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मन का दर्द पिघलता जाए : दर्द भरी हिंदी कविता Painful Hindi Poetry

मन का दर्द पिघलता जाए : दर्द भरी हिंदी कविता Painful Hindi Poetry

मन का दर्द पिघलता जाए
मासूम पड़ा था झाडी में, चीख रहा रहा था जोरों से
ह्रदय का टुकड़ा फेंक दिया, पूछ रहा वो चोरों से
दोष बता माँ मेरा मुझको, निर्दयी होकर छोड़ दिया
मन का दर्द पिघल रहा है, कहूँ कैसे मैं औरों से

छोटी गुड़िया खेल रही थी, निश्छल होकर बागों में
उड़ रही थी तितली जैसे, फूलों पत्तों व डालों में
वहशी कोई देख रहा था, गिद्ध की निगाहों से
तन से लहू उबल रहा है, उलझ रहा है सवालों में

अपने बच्चे छोड़ चली वो, दूजा घर बसाने को
पत्थर दिल देखा उसका, अपनी भूख मिटाने को
माँ सिर्फ माँ होती है, वो ममता को भूल गई
तन-मन व्यथित हुवा है, चली अहम् बचाने को

जिन बच्चों को पाला पोसा, बड़े प्यार से बड़ा किया
सब कुछ अपना दे डाला उनको, पाँवो पर खड़ा किया
आज हम बोझ हो गए, वृद्धाश्रम हमको मिला है
जीवन कैसा उलझ रहा है, हमने क्या थोड़ा किया

माता कहते जिस माटी को, लहू से उसको लाल किया
आग लगा दी बस्ती में सब, जीना सबका बेहाल किया
नफ़रत के शोले दहक रहे हैं, जाति - धरम के नाम से
माँ भारती सुबक रही है, संतान ने कैसा हाल किया
श्याम मठपाल, उदयपुर


हिंदी कविता : झूठ न बोले मन का इकतारा Jhoot Na Bole Man Ka Ik Tara - Hindi Poem

झूठ न बोले मन का इकतारा
चाहे बातें लाख बना लो, झूठ का तुम लो सहारा
नज़रें चाहे खूब बचा लो, झूठ न बोले मन का तारा

बुरे काम जब किये तुमने, तुमको मन ने रोका होगा
बार बार समझाया तुमको, जाने कितना टोका होगा

बात न मानी मन की तुमने, तुमने उसको खूब दबाया
चलता है दुनियाँ में सबकुछ, तुमने उसको है बताया

पीड़ा होती है जब मन को, चढ़ता क्यों है तुमको पारा
सच कर दर्पण तेरा मन है, झूठ न बोले मन का तारा

कितने तूने पापड़ बेले, धन दौलत अम्बार लगाया
कितने किस्से तेरे मन में, तूने जग से खूब छुपाया

भटका है तू पथ से कब कब, तेरा मन जाने है सब कुछ
खूब छुपाता है तू जग से, तू तो ना माने है सब कुछ

लोभ लालच में पड़ा तू, तुझको मैंने बहुत पुकारा
काम क्रोध में डूब गया, झूठ न बोले मन का तारा

भोग विलास को तू है आदी, सत्य मार्ग को तुमने छोड़ा
बुरी बात है मन ने बोला, सत्य वचनो को तुमने तोड़ा

माया मोहा में फँसा परिंदा, तू अपने कर्मों से हारा
दोष न देना दूजे को तू, झूठ न बोले मन का तारा
श्याम मठपाल, उदयपुर

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