हिंदी कविता : मैं कविता हूं | Main Kavita Hoon : Hindi Poem
मैं कविता हूं.., मैं कविता हूं.., मैं कविता हूं.!
मैं कालीदास की मेघदूत, तुलसीदास की रामचरित
कबीरा की अमृत वाणी हूं और हूं मैं मीरा की जीत
मेरे शब्द शब्द में मोती है, चाहे जितनी बार पढ़ लो
खुद ख़यालो के मुताबिक, जैसे चाहो वैसे गढ़ लो
मैं अमर हूं, मैं शाश्वत हूं, मेरा आज है, है मेरा कल
हर संवादों के उलझन की, सुलझन हूं सहज सरल
हर अन्यायो की न्याय मैं, वंशी वाले की गीता हूं
मैं कविता हूं...! मैं कविता हूं...! मैं कविता हूं.....!
हूं हर पागल दीवाने की अधरो की प्रेमिल भाषा मैं
सिद्धि प्रसिद्धि पाने की हर कवि की अभिलाषा मैं
संस्कृति की जब भी लोप हुई, तब मैं चेतना जगाई
जब सत्ता अराजक हुई, तब तब मैं आवाज उठाई
कभी मैं सीमा पर सेना की मनोबल, उत्साह बढ़ाई
हूं ग़लत की मैं आलोचना, सच्चाई की हूं बड़ाई
राम की भारी सभा में, लौ - कुश की गायी सीता हूं
मैं कविता हूं...! मैं कविता हूं....! मैं कविता हूं....!
राघवेंद्र
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