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हिंदी लघु कथा : समय पर जो साथ दे वही अपना Samay Per Jo Saath De Vahi Apna - Short Story In Hindi

हिंदी लघु कथा : समय पर जो साथ दे वही अपना

'समय पर जो साथ दे वही अपना
रहमान दौडता हुआ घर में आया मम्मी मम्मी गीता ऑन्टी।
मम्मी सायरा ने अपने बेटे से कहा जो ग्यारह वर्ष का है क्या हुआ बेटा ? मम्मी मम्मी गीता ऑन्टी दरवाजा नहीं खोल रही है। अरे बेटा दोपहर का वक्त है आंख लग गई होगी बुढ़ापे में ऐसा होता है बेटा तुम क्यों उन्हें तकलीफ देना चाहतें हो। बेटा बोला मम्मी मेरी गेंद उनके मकान में खिड़की का काच तोड़कर अंदर गई है। लेकिन अब की बार वो डांटने भी नहीं आयीं दरवाजा तक नहीं खोला।


सायरा ने बेटे को डांटते हुयें कहा तो ये बात है। तुम्हें कितनी बार मना किया उनके घर के सामने गेंद ना खेला करों अब का फोड़ा तुम्ही जाओ उनसे मांफी मांगों और अपनी गेंद लाओ मैं मै नहीं आने वाली रहमान बोला मम्मी मैने बहुत कोशिश की लेकिन अंदर से दरवाजा बंद है कोई खोलता ही नहीं। कोई क्या खोलेगा श्रीमती गीता जी तन्हा रहतीं है। दो साल हो गयें उनके पति का स्वर्गवास हुआ है। एक ही बेटा है वह भी विदेश में नौकरी करता है। कोविड की वजह से कोई किसी के घर आता जाता नहीं है। चल मै ही उनसे विनती करती हूं।

सायरा ने दरवाजे पर दस्तक लगाई कोई आवाज नहीं आयी पड़ोस में आवाज लगाई लेकिन दोपहरी का वक्त सुनसान परिसर कोई नहीं। सायराने खिड़की फूटी काचकी की जगह से हाथ डालकर टिचकनी को खोली और रहमान से कहा बेटा खिड़की से अंदर जाओ और दरवाजा खोलों। रहमान खिड़की से अंदर गया और दरवाजा खोला। सायरा अंदर आयी और काकी काकी कह के आवाजें देती हुई वह भीतर कमरें में आयी और वह यह देखकर वह दंग रह गई के गीता काकी भी स्वर्ग सिधार गई।


वह रोने लगी अपने पति को फोन से बुलाया। वह आये बस्ती के और लोगों को आवाज दी कोई नहीं आया। उनके पास गीता जी के पुत्र का फोन नंबर था। उसे फोन लगाकर बताया बेटा किशोर तुम्हारी मम्मी का देहांत हो गया है। क्या करें जल्द आओ किशोर ने कहा अंकल यहाँ भी कोविड की भरमार है। मुझे सफर की इजाजत नहीं मीलेंगी अब आप ही उनका अंतिम संस्कार करें,आदिल ने बहुत कोशिश की लेकिन कोई नहीं आया आदिल के करीबी रिश्तेदारों ने स्मशान जाकर गीता जी का अंतिम संस्कार करवाया घर पर आयें तो सायरा और रहमान फूट-फूट कर रो रहें थे जैसें उन्हीं का सगा गुजर गया हो अल्लाह से सभी ने दुआएं की गीता जी को स्वर्ग में आला मुक्काम मिलें जो भी वहाँ थे सभी ने आमीन कहा। आदिल ने गीता जी के मकान में अगरबत्ती लगा दी और दरवाजा बंद कर दिया।
समाप्त
लेखक:-मजीदबेग मुगल 'शहज़ाद '
हिगणघाट, जि,वर्धा महाराष्ट्र
8329309229

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