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एक हाथ और एक पैर हिंदी कविता Ek Hath Aur Ek Pair Hindi Kavita

एक हाथ और एक पैर हिंदी कविता Ek Hath Aur Ek Pair Hindi Kavita

ग़रीबी से तंग आकर बेटा परदेस गया।
बूढ़े माँ-बाप को यहाँ अकेला छोड़ गया।
पेट की आग की भूख को मिटाने की ख़ातिर,
छोड़ कर अपना देश, परदेसी हो गया।

कुछ महीने बाद फोन पर बात हुई,
थोड़ी प्यार, थोड़ी आँसू की बरसात हुई
मुद्दतों बाद जैसे मिलें हों सब साथ,
कुछ इस तरह माता-पिता से मुलाक़ात हुई।

उसने कहा एक बात आप सब को बतानी है,
मेरा एक दोस्त है, हमारी दोस्ती बड़ी पुरानी है।
एक हादसे में एक पैर और एक हाथ खो गया,
कोई नहीं उसका, संग आपने घर लानी है।

सुनते ही दोनों बोलें, तू कहीं पागल तो नहीं है,
बिन हाथ, पैर वाले को रखे हम, घायल तो नहीं है।
उसे छोड़ कर आओ, वो अपना रास्ता देख लेगा,
सबके हिस्से का दर्द लें, हमारा दिल मायल तो नहीं है।

दो महीने बाद, फोन पे एक पैग़ाम आया।
बेटा आपका नहीं रहा, ऐसा फरमान आया।
रो-रो कर बूढ़े माँ-बाप का हाल हुआ बेहाल,
ख़ुदकुशी क्यों किया उसने, ऐसा अंजाम आया।

वो कोई दोस्त नहीं था उसकी ही कहानी थी,
एक हाथ एक पैर कट गया, बची जवानी थी।
उम्मीद टूटा तब, जब लगा के मैं बोझ बन गया,
कमी कहाँ रह गयी, यही बात तुम्हें बतानी थी।

एक उम्मीद का दीया, जलाए रखिए,
कौन किस रूप में आए, बताए रखिए।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं अक्सर,
ख़ुद भी जिए, दूजे को भी जिलाये रखिए।
ख़ुद भी जिए, दूजे को भी जिलाये रखिए।

नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
मुंबई
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, ig-writernilofar

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