Ticker

6/recent/ticker-posts

लक्ष्मीजी ने गोमय को क्यों चुना अपना निवास-स्थान? Lakshmi Ji ka Nivas Sthan

लक्ष्मीजी ने गोमय को क्यों चुना अपना निवास-स्थान?

ऊँ नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्वच पवित्राभ्यो नमो नम:।।

अर्थात्-गौ को नमस्कार है, श्रीमती को नमस्कार है, सुरभि देवी को नमस्कार है, ब्रह्मसुता को नमस्कार है और परम पवित्र गौ को नमस्कार है।

इस श्लोक में गाय को श्रीमती कहा गया है क्योंकि सभी प्राणियों की विष्ठा अत्यन्त गन्दी और घृणित होती है और लक्ष्मीजी को चंचला कहा जाता है, वह लाख प्रयत्न करने पर भी स्थिर नहीं रहतीं किन्तु गौओं के गोमय (गोबर) में लक्ष्मीजी का शाश्वत निवास है इसलिए गौ को सच्ची श्रीमती कहा गया है।

सच्ची श्रीमती का अर्थ है कि गोसेवा से जो श्री प्राप्त होती है उसमें सद्-बुद्धि, सरस्वती, समस्त मंगल, सभी सद्-गुण, सभी ऐश्वर्य, परस्पर सौहार्द्र, सौजन्य, कीर्ति, लज्जा और शान्ति-इन सबका समावेश रहता है। शास्त्रों में वर्णित है कि स्वप्न में काली, उजली या किसी भी वर्ण की गाय का दर्शन हो जाए तो मनुष्य के समस्त कष्ट नष्ट हो जाते हैं फिर प्रत्यक्ष गोभक्ति के चमत्कार का क्या कहना ?

लक्ष्मीजी ने गोमय को क्यों चुना अपना निवास-स्थान? Lakshmi Ji ka Nivas Sthan

श्रीमद्भागवत (३।२।१२) में श्रीशुकदेवजी कहते है कि भगवान गोविन्द स्वयं अपनी समृद्धि, रूप-लावण्य एवं ज्ञान-वैभव को देखकर चकित हो जाते थे। श्रीकृष्ण को भी आश्चर्य होता था कि सभी प्रकार के ऐश्वर्य, ज्ञान, बल, ऋषि-मुनि, भक्त, राजागण व देवी-देवताओं का सर्वस्व समर्पण-ये सब मेरे पास एक ही साथ कैसे आ गए ? शायद ये मेरी गोसेवा का ही परिणाम है।


लक्ष्मीजी ने गोमय को क्यों चुना अपना निवास-स्थान ?

महाभारत के अनुशासन पर्व की कथा के अनुसार सभी देवताओं ने गौ के शरीर में अपने रहने का स्थान प्राप्त कर लिया, केवल लक्ष्मीजी पीछे रह गईं। एक बार लक्ष्मीजी गौ के शरीर में रहने का स्थान पाने के लिए गौओं के समूह के पास आईं। गौओं ने उनके सौन्दर्य को देखकर उनका परिचय पूछा। लक्ष्मीजी ने कहा-

'सारे संसार की चहेती मैं लक्ष्मी हूँ। देवताओं को मैंने अपना आश्रय दिया है इसलिए वे सुख भोग रहे हैं। जिसके शरीर में मैं प्रवेश नहीं करती, उसका नाश हो जाता है। धर्म, अर्थ और काम मेरे ही सहयोग से सुख देते हैं। अब मैं तुम्हारे शरीर में सदा निवास करना चाहती हूँ। तुम लोग मेरा आश्रय ग्रहण करो और श्रीसम्पन्न हो जाओ।'


गौओं ने कहा-'तुम बड़ी चंचला हो, कहीं भी जम कर नहीं रहतीं, इसलिए हमको तुम्हारी इच्छा नहीं है। हमारा शरीर तो वैसे ही सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट है। तुम जहां इच्छा हो, जा सकती हो।'

लक्ष्मीजी ने कहा-'मैं बड़ी दुर्लभ हूँ। आज मुझे पता चला कि बिना बुलाए किसी के पास जाने से अनादर होता है। इस जगत में मेरा अपमान कोई भी नहीं कर सकता।'

गौओं ने कहा-'हम आपका अपमान नहीं कर रहीं, हम तो केवल तुम्हारा त्याग कर रही हैं।'

लक्ष्मीजी ने कहा-'गौओं तुम तो दूसरों का आदर देने वाली हो। मुझको यदि त्याग दोगी तो संसार में सभी जगह मेरा अनादर होने लगेगा। तुम तो परम सौभाग्यशालिनी और सबको शरण देने वाली हो। मुझे बतलाओ, मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में रहूँ।'


तब गौओं ने कहा-'अच्छा ! अब केवल गोबर का ही स्थान बचा है, यदि तुम्हारी इच्छा हो तो वहां निवास कर सकती हो। तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो, हमारी ये दोनों चीजें बड़ी पवित्र हैं।'

गौओं की बात सुनकर लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं और गौ के गोमय और मूत्र में निवास करने लगीं।

श्रीमद् देवीभागवत (९।४९।२४-२७) में कहा गया है-

कल्पवृक्षस्वरूपायै सर्वेषां सततं परे।
श्रीदायै धनदायै बुद्धिदायै नमो नम:।।
शुभदायै प्रसन्नायै गोप्रदायै नमो नम:।
यशोदायै कीर्तिदायै धर्मदायै नमो नम:।।

अर्थात्-जो सबके लिए कल्पवृक्षस्वरूपा तथा श्री, धन और वृद्धि प्रदान करने वाली हैं, उन भगवती सुरभी को बार-बार नमस्कार है। शुभदा, प्रसन्ना और गोप्रदायिनी सुरभी को बार-बार नमस्कार है। यश और कीर्ति प्रदान करने वाली धर्मज्ञा देवी को बार-बार नमस्कार है।


जब मनुष्य गाय का दूध, दही, घी, पंचगव्य आदि का प्रयोग करता है तो सात्विक भोजन से उसका मन भी सत्वगुण प्रधान-शान्ति, क्षमा, धैर्य आदि दैवीय गुणों से युक्त हो जाता है जिससे उसकी लक्ष्मी सुरक्षित रहती है।

गौओं की महिमा कौन भला बतलाये,
जिनके गुण-गौरव वेदों ने भी गाये।
जिनकी सेवा के हेतु अरे इस जग में,
भगवान स्वयं मानव बनकर थे आए।।
इनके भीतर धन-धान्य हमारे सोये,
इनके भीतर अरमान हमारे सोये।
ये कामधेनु हैं क्षीरसमुद्र धरा का,
इनके भीतर भगवान हमारे सोये।।

।।आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र:।।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ