके पास महाराष्ट्र का राशन कार्ड और आधार कार्ड भी है। 

अगर मरीज को स्कीम न मिले तो ?

मान लीजिये हम किसी पेशेन्ट को लेकर हास्पिटल गए और वहां के डाक्टर्स से स्कीम की बात की लेकिन वह लोग स्कीम देने को तैयार नहीं हुए और इनकार कर बैठे कि हमारे हस्पिटल में ऐसी कोई स्कीम नहीं है तो हम को क्या करना होगा।

ऐसी सिचुएशन में हम आरोग्य मित्र के काउंटर पर जाकर उस से बात करेंगे। आगर वह भी रिस्पांस न दे तो हम उस से यह कहेंगे कि तुम अपने आफिसर से हमारी बात कराओ। 


अनजान आदमी का पराब्लम

अगर आप हास्पिटल में नहीं हैं और पेशेन्ट के साथ कोई अनजान या अनाड़ी आदमी है और हास्पिटल वालों से पोजिटिव रिस्पांस नहीं मिल रहा है तो ऐसी हालत में आप को टोल फ्री नम्बर का साहारा लेना होगा जो हर स्पताल में मौजूद होता है। अगर टोल फ्रि नम्बर पर बात करने के बाद भी कुछ कन्फ्युज़न रह जाए तो आप उस के सामने भी उस के बड़े आफिसर से बात कराने का प्रसताव रख सकते हैं। इस तरह से मुआमले का कोई न कोई समाधान निकल आएगा।

अपंगों (माज़ूरों) और बेसहारा लोगों के लिए योजनाएं

ऐसे मजबूर और मुस्तहिक़ लोगों के लिए तीन योजनाएं हैं।
(1) संजय गांधी निराधार योजना
(2) एम . एल. ए. फंड
(3) एम. पी. फंड


इस से कौन कौन से लोग फायदा उठा सकते हैं ?

(1) माज़ूर अफराद (अपंग, अंधे और गूंगे लोगक)
(2) बे सहारा औरतें
(3) बेवा औरतें
(4) तलाक़ शुदा औरतें
(5) यतीम बच्चे

वास्तव में देखा जाए तो बेवा और तलाक शुदा औरतें भी बे सहारा औरतों की कटेगरी में आती हैं। इन दोनों को मैं ने इस लिए आलग करके बयान किया है ताकि एक अन नोन (Unknown) या अनजान व्यक्ति को भी समझने में कोई दुशवारी न हो।

बेसिक डाक्युमेन्ट्स

(1) राशन कार्ड
(2) आधार कार्ड / एड्रेस प्रूफ
(3) बैंक पास बुक (ऐसे बैंक का जो इस के लिए मख़्सूस है) जैसे महाराष्ट्र में यूनियन बैंक और उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद बैंक
(4) रहिवासी दाख़िला (कम से कम 15 साल का)
(5) इन्कम सर्टिफिकेट

यह दोनों चीज़ें (नम्बर ૪ और नम्बर ५) तहसील जाकर तहसीलदार से बनवानी पड़ती हैं


बे सहारा औरतों की एक नई कटेगरी

कुछ ऐसी बद - नसीब औरतें भी हैं जिन के शौहर लापता हो गये। कारण यानी वजेह कुछ भी हो सकती है। ऐसी औरतों को गवर्नमेंट से किसी भी प्रकार की मदद हासिल करने के लिए दूसरे डाक्युमेनट के साथ अपने शौहर की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी पेश करनी पड़ेगी। इसी तरह तलाक़ शुदा औरत को निकाह नामा और तलाक़ नामा दोनों दिखाना पड़ेगा। 
रहा बेवा औरत और यतीम बच्चे का मामिला, तो बेवा औरत को अपने शौहर की मौत का सर्टिफिकेट (Death Cirtificate) और यतीम बच्चे को अपने बाप की मौत का सर्टिफिकेट (Death Cirtificate) पेश करना पड़ेगा।

हैंडिकैप्ड या अपंग होने का सबूत

मअ्ज़ूर व्यक्तियों को गवर्नमेंट की हर आफिस में अपनी मअ्ज़ूरी का सर्टिफिकेट दिखाना ज़रूरी होता है। अगर अपंग है तो अपंग होने का सर्टिफिकेट अगर ब्लाइंड है तो ब्लाइंड होने का सर्टिफिकेट और अगर गूंगा है तो गूंगा होने का सर्टिफिकेट। 
ठीक इसी तरह यतीम या अनाथ बच्चे को भी अपने बाप की मौत का सर्टिफिकेट पेश करना लाज़िमी होता है। 


जानकारी कहाँ से प्राप्त करें ?

इस प्रकार की तमाम जानकारियाँ और दूसरी तफ्सीलात (Other Details) तहसीलदार या वार्ड आफिसर से प्राप्त की जाती हैं। 

फार्म का प्रोसीज़र

इस का फार्म तहसील या म्युनिसिपल आफिस से लेना पड़ता है और उसे अच्छी तरह भरने के बाद तहसील ही में जमा करना पड़ता है। लेकिन आफिस में जमा करने से पहले तहसीलदार से मिलकर उसे दिखाना ज़रूरी होता है। ताकि फार्म भरने में यदि कुछ कमी कोताही रह गई हो तो उसे दूर कर लिया जाए। 

हैंडिकैप्ड के लिए व्हीलचेयर

यह एम. एल. ए फंड और एम. पी फंड से मिलता है। इस में कई क्वालिटीज़ हैं। कुछ अच्छे हैं, कुछ बहुत अच्छे हैं। यह आप की भाग दौड़ और पैरवी पर निर्भर है। आप अपने मामले की जितनी अच्छी पैरवी करेंगे उतना ही अच्छा काम होगा। 
इस के लिए आप को सब से पहले हैंडिकैप्ड का सर्टिफिकेट बनवाना पड़ेगा। जो दो मरहलों में बनता है। इस की पूरी जानकारी और परफेक्ट मालूमात किसी भी बड़े सरकारी हास्पिटल से ली जा सकती है। दर असल यह काम एरिया वाइज़ होता है। 


एजुकेशन की ओर शैक्षणिक योजनाएं

यहाँ तक बयान की गई तमाम सुविधाएं हर नागरिक के लिए थीं और सार्वजनिक थीं। उस में किसी धर्म या ज़ात पात (Cost) की कोई विशेषता नहीं थी। स्कीम से लाभान्वित होने की बस एक ही शर्त थी कि वह शख़्स (यानी पेशेन्ट) सरकारी स्कीम का योग्य यानी हक़दार हो।

अब हम एजुकेशन के उनवान से कुछ स्कीमें बताने वाले हैं। जो सिर्फ और सिर्फ़ मायनारिटीज़ यानी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष हैं। हम चूंकि ख़ुद अल्पसंख्यक हैं यानी अक़ल्लियत में हैं। इस लिए हमारे यहां जब भी अक़ल्लियत या मायनारिटी का शब्द वोला जाता है तो उस से आम तौर पर मुस्लिम समुदाय ही मुराद लिया जाता है।


एजुकेशन और मायनारिटीज़

ग़रीब बच्चों को एजुकेशन दिलाने के लिए सरकारी स्कूलों में कोई बड़ा मस्अला नहीं होता, लेकिन वहाँ पर जूनियर के. जी. और सीनियर के. जी. का सिस्टम्स (जी. आर में दर्ज होने के बावजूद) प्रेक्टिकल में नहीं होता। इस लिए कुछ वालिदैन (Parents) छमता न रखने के बावजूद अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाख़िला दिलाने के ख़्वाहिशमंद रहते हैं। इस लिए हम बात वहीं से शुरू करते हैं।

हर प्राइवेट स्कूल में मानिरिटिज़ के लिए 25 प्रतिशत कोटा रिज़र्व होता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मुस्लिम समुदाय में जिस के पास ओरेंज राशन कार्ड हो और इनकम सर्टिफिकेट एक लाख से कम हो तो गवर्नमेंट स्कूलों में उस के बच्चों की तालीम और दूसरी तमाम चीज़ें फ्री होती हैं।


मुस्लिम बच्चों के लिए स्कालरशिप

मायनारिटिज़ की कटेगरी में आने वाले बच्चों को स्कालरशिप देने वाली दो संस्थाएं बहुत मशहूर हैं।

(1) मौलाना आज़ाद एजुकेशनल फाउंडेशन

यह सेंट्रल गवर्नमेंट की स्कीम है। जो मनिस्ट्री आफ मायनारिटीज़ अफेयर्स के तहत है। मौलाना आज़ाद एजुकेशनल फाउंडेशन की जानिब से दी जाने वाली स्कालर शिप (Scholarship) को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्कालरशिप के नाम से जाना जाता है।

इस स्कालरशिप में लड़की और लड़के के बीच कोई फर्क़ नहीं किया जाता। यह स्कालरशिप तमाम मुस्लिम छात्रों और छात्राओं के लिए है।

(2) बेगम हज़रत महल नेशनल स्कालरशिप

यह स्कालरशिप भी एक नेशनल स्कीम के तहत दी जाती है। लेकिन यह सिर्फ 9 वीं क्लास की लड़कियों (Girls) के लिए है। लड़कों (Boys) के लिए नहीं।


स्कीम से फायदा उठाने का तरीक़ा

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्कालरशिप की प्राप्ति के लिए एक फार्म भरना पड़ता है। जो Ministry Of Minarity Afairs (Government Of India) की वेब साइट पर दस्तियाब होता है।

इसी तरह बेगम हज़रत महल नेशनल स्कालरशिप का फार्म भी वेब साइट पर मौजूद है। दोनों के फार्म आन लाइन ही भरने पड़ते हैं। गवर्नमेंट से मिलने वाली किसी भी स्कालरशिप में अब आफ लाइन का सिस्टम नहीं है।

स्कीम की प्राप्ति के लिए ज़रूरी डाक्युमेनट

(1) स्टूडेंट की डिटेल्स
(2) स्कूल की डिटेल्स
(3) आधार कार्ड
(4) राशन कार्ड
आधार कार्ड और राशन कार्ड किसी भी स्टेट का हो। क्योंकि यह एक नेशनल पालीसी है। स्टेट पालीसी नहीं।


कोटा सिस्टम

मेडिकल फिल्ड में तो किसी भी समुदाय के लिए कोई कोटा नहीं लेकिन इंजिनियरिंग कालिजों में कोटा रिज़र्व होता है। जो मायनारिटीज़ के बच्चों के लिए और अनुसूचित जन - जातियों (S. C.), दीगर क़बायल (S. T.) और ओ. बी. सीज़ के लिए मख़सूस होता है। इस स्कीम की बरकत से इंजीनियरिंग में एडमीशन लेते ही स्टूडेंट को गवर्नमेंट की तरफ से स्कालरशिप मिलने लगती है। 

UPSC और MPSC परिक्षाएं

UPSC और MPSC परिक्षाओं की तैयारी कराने वाली कई संस्थाएं हमारे यहाँ काम कर रही हैं। मिसाल के तौर पर दिल्ली में जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी और मुंबई में अल्लाना इंस्टीट्यूट और हज हाउस की तरफ से मुस्लिम बच्चों को IAS इक्ज़ाम की तैयारी कराने का बहुत अच्छा इंतिजाम है। लेकिन मुस्लिम बच्चों का रुजहान (Mood) इस फिल्ड की तरफ बहुत कम है। 

स्कालरशिप देने वाली निजी संस्थाएं

कुछ निजी संस्थाएं भी हैं जो मायनारिटीज़ के बच्चों को उच्च शिक्षा (Higher Education) के लिए स्कालरशिप देती हैं। यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो सब से ऊपर रहमानी फाउंडेशन का नाम आता है। दूसरे नम्बर पर जमीअत उलमा -ए- हिन्द का नाम लिया जाता है। लेकिन यह संस्स्था Social Work में कम और राजनीति में ज़्यादा सक्रिय होने के कारन अभी इस काम (Social Work) में बहुत पीछे है।

कुछ संस्थाएं राज्य स्तर पर सक्रिय हैं। जो मुस्लिम छात्रों और छात्राओं को स्कालरशिप देती हैं। जैसे Mesco (माहिम, मुंबई), हाजी अली दर्गाह (मुंबई) और माहिम दर्गाह (मुंबई)। कुछ लोकल संस्थाएं अपने अपने इलाकों में काम कर रही हैं। जैसे मुंबई में बांद्रा, भिंडी बाज़ार, नल बाज़ार, मदनपुरा और मुंबई के अतराफ में नेरुल, मुंब्रा, कल्याण और भिवंडी वग़ैरा में कुछ लोग अपने अपने तौर पर सरगर्म (Activ) हैं।


रोज़गार की स्कीमें

बेरोज़गार व्यक्तियों को रोज़गार उप्लब्ध कराने के लिए एक स्कीम सेंट्रल गवर्नमेंट ई शरम के नाम से चला रही है। यह स्कीम सिर्फ केंद्र सरकार के विज्ञापनों में दिखाई देती है। इसका कोई अमली रूप (Practical) अब तक कहीं देखने में नहीं आया है। ई शरम कार्ड बहुत से लोगों ने बनवाया लेकिन अब तक किसी आदमी को इस कार्ड का कोई फायदा मिलते हुए मैं ने न कहीं देखा न सुना। बहरहाल इस के विषय में कोई यक़ीनी बात कहने से पहले हमें इसका जी. आर. देखना पड़ेगा।

मज़दूर योजना या श्रमिक योजनाएं

बेरोज़गारी से जूझते प्रेशान हाल लोगों को रोज़गार दिलाने के लिए एक दूसरी स्कीम है। जो है तो स्टेट लेबल की लेकिन बहुत सक्रिय है। इस स्कीम का नाम मज़दूर योजना है। 


मज़दुर योजना की कटेगरी

(1) बांध काम
(2) हम्माल (बोझ ढोने वाले)
(3) घर काम करने वाली औरतें
(4) बेरोज़गार लोग
(5) असंगठित कामगार योजना

बांध काम में वह लोग काउंट किये जाते हैं जो बिल्डिंगों में काम करते हैं और बेकार रहने पर काम मिलने की आस में चौराहों पर खड़े रहते हैं। 90 दिन का सर्टिफिकेट दिखाने के बाद इनका एक साल के लिए रजिस्ट्रेशन होता है। इसका फायदा यह है कि बांधकाम का मज़दूर जब रजिस्टर्ड हो जाता है तो डायरेक्ट उसके अकाउंट में पांच हज़ार रूपये आ जाते हैं।

मजदूरों श्रमिकों के रजिस्ट्रेशन का प्रोसीज़र

नरेगा के मजदूर हों या मनरेगा के मजदूर हों या फिर बांध काम के मजदूर, सब के रजिस्ट्रेशन की प्रोसेसिंग एक ही है जो यहाँ दर्ज की जा रही है।

रजिस्ट्रेशन के मरहले

इसके लिए दो तरह के डिपार्टमेंट होते हैं।
(1) ग्राम पंचायत (गावं देहात के लिए)
(2) म्युनिसिपल आफिस (नगरों और उपनगरों के लिए)
यहां से मजदूर होने का एक सर्टिफिकेट मिलता है। जिसे बाक़ी दूसरे डाक्युमेन्ट के साथ लेबर आफिस में जमा करना पड़ता है। 

बेसिक डाक्युमेन्ट

(1) अप्लिकेशन
(2) राशन कार्ड
(3) आधार कार्ड / एड्रेस प्रूफ
(4) बैंक पास बुक
(5) पूरी फेमिली का आधार कार्ड और उसकी डिटेल्स
(6) चार फोटो

90 दिन का सर्टिफिकेट कैसे बनता है ?

अब रहा सवाल यह कि कोई मजदूर 90 दिन का सर्टिफिकेट कैसे बनवाए और कहाँ से बनवाए ? ऊपर की पंक्तियों में मैं ने बताया है कि मजदूर को ग्राम पंचायत या म्युनिसिपल आफिस में अप्लिकेशन देनी पड़ती है और फार्म भरना पड़ता है। उस फार्म में ऐसे पांच लोगों की डिटेल्स देनी पड़ती है जिनके पास आप ने साल भर में 90 दिन या इस से ज़्यादा काम किया हो।


लेबर आफिस के मरहले

लेबर आफिस इस बात का कन्फरमेशन चाहता है कि आप अपना उत्तरदाई किसे नियुक्‍त कर रहे हैं जो किसी तरह की अनहोनी पेश आने पर आपका वारिस हो। आप अपने वारिस के तौर पर जिसे नामज़द करना चाहते हैं उसकी डिटेल्स लेबर आफिस में देनी पड़ेगी। मिसाल के तौर पर आप यदि अपनी बीवी को नामनेट करना चाहते हैं तो बीवी का आधार कार्ड और अगर अपने बच्चे को नामज़द करना चाहते हैं तो बच्चे का आधार कार्ड। अगर आधार कार्ड नहीं हेै तो स्कूल सर्टिफिकेट जमा करना पड़ेगा।

रजिस्ट्रेशन के अन्य फायदे

मजदूर के रजिस्टर्ड हो जाने के बाद उसको एक डायरी मिलती है, सामान की पेटी मिलती है, उसके बच्चों को एजुकेशन में मदद मिलती है। और अगर वह शादी शुदा नहीं है तो शादी के समय उसको पांच हज़ार रूपये मिलते हैं, शादी के बाद पहले दो बच्चों के जन्म पर पंद्रह पंद्रह हज़ार रूपये (दो बार) मिलते हैं।

इसी तरह उसे मेडिकल की सुविधाएं भी दी जाती हैं। वह अगर हास्पिटल में एडमिट हो तो उसे प्रतिदिन भत्ता मिलता है। काम करते समय अगर वह ज़ख़मी हो जाए तो उसे घाव की गहराई के हिसाब से 20 हज़ार से लेकर ढाई लाख रूपये तक मिलते हैं। तथा काम के दौरान अगर उसका देहान्त (यानी मौत) हो जाए तो उस के नामनेट वारिस को ढाई लाख रूपये दिये जाते हैं।


मनरेगा की योजनाएं

इसके तहत जो रजिस्टर्ड मजदूर हैं सरकार उनको काम देती है। जैसे कहीं ब्रिज बन रहा है, कहीं सड़क बन रही है। इसी तरह और भी बहुत से काम हैं जो सरकारी प्रोजेक्ट होते है। ऐसी तमाम जगहों पर इन ही रजिस्टर्ड मजदूरों की सेवाएं ली जाती हैं। यह योजना दक्षिण भारत में ज्यादा एक्टिव है। इस से मिलती जुलती इसी प्रकार की एक योजना उत्तर प्रदेश में चल रही है। उसका नाम नरेगा है। नरेगा से उत्तर प्रदेश के ग़रीब मज़दूरों को बड़ी राहत मिल रही है। 

 मज़दूर औरतों के लिए योजनाएं

ऐसी बहुत सी औरतें हैं जो मरदों की तरह धुप में काम करती हैं। अपना ख़ून पसीना बहाती है। औेतों के लिए भी गवर्नमेंट की वही सुविधाएं हैं जो मरदों के लिए हैं। बल्कि औरतों के लिए उनकी सिनफी (Genderic) कमज़ोरियों को देखते हुए कुछ एक्स्ट्रा सुविधाएं भी हैं। कुछ निजी संस्थाएं भी (जैसे महाराष्ट्र में MMNF) औरतों को ख़ुद कफील बनाने के लिए कई वर्षों से एक्टिव हैं। लेकिन उन सुविधाओं (Facilities) से वाक़िफ न होने के सबब हमारे यहां कुछ औरतें घर काम करने पर मजबूर हैं और कुछ औरतें "रस्म - ए- गदागरी" को फरोग़ देने में लगी हुई हैं।

यही वजेह है कि मुस्लिम समाज में गदागरी का चलन आम है और भिखारियों की लाइन लगी हुई है। जहां भी और जिस तरफ भी देखिए भिखारी मरदों और भिखारी औरतों का सैलाब दिखाई देता है।


असंगठित कामगार योजना

हम अगर सरकारी जाब पर नहीं हैं या किसी ऐसे प्राइवेट इदारे में काम कर रहे हैं जिस में पी. एफ. (प्राइवेट फंड) या इस तरह का कोई और फंड हमारी सेलरी से नहीं कटता जो हम को रिटायरमेन्ट के बाद पेनशन के तौर पर मिले। तथा हमें उस इदारे से घर ख़रीदने के लिए लोन या मेडिकल सुविधाएं नहीं मिल रही हैं तो ऐसे जाब को असंगठित जाब कहा जाएगा और उस जाब पर लगने वाले को असंगठित मज़दूर। क्युंकि उस जाब की कोई गारंटी नहीं है। इस प्रकार के जाब वाले को भी फार्म भरने के बाद बेरोज़गारी भत्ता मिलेगा। जैसा कि दूसरे मज़दूरों को मिलता है। 

स्पोर्ट्स या खेल के प्रोतसाहन के लिए गवर्नमेंट की स्कीम

स्पोर्ट्स या खेल के प्रोतसाहन के लिए गवर्नमेंट की स्कीम समझने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि हमारे देश भारत में किन किन खेलों को राष्ट्रीय खेल माना जाता है। तो इस विषय में सब से अहम बात यह है कि भारतीय खेलों में क्रिकेट का शुमार नहीं होता। केवल कुश्ती, कबड्डी, हाकी, बेड मेन्टन और नेज़ा बाज़ी जैसे कुछ खेलों को ही राष्ट्रीय खेल माना जाता है। हम स्पोर्ट्स या खेल का शब्द जब हिन्दुस्तान के संदर्भ में बोलते हैं तो उस से यही सब खेल मुराद लिये जाते हैं।

स्पोर्ट्स के लिए गवर्नमेंट की तरफ से कोई विशेष फंड नहीं होता। अल्बत्ता इस के लिए खेल का सामान मिलता है और स्थानीय टीम में विजय पाने जैसे लक्ष्य प्राप्त हो जाने के बाद उसका चयन नेशनल टीम में कर लिया जाता है।

दूसरी बात यह कि कुछ निजी संस्थाएं इन खेलों को बढ़ावा देने के पक्ष में ज़रूर हैं। लेकिन वह भी इस के लिए कोई फंड रिजर्व नहीं रखतीं। इस मामले में उनका इन्वेस्टमेंट का तरीक़ा यह होता है कि जब कोई खिलाड़ी नामचीन हो जाता है तो वह उस को कोई एवार्ड दिलाने के लिए या स्वयं अपने विज्ञापन के लिए उसका स्लेक्शन कर लेती हैं। दोनों प्रकरणों में खिलाड़ी को कुछ पैसे मिल जाते हैं और कंपनियों के प्रचार प्रसार या प्रोपैगंडे का सामान हो जाता है।

स्पोर्ट्स और स्कूलों के लिए योजनाएं

राज्य सरकारें इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि वह हर गाँव, हर शहर और शहर के हर मोहल्ले के स्कूली बच्चों के लिए जहाँ अच्छी शिक्षा (तालीम) के बन्द -ओ- बस्त में सहयोग देती हैं वहीं वह उन बच्चों के स्वास्थ्य (Health) के मामिले में भी गंभीरता दिखाएँ। और इस काम को यक़ीनी बनाने के लिए हर मुमकिन प्रयास भी करें। इसी मक़्सद के तहत हर सकूल में बच्चों की तालीम के साथ साथ उन के लिए खेल का ग्राउंड भी होता है और खेल का सामान भी। खेल का सारा सामान उन्हें राज्य सरकार की तरफ से उप्लब्ध कराया जाता है।

कारोबार (Buisness) के लिए सरकारी योजनाएं

मायनारिटीज़ या अल्पसंख्यक समुदाय को कारोबार या व्यवसाय में मदद दिलाने के लिए सम्पूर्ण भारत में केवल एक ही स्कीम है। जो "मौलाना आज़ाद मायनारिटी फंड" या "मौलाना आज़ाद मालियाती फंड" के नाम से प्रसिद्ध है। मौलाना आज़ाद मालियाती फंड की जानिब से अक़ल्लियतों (Minorities) को बिज़नेस के लिए लोन दिया जाता है।

इस की सारी डिटेल्स मौलाना आज़ाद मालियाती फंड के कार्यालय से प्राप्त की जा सकती हैं। नीचे की लाइनों में मैं मौलाना आज़ाद मालियाती फंड के कार्यालय का पता लिख रहा हूं।
पता :
मौलाना आज़ाद मालियाती फाउंडेशन
ओल्ड कस्टम हाउस, दूसरा मंज़िला,
निकट : सेंट्रल लायब्रेरी, शहीद भगत सिंह रोड
मुंबई 400002

हस्पतालों में महेंगे ट्रीटमेंट के लिए योजनाएं

अब हम यहाँ से हस्पतालों में महेंगे ट्रीटमेंट, पेशेन्ट की
 माली हालत और उस की अन्य समस्याओं के समाधान और इस फील्ड में प्राइवेट संस्थाओं की गतिविधियों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। ताकि चैलेंज से भरपूर इस आधुनिक युग में, समस्याओं से जूझते आम आदमी के लिए भी ट्रीटमेंट सस्ता हो सके। और केवल पैसा न होने के कारण किसी इंसान को एड़ियां रगड़ कर मरने की नौबत न आए।

अस्पतालों की विशेषताएं

मुंबई के नायर हास्पिटल (मुंबई सेन्ट्रल), के. ई. एम हास्पिटल (परेल) और प्लेटीनियम हास्पिटल (मुलुंड) में तमाम प्रकार की बीमारियों का इलाज होता है। पहले दो हास्पिटल (नायर और के. ई. एम.) गवर्नमेंट हास्पिटल हैं और मुलुंड चेक नाका पर स्थित प्लेटीनियम हास्पिटल जिस में कैन्सर, हार्ट और स्टोन (पथरी) का इलाज होता है यह हास्पिटल अगरचे एक प्राइवेट हास्पिटल है लेकिन उस ने चूंकि एम. पी. जे. स्कीम ले रखी है। इस लिए वहाँ पर भी कैंसर, हार्ट और स्टोन (पथरी) से संबन्धित सारा काम स्कीम के तहत कम पैसे में हो जाता है।

 कैंसर पेशेंट की समस्याएं

कैन्सर के इलाज के लिए मुंबई ही में नहीं देश भर में सब से अच्छा हास्पिटल टाटा हास्पिटल है। लेकिन आप हर कैंसर पेशेंट को डायरेक्ट टाटा हास्पिटल नहीं ले जा सकते। ख़ास कर ऐसे में जब पेशेंट व्हील चेयर पर हो। क्योंकि वहाँ पर बहुत भीड़ है। सारे इंडिया से मरीज़ आते हैं। फाइल पर सिगनेचर होते होते या तो बीमार की मौत निश्चित हो जाएगी या फिर उसका मरज़ और बढ़ जाएग।

इस लिए ऐसे कैंसर पीड़ितों को हम डायरेक्ट टाटा हास्पिटल ले जाने के बजाय पहले नायर हास्पिटल ले जाने की सलाह देते हैं। साथ ही यह ताकीद भी कर देते हैं कि मरीज़ के सगे संबन्धी लोग नायर हास्पिटल में अपने पेशेंट का ट्रीटमेंट भी जारी रखें और टाटा हास्पिटल में अपनी फाइल भी दौड़ते रहें। वहाँ के डाक्टर जब आप से पेशेंट को लाने के लिए कहें तब आप पेशेंट को टाटा हास्पिटल में लेकर जाएँ।


टाटा हास्पिटल में इलाज और चेक अप के मसाएल

टाटा हास्पिटल का ट्रीटमेंट और चेक अप बहुत महेंगा है। लेकिन आस पास में कई ट्रस्ट हैं जो मदद करते हैं। वह महेंगी दवाएं और इंजेक्शन भी दिलाते हैं। कुछ ऐसे मेडिकल स्टोर्स हैं जो डिस्काउंट के साथ दवाएं उप्लब्ध कराते हैं। जैसे स्वामी समर्थ मेडिकल स्टोर, ओम साई मेडिकल स्टोर वगै़रह।

किडनी के मसाएल

किडनी पेशेन्ट के सिलसिले में याद रखने की पहली बात यह है कि वह आप के पास अचानक नहीं आएगा। वह कई स्थानों से होते हुए कई डाक्टरों के ट्रायल से गुज़रने के बाद आपके पास आएगा। फिर किडनी पेशेन्ट के अलग अलग मसाएल होते हैं। हालांकि किडनी का इलाज भी अब मुमकिन हो गया है। चिंता की बात तब होती है जब डायलिसिस का मामिला खड़ा हो जाता है। इस लिए हम किडनी पेशेन्ट की चर्चा करते हुए डायलिसिस के प्रकरण को विस्तार से बयान करना ज़रूरी समझते हैं।

 किडनी पेशेन्ट के इंजेक्शन की समस्याएं

जब डायलिसिस की नौबत आ जाती है तो नेफरोलोजिस्ट (Nephrologist) यानी किडनी के विशेषज्ञ (Specialist) को यह समझने में देर नहीं लगती कि पेशेन्ट के शरीर में ख़ून की मात्रा बहुत कम हो गई है। चुनांचे ख़ून की मात्रा बढ़ाने के लिए पेशेन्ट को Erothoroplatin नाम का इंजेक्शन लगाया जाता है। यह इंजेक्शन (Erothoroplatin) हर किडनी पेशेन्ट को हर महीने लगाना ज़रूरी होता है। किसी को महीने में एक बार, किसी को दो बार, किसी को तीन बार और किसी को चार बार।

यह किडनी के विक्नेस की नौइयत पर डिपेन्ट करता है। लेकिन महीने में चार इंजेक्शन से ज़्यादा किसी को नहीं लगाना पड़ता। 


इंजेक्शन की क़ीमत

Erothoroplatin नामी इंजेक्शन काफी महेंगा इंजेक्शन है। इस इंजेक्शन की अस्ल क़ीमत (RPM के हिसाब से) दो हज़ार से ढाई हज़ार तक है। (यह फर्क अलग अलग कम्पनियों के मापदंड की वजेह से है)

हस्पतालों के बाहर दो हज़ार या ढाई हज़ार रूपये में मिलने वाला यह इंजेक्शन हास्पिटल के लोग एक हज़ार रूपये में देते हैं। और कल्याण के NGO's (मिसाल के तौर पर तैबा वेल्फेअर पालीक्लीनिक) इसे केवल 500 रूपये में दिलाते हैं।

डायलेसिस की समस्याएं मुंबई के संदर्भ में

पेशेन्ट यदि मुंबई में है तो उसके लिए कई अच्छे अच्छे गवर्नमेंट हास्पिटल्स हैं। जैसे के. ई. एम. हास्पिटल नायर हास्पिटल सायन हास्पिटल (लोकमान्य तिलक हास्पिटल) जे. जे. हास्पिटल और राजावाड़ी हास्पिटल।

इन सारे स्पतालों में डायलेसिस की सुविधा है। और अच्छी बात यह है कि राशन कार्ड और आधार कार्ड के बेस पर सारा काम हो जाता है।

डायलेसिस की समस्याएं ठाणे ज़िला के संदर्भ में

और कोई पेशेन्ट यदि मुंब्रा, कौसा, कल्याण या भिवंडी में है तो उसके लिए गवर्नमेंट स्पताल के एतबार से कलवा (ज़िला ठाणे) में स्थित शिवाजी हास्पिटलऔर प्राइवेट स्पतालों में मीरा हास्पिटल और वेद हास्पिटल बेहतर रहेगा। बेहतर इस लेहाज़ से कि कलवा का शिवाजी हास्पिटल ठाणे और उसके असपास (मुंब्रा, कौसा, कल्याण और भिवंडी) के मरीज़ों के लिए मुंबई के जे. जे. हास्पिटल से कम नहीं है। रहे कल्याण के मीरा हास्पिटल और वेद हास्पिटल तो इन स्पतालों से NGO's का टायेप है। यहाँ M.P. J. स्कीम की सुविधा भी उप्लब्ध है। शर्त इतनी है कि पेशेन्ट किसी ट्रस्ट (सपोज़ तैबा ट्रस्ट, कल्याण) का लेटर साथ में लेकर हास्पिटल जाए।

नादार मरीज़ों की समस्याएं

अब कोई पेशेन्ट इतना कमज़ोर है कि वह सरकारी हास्पिटल और NGO's के टायप शुदा हस्पतालों के रिज़नेबल चार्ज पर भी डायलेसिस नहीं करवा सकता तो कई प्राइवेट ट्रस्ट डायलेसिस में भी मदद देते हैं। मैं आगे चल कर उनके नाम और पते लिखूंगा।

ह्रदय रोग (हार्ट) के प्राब्लम्स और उनकी क्वालिटीज़

हार्ट के मामिलात चेक अप के बाद ही खुल कर सामने आते हैं। एनजिओग्राफी के बगैर यह पता नहीं चल पाता कि हार्ट प्रोब्लम की अस्ल वजेह क्या है। यह टेस्ट (एनजिओग्राफी) ही है जो डाक्टर को सही निर्णय लेने में मुख्य भूमिका निभाता है। एनजियोग्राफी के बाद ही डाक्टर यह तय करता है कि अब हमें पेशेन्ट का एनजिओ प्लास्टिक करना चाहिए या बाईपास सर्जरी।

हार्ट के मामिलात में एक और प्रोब्लम अब आम होता जा रहा है। वह है ब्लाकेज़ (Blockes) का प्राब्लम। जहां तक वाल प्राब्लम का मस्अला है वह सौ व्यक्तियों मे़ं कहीं एक आध को होता है। लेकिन इस की चर्चा से यह बताना मक्सूद है कि ह्रदय रोग (Heart) से जुड़ी तमाम बीमारियों का इलाज इस स्कीम (MPJ Schame) के तहत हो रहा है। 


अड़चन कहां है और उस की वजेह क्या है ?

गवर्नमेंट की स्कीमों के बारे में कुछ लोग यह कह देते हैं कि वह केवल काग़ज़ पर हैं। उनका इम्प्लीमेन्ट नहीं हो पाता। लेकिन मैं इस बात को नहीं मानता। हालांकि यह फीलिंग बहुत आम है। दरअसल इस के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। जिस की वजह से यह गलत फहमी पैदा हुई है। वह रहस्य यह है कि हमारी सरकारें स्कीम के तहत स्पतालों को पैसे कम देती हैं। जिस की वजह से स्पताल वाले बड़े केसेज़ को स्कीम के तहत नहीं लेना चाहते। और बहुत घुमा फिरा कर बात करते हैं।

फिर इस का हल क्या है ?

प्राइवेट इदारों (NGO's) ने इस का हल यह निकाला है कि वार्तालाप में पड़ने के बजाए बेहतर यही है कि जो काम दूसरे स्पतालों में दो लाख से ढाई लाख तक में होता है वही काम इन विशेष हस्पतालों में स्कीम द्वारा 30 हज़ार से 50 हज़ार तक में करवा लिया जाए। क्योंकि गवर्नमेंट बड़े से बड़े केसेज़ में भी 60 हज़ार से 80 हज़ार तक ही देती है। इस से ज़्यादा रूपये नहीं देती। प्राइवेट संस्थाओं ने कुछ पैसे ख़र्च करके काम करवाने का फैसला ज़मीनी सच्चाई को सामने रख कर किया है। और सच पूछिये तो इस का कोई और विकल्प भी नहीं है। न ही इस से बेहतर कोई और उपाय हो सकता है। इसके लिए निजी संस्थाओं (NGO's) को कुछ स्पतालों से टायेप करना पड़ता है। रहा गरीब पेशेंट के इलाज में लगने वाली भारी रक़म (30 हज़ार या 40 हज़ार या 50 हज़ार) की फंडिंग का मस्अला तो इस के लिए उसे अपने ही जैसे कुछ और NGO's के नाम और एड्रेस दिए जाते हैं। ताकि वह दौड़ भाग करके यह रक़म कलेक्ट कर सके। कुछ टायेप शुदा स्पतालों के नाम और पते निम्नलिखित हैं। 


टायेप शुदा स्पतालों के नाम

(1) प्लेटिनियम हास्पिटल
मुलुंड चेक नाका, मुंबई
यह हास्पिटल कैन्सर, हार्ट और स्टोन (पथरी) के लिए विशेष है। चेक - अप से लेकर सर्जरी तक कवर की जाती है। सारा काम MPJ स्कीम के तहत होता है।
(2) मीरा हास्पिटल
नियर रेलवे स्टेशन, कल्याण (वेस्ट)
यहां भी MPJ स्कीम के तहत इलाज किया जाता है। और कैन्सर के अलावा बाक़ी सारे ट्रीटमेंट होते हैं।
(3) वेद हास्पिटल
भिवंडी रोड, कल्याण
यह हास्पिटल अप डाउन की सुविधा के लिहाज़ से भिवंडी और कल्याण के डायलिसिस पेशेन्ट के लिए बेहतर माना जाता है। वैसे यहां पर कैंसर के अलावा बाक़ी सारे ट्रीटमेंट होते हैं।
(4) मेट्रो क्रिटीकेअर हास्पिटल
(कल्याण)
यह हास्पिटल छोटे बच्चों की बीमारियों के इलाज के लिए है। 
(5) प्रनायु हास्पिटल
गोवा नाका, कल्याण

यहाँ पर हड्डियों का इलाज MPJ स्कीम के तहत होता है। जैसे इलाज में यदि पचास हज़ार का ख़र्च है तो MPJ स्कीम के तहत पंद्रह हज़ार तक में इलाज हो जाएगा।

अस्पतालों के नाम और उपचार ट्रीटमेंट के प्रकार

कैंसर के लिए :
(1) नायर हास्पिटल (मुंबई सेन्ट्रल)
 (Governmented)
(2) टाटा मेमोरियल हास्पिटल (परेल, मुंबई)
(Semi Governmented)
(3) प्लेटीनियम हास्पिटल (मुलुंड चेक नाका, मुंबई)
(Privet)
इन तमाम स्पतालों में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और महात्मा ज्योतिराव फुले जन आरोग्य योजना यानी एम. पी. जे. स्कीम नाफिज़ है।

ह्रदय रोग (हार्ट) के प्राब्लम्स के लिए

(1) के. ई. एम. हास्पिटल (परेल, मुंबई)
(2) नायर हास्पिटल (मुंबई सेन्ट्रल)
(3) लोकमान्य तिलक हास्पिटल (सायन, मुंबई)
(4) जे. जे. हास्पिटल (मुंबई)

बड़ी बीमारियों की सस्ती दवाओं के लिये

(1) रायल मेडिकल प्राइवेट लिमिटेड
(R. M. P. L.)
नियर लिबर्टी टाकीज़, मरीन लाइन्स, मुंबई
(2) स्वामी समर्थ मेडिकल स्टोर
नियर टाटा मेमोरियल हास्पिटल, परेल, मुंबई
(3) ओम साई मेडिकल स्टोर
नियर टाटा मेमोरियल हास्पिटल (परेल, मुंबई)


स्कीमों के इम्प्लीमेन्ट का मस्अला

मेरे विचार से स्कीमों के इम्पलीमेन्ट का मस्अला कोई बड़ा मस्अला नहीं है। किन्तु ऐसा भी नहीं है कि मैं इसे मस्अला नहीं मानता। मैं ने इस प्वाइंट पर काफी ग़ौर किया। कई लोगों से इस इश्यू (Issu) पर मेरी लम्बी बात चीत हुई। विचार विमर्श (Discus) के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि विशेषकर स्वास्थ्य (Health) के मामिले में प्राइवेट आर्गनाइज़ेशंस (NGO's) बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। बस इतना मालूम करना पड़ता है कि कौन सी संस्था किस फिल्ड में काम कर रही है या यह कि वह ज़रूरतमंदों को कौन सी चीज़ डोनेट करने में रूचि रखती है। इस लिए मैं कुछ संस्थाओं के नाम और उनके काम (एड्रेस और कान्टेक्ट नम्बर समेत) यहाँ लिख रहा हूँ।

(1) सलमान ख़ान फाउंडेशन 

यह फिल्म स्टार सलमान ख़ान का NGO है। यहां से महेंगे इलाज, महेंगे टेस्ट और महेंगे आपरेशन के लिए एक पेशेन्ट को कम से कम 20 हज़ार रूपये मिलते हैं।
शर्त :
लेकिन यहाँ से किसी भी प्रकार की सहायता लेने के लिए पेशेन्ट का राशन कार्ड महाराष्ट्र का होना लाज़िमी है।
पता :
सलमान ख़ान फाउंडेशन,
सलमान अपार्टमेंट,
कार्टर रोड, बांद्रा, मुंबई
समय : सुबह 7 बजे से 8 बजे तक

(2) सिद्ध विनायक मन्दिर ट्रस्ट

यह ट्रस्ट तमाम बड़ी बीमारियों में सहायता देता है। यहाँ से एक पेशेन्ट को 10 हज़ार से 50 हज़ार तक का चेक मिलता है।
पता :
सिद्धि विनायक मन्दिर
परेल, मुंबई
समय : सुबह 9 बजे से 1 बजे तक
दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक

(3) ख़िदमत ट्रस्ट 

यह ट्रस्ट हर बीमारी में मदद देता है।
इंडिया के मुसलमानों में चेरिटी का सब से बड़ा काम करने वाला सब से मोअ्तमद इदारा इस समय यही है।
पता :
ख़िदमत ट्रस्ट
म्युनिसिपल गार्डन, रोलेक्स होटल के सामने,
नागपाड़ा जंक्शन, मुंबई
समय :
सुबह 9 बजे से 1 बजे तक
दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक

(4) तैबा वेल्फेअर पालीक्लीनिक

यह ट्रस्ट किडनी पेशेन्ट के लिए

डायलिसिस और कैन्सर पेशेन्ट के लिए केमू में मदद देता है। आर्थोपेडिक केसेज़ (यानी हड्डी के मामिलात) में भी मदद देता है। साथ ही वह डायलिसिस पेशेन्ट को हर महीने लगने वाला Erothoroplatin नामी इंजेक्शन
भी उप्लब्ध कराता है। किसी को महीने में एक, किसी को दो इंजेक्शन दिलाया जाता है।
पता :
(1) तैबा वेल्फेअर पालीक्लीनिक
ज़ोया कम्प्लेक्स, ग्राउंड फ्लोर,
नियर मेमन मस्जिद, वाली पीर रोड,
कल्याण (वेस्ट)
समय :
शाम 7 बजे से 8 बजे तक
(2) मेमन क्लाथ स्टोर
हुसैन अपार्टमेंट, नियर मेमन मस्जिद
कल्याण (वेस्ट)
समय :
सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक
दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक

(5) सहायता फाउंडेशन 

यह संस्था सिर्फ़ कैन्सर पीड़ितों की मदद के लिए बनाई गई है। और वह भी ऐसे पेशेन्ट की मदद के लिए जिन का ट्रीटमेंट टाटा हास्पिटल में चल रहा हो।
पता :
नियर टाटा मेमोरियल हास्पिटल
परेल, मुंबई

(6) मरयम हनीफ व्हील चेयर ट्रस्ट


यह संस्था अपंग (पावं से माज़ूर) लोगं को व्हील चेयर डोनेट करती है। 
संस्था (मरयम हनीफ व्हील चेयर ट्रस्ट) का कान्टेक्ट नम्बर : 
9819052737
(7) उमा भारती व्हील चेयर ट्रस्ट :_

यह संस्था भी अपंग (पावं से माज़ूर) लोगं को व्हील चेयर डोनेट करती है।
संस्था (उमा भारती व्हील चेयर ट्रस्ट) का कान्टेक्ट नम्बर : 9967407303

(8) वीना सिंह साहू

यह भी एक NGO चलाते हैं। इनकी संस्था हाथ पैर से मअ्ज़ूर लोगों को मस्नूई (नक़्ली) हाथ पैर डोनेट करती है। 
वीना सिंह साहू का कान्टेक्ट नम्बर :_
7808788569
अब यहाँ से कुछ बातें स्पोर्ट्स और बिज़नस के तअल्लुक़ से लिखी जा रही हैं। 

स्कीम के इम्प्लीमेन्ट के लिए कुछ सुझाव

(1) गवर्नमेंट की स्कीम के जी. आर. हासिल करना
(2) संबन्धित कार्यालय (Offices) के पते और कान्टेक्ट नम्बर हासिल करना
(3) आफिसर्स के कान्टेक्ट नम्बर हासिल करना
(4) स्कीमों की पूरी जानकारी हासिल करना कि वह म्युनिसिपल आफिस से रिलेटेड हैं या तहसील से
(5) ग़ैर सरकारी तन्ज़ीमों (NGO's) के कान्टेक्ट नम्बर और उनकी तफ्सीलात (Details)
(6) टीम वर्क के लिए मेन पावर
(7) आफिस और कम्प्यूटर नेट की सुविधा।

नोट :
यह एक बड़ा और चैलेंज (Challeng) से भरपूर काम है। जो टीम वर्क का तक़ाज़ा करता है। इस तरह के चैलेंजिंग कामों को टीम वर्क के बग़ैर प्रेक्टिकल में लाना मुमकिन नहीं है।

लेखक :
शफीक़ुल ईमान हाशिमी
कल्याण (महाराष्ट्र)
संपर्क नम्बर : 8097409653

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ